कभी भी कहीं भी नज़र दौड़ा कर देखो लोग तनाव में ही मिलेंगे! और सभी तनाव का एक ही कारण है अहंकार! अहंकार के इतने अलग अलग रूप है की पहचान करने वाले व्यक्ति के लिए मुश्किल हो जाती है! और मैं तो कहता हूँ जब तक आप के अंदर साक्षी भाव की उत्पत्ति नहीं होती है तब तक आप अपने अहंकार को पहचान भी नहीं सकते है! अहंकार बहुत से रूप में होता है अलग अलग ढंग से सामने आता है परन्तु उसको नहीं पहचान पाने की क्षमता के कारण हम धृतराष्ट्र बने हुए है जो हर बात के भीतर अपने सपोर्टर को ढूंढता रहता है की कोई एक भी यदि कह दे की हाँ ये सही है तो बस फिर क्या अहंकार के दिए को तेल मिल गया! और हमारे साथ में भी यही होता है! बाकी लोग शायद इसकी स्वीकृति करे या न करे! पर मुझे पता है की मेरे साथ ये अधिकतर होता है! और इससे ऊपर उठने के लिए जो करना चाहिए वह करना ही पड़ेगा! इससे निजात नहीं है! इससे निजात पाए बिना यदि कुछ खोज करनी है तो वह नहीं हो सकती है! व्यक्ति माने या ना माने सिद्धांत छोड़ के चलने की सोचेगा तो ये नहीं हो सकता है! पेट है तो भूख भी लगेगी! गला है तो प्यास भी लगेगी! इसीलिए कुछ पाना है तो त्याग भी लगेगा! और पाने खोने की परिभाषा करनी हो तो आप लोगो से बेहतर इसे कोई नहीं जानता है! कुछ पाने का लालच तो है ही! मानेंगे नहीं अलग बात है! पाने के नाम पे पाने से ज्यादा कुछ नया समझने की कुछ नया जानने की महत्वाकांक्षा घर किये हुए है! समाधी में बैठ कर देखना नहीं है! परन्तु समाधी में होने वाले अनुभव को जानना भी है! तो लगे हुए है की शायद कोई बता दे, कोई कह दे की हाँ ऐसा होता है और उसका कहा इतना पुख्ता हो इतना मजबूत हो उसकी वाणी में इतना कठोरपना हो की बात काट ही नहीं पाए तब हमारे पास एक और उपलब्धि हो जायेगी! और ऐसे ही कर कर के उपलब्धिया जमा कर रहे है! सब कुछ उधार का है! मेरे भाई! परन्तु अहंकार इसे मानने को तैयार ही नहीं है! क्योंकि अहंकार की खुराक ही नयापन है और वह भी सिर्फ सिमित ही रहना चाहता है! मेरे पास और कहीं नहीं और यदि कहीं और पहुंच जाए तो स्टाम्प मेरे नाम का ही हो मुझसे बेहतर ना हो मुझसे ऊंचा न हो! ये सभी बाते हर पल दिमाग में चलती ही रहती है!
अहंकार को खोना ही मोक्ष है! हमारा अहंकार समाप्त हो जाए यही मोक्ष है इसके आलावा मोक्ष की कोई परिभाषा नहीं है! व्यक्ति कितना भी बाते घुमा फिरा कर के कहे परन्तु कहना यही है!
अहंकार को खोना ही मोक्ष है! हमारा अहंकार समाप्त हो जाए यही मोक्ष है इसके आलावा मोक्ष की कोई परिभाषा नहीं है! व्यक्ति कितना भी बाते घुमा फिरा कर के कहे परन्तु कहना यही है!