ગુરૂ તારો પાર ન પાયો રે,
પ્રૂથ્વી માલેક તારો પાર ન પાયો રે,
પ્રૂથ્વી માલેક તમે તારો તો અમે તરીએ
હા રે હા ગવરીપુત્ર ગણેશ દેવને સમરોજી, સમરો શારદા માત.
હા રે હા જમીન આસમાન મુળ વિના માંડયું જી,
થંભ વિના આભ ઠેરાવ્યો રે.
હા રે હા સુન શિખર ગઢ અલક અખેડાજી,
વરસે નુર સવાયો રે.
હા રે હા ઝળહળ જયોતું દેવા તારી ઝળકેજી,
દરશન વિરલે પાયો રે.
હા રે હા શોભાજીનો ચેલો પંડિત દેવાયત બોલ્યા જી,
સંતનો બેડલો સવાયો રે.
इस भजन को गणपति बिठाने के सन्दर्भ में गाया जाता है
आज हम इसके अर्थ को समझने करेंगे!
ગુરૂ તારો પાર ન પાયો રે,
गुरु! गुरु के सन्दर्भ में हम पहले भी बहुत कुछ बोल और लिख चुके है गुरु के सन्दर्भ में तो हमने काफी दिनों तक सत्संग का कार्यक्रम भी किया फिर भी इतने ज्ञानियों ने मिलके भी जो कुछ बोल बोले उसके बावजूद भी सभी का एक ही निष्कर्ष था की ये तो टूक मात्र है अभी तो इसमें बहुत कुछ बाकी है! और ये सही बात है! गुरु के सन्दर्भ में पूरी तरह बोल पाना या उनको सही सही परिभाषित करना अर्थात सूरज को दिया दिखाने जैसा ही है!
गुरु तारो पार न पायो
सही बात है ऐसे गुरु पाना मुमकिन नहीं है! ये गेब की तरह ही है! जिसे समझ सकते है! महसूस कर सकते है! परन्तु बोल नहीं सकते है! माप नहीं सकते है!
પ્રૂથ્વી માલેક તમે તારો તો અમે તરીએ
हमने पहले भी इस विषय में चर्चा की है! की संतो ने इस शारीर को पृथ्वी कहा है! और गुरु चरण में जाने के बाद में हम अपने आप को पूरी तरह से उनके सुपुर्द कर देते है! और उन्हें अपना सर्वस्व मान लेते है! ये जरुरी भी है! सिर्फ बातो में नहीं बल्कि व्यवहार में भी! जब हम अपने आप को पूरी तरह से गुरु के सुपुर्द कर देते है! तब गुरु हमे अपनी ज्ञान गंगा में नहाने का अवसर प्रदान करा देता है! गुरु की ज्ञान गंगा में नहा के, इसमें डुबकी मार के ना जाने कितने तर गए है! इस भजन में भी गुरु से उसी ज्ञान गंगा में हमें डुबकी लगाने की बात कही है! ताकि हम तर सके भव पार उतर सके!
उस गुरु से जिसे हमने हमारा पूरी तरह से सब कुछ अर्पण कर दिया है! हमने उसे हमारा मालिक हमारा साहेब समझा है! उससे हम हमें तारने की विनंती करते है! उससे कहते है की यदि उनकी दृष्टि पड़े और वह चाहे तो हम तर सकते है!
હા રે હા ગવરીપુત્ર ગણેશ દેવને સમરોજી, સમરો શારદા માત.
गौरी पुत्र गणेश! और शारदा मात!
कहने को तो गणेश और गौरी शारदा माँ को कौन नहीं जानता है! परन्तु यहाँ बात संतो की हो रही है! और संतो ने सब कुछ इस शरीर के अंदर ही बताया है! तो हम इस ढंग से ही इसे समझने की कोशिश करेंगे
गौरी पुत्र, गौरी शक्ति का प्रतिक है! उत्तेजना है! चाहत है! और इस शक्ति के वश में है मन! मन को गणेश की उपाधि दी है! गणेश बिठाना अर्थात अपने मन को करना! मन को उस कार्य के प्रति बाधित कर लेना! शारदा को वाणी का प्रतिक माना गया है! भजन पूजन या किसी अन्य कार्य में उसकी शुरुआत करने के पहले मन को और वाणी को सही तरीके से मनाना जरुरी है! वाणी में मर्यादा, निर्मलता, कोमलता प्रेम स्नेह रखना बहुत जरुरी है! इसीके लिए अपने मन को और वाणी को सही ढंग से रखने के लिए इस पंक्ति का उपयोग हुआ है!
હા રે હા જમીન આસમાન મુળ વિના માંડયું જી,
जमीन और आसमान को बिना किसी आधार के रख रखा है! इसका अर्थ हम अपनी धरा को भी समझ सकते है! परन्तु ये ऐसा नहीं है! जमीन याने पैर गगन अर्थ शुन्य शिखर हमारे मस्तिष्क की तालु या यूँ कह सकते है! की शरीर का अंत तालु भाग! जब गणेश बिठा लेते है! शारदा माँ को मना लेते है! तो अकारण ही भजन की धुन या कार्य की लगन हमें उसमे बांध लेती है! इसी बात को यहाँ दर्शाया गया है!
થંભ વિના આભ ઠેરાવ્યો રે.
किसी स्तम्भ के बिना ही आभ या कहे की आकाश ठहरा हुआ है! परन्तु ऐसा नहीं है! मन और आकाश में ज्यादा अंतर नहीं है! या कह सकते है की अंतर है ही नहीं! मन चंचल और अनन्त है आकाश की तरह ही! आकाश का कोई और छोर नहीं दीखता है! मन का भी कुछ ऐसा ही है! दोनों ही अनन्त कहानियों विचारों और दूरदर्शिता से भरे पड़े है! बिना किसी आधार के ऐसे ठहर जाते है ये दोनों चीज़े हमारा मन हमारे पैर बंध से जाते है! जैसे आसमान और ये जमीन!
હા રે હા સુન શિખર ગઢ અલક અખેડાજી,
शुन्य शिखर अर्थात हमारा मस्तिष्क जो की सुरता लगने की सूरत में ध्यान की अवस्था में सुखमन द्वार को खोलती है! इसके दृश्य अलख है! इसकी अनुभूति इसका दृश्यन्त अलख अगम है!
વરસે નુર સવાયો રે.
ध्यान की सूरत में जब आदमी पहुंचता है! तो उसे भूख प्यास कुछ नहीं लगती है वह तल्लीन हो जाता है! ध्यान की अवस्था में प्रकाश के दर्शन होते है! जो न जाने कितने सूर्य के प्रकाश के सामान होते है! उस नूर, उस प्रकाश की बात यहाँ की है!
હા રે હા ઝળહળ જયોતું દેવા તારી ઝળકેજી,
कोटि सूर्य के प्रकाश के दिए की ज्योति के सामान उस देवता तत्व के दर्शन होते है!
દરશન વિરલે પાયો રે.
ये दर्शन करना हर किसी के वश के बात नहीं है! इसे करने वाला कोई ध्यानी ग्यानी और निडर निर्भीक बिरला पुरुष ही होता है!
હા રે હા શોભાજીનો ચેલો પંડિત દેવાયત બોલ્યા જી,
સંતનો બેડલો સવાયો રે.
देवायत पंडित लिखित ये भजन संत की महिमा का बखान करता है! और बताता है! की संत चरण में जाके हम इन सभी अनुभूतियों को प्राप्त कर सकते है!
यहाँ जितना हो सकता था मैंने टूक में लिखने का ही प्रयास किया है! यदि किसी को और गहरे तरीके से इसे जानना हो तो मुझे सीधे संपर्क कर सकता है!
પ્રૂથ્વી માલેક તારો પાર ન પાયો રે,
પ્રૂથ્વી માલેક તમે તારો તો અમે તરીએ
હા રે હા ગવરીપુત્ર ગણેશ દેવને સમરોજી, સમરો શારદા માત.
હા રે હા જમીન આસમાન મુળ વિના માંડયું જી,
થંભ વિના આભ ઠેરાવ્યો રે.
હા રે હા સુન શિખર ગઢ અલક અખેડાજી,
વરસે નુર સવાયો રે.
હા રે હા ઝળહળ જયોતું દેવા તારી ઝળકેજી,
દરશન વિરલે પાયો રે.
હા રે હા શોભાજીનો ચેલો પંડિત દેવાયત બોલ્યા જી,
સંતનો બેડલો સવાયો રે.
इस भजन को गणपति बिठाने के सन्दर्भ में गाया जाता है
आज हम इसके अर्थ को समझने करेंगे!
ગુરૂ તારો પાર ન પાયો રે,
गुरु! गुरु के सन्दर्भ में हम पहले भी बहुत कुछ बोल और लिख चुके है गुरु के सन्दर्भ में तो हमने काफी दिनों तक सत्संग का कार्यक्रम भी किया फिर भी इतने ज्ञानियों ने मिलके भी जो कुछ बोल बोले उसके बावजूद भी सभी का एक ही निष्कर्ष था की ये तो टूक मात्र है अभी तो इसमें बहुत कुछ बाकी है! और ये सही बात है! गुरु के सन्दर्भ में पूरी तरह बोल पाना या उनको सही सही परिभाषित करना अर्थात सूरज को दिया दिखाने जैसा ही है!
गुरु तारो पार न पायो
सही बात है ऐसे गुरु पाना मुमकिन नहीं है! ये गेब की तरह ही है! जिसे समझ सकते है! महसूस कर सकते है! परन्तु बोल नहीं सकते है! माप नहीं सकते है!
પ્રૂથ્વી માલેક તમે તારો તો અમે તરીએ
हमने पहले भी इस विषय में चर्चा की है! की संतो ने इस शारीर को पृथ्वी कहा है! और गुरु चरण में जाने के बाद में हम अपने आप को पूरी तरह से उनके सुपुर्द कर देते है! और उन्हें अपना सर्वस्व मान लेते है! ये जरुरी भी है! सिर्फ बातो में नहीं बल्कि व्यवहार में भी! जब हम अपने आप को पूरी तरह से गुरु के सुपुर्द कर देते है! तब गुरु हमे अपनी ज्ञान गंगा में नहाने का अवसर प्रदान करा देता है! गुरु की ज्ञान गंगा में नहा के, इसमें डुबकी मार के ना जाने कितने तर गए है! इस भजन में भी गुरु से उसी ज्ञान गंगा में हमें डुबकी लगाने की बात कही है! ताकि हम तर सके भव पार उतर सके!
उस गुरु से जिसे हमने हमारा पूरी तरह से सब कुछ अर्पण कर दिया है! हमने उसे हमारा मालिक हमारा साहेब समझा है! उससे हम हमें तारने की विनंती करते है! उससे कहते है की यदि उनकी दृष्टि पड़े और वह चाहे तो हम तर सकते है!
હા રે હા ગવરીપુત્ર ગણેશ દેવને સમરોજી, સમરો શારદા માત.
गौरी पुत्र गणेश! और शारदा मात!
कहने को तो गणेश और गौरी शारदा माँ को कौन नहीं जानता है! परन्तु यहाँ बात संतो की हो रही है! और संतो ने सब कुछ इस शरीर के अंदर ही बताया है! तो हम इस ढंग से ही इसे समझने की कोशिश करेंगे
गौरी पुत्र, गौरी शक्ति का प्रतिक है! उत्तेजना है! चाहत है! और इस शक्ति के वश में है मन! मन को गणेश की उपाधि दी है! गणेश बिठाना अर्थात अपने मन को करना! मन को उस कार्य के प्रति बाधित कर लेना! शारदा को वाणी का प्रतिक माना गया है! भजन पूजन या किसी अन्य कार्य में उसकी शुरुआत करने के पहले मन को और वाणी को सही तरीके से मनाना जरुरी है! वाणी में मर्यादा, निर्मलता, कोमलता प्रेम स्नेह रखना बहुत जरुरी है! इसीके लिए अपने मन को और वाणी को सही ढंग से रखने के लिए इस पंक्ति का उपयोग हुआ है!
હા રે હા જમીન આસમાન મુળ વિના માંડયું જી,
जमीन और आसमान को बिना किसी आधार के रख रखा है! इसका अर्थ हम अपनी धरा को भी समझ सकते है! परन्तु ये ऐसा नहीं है! जमीन याने पैर गगन अर्थ शुन्य शिखर हमारे मस्तिष्क की तालु या यूँ कह सकते है! की शरीर का अंत तालु भाग! जब गणेश बिठा लेते है! शारदा माँ को मना लेते है! तो अकारण ही भजन की धुन या कार्य की लगन हमें उसमे बांध लेती है! इसी बात को यहाँ दर्शाया गया है!
થંભ વિના આભ ઠેરાવ્યો રે.
किसी स्तम्भ के बिना ही आभ या कहे की आकाश ठहरा हुआ है! परन्तु ऐसा नहीं है! मन और आकाश में ज्यादा अंतर नहीं है! या कह सकते है की अंतर है ही नहीं! मन चंचल और अनन्त है आकाश की तरह ही! आकाश का कोई और छोर नहीं दीखता है! मन का भी कुछ ऐसा ही है! दोनों ही अनन्त कहानियों विचारों और दूरदर्शिता से भरे पड़े है! बिना किसी आधार के ऐसे ठहर जाते है ये दोनों चीज़े हमारा मन हमारे पैर बंध से जाते है! जैसे आसमान और ये जमीन!
હા રે હા સુન શિખર ગઢ અલક અખેડાજી,
शुन्य शिखर अर्थात हमारा मस्तिष्क जो की सुरता लगने की सूरत में ध्यान की अवस्था में सुखमन द्वार को खोलती है! इसके दृश्य अलख है! इसकी अनुभूति इसका दृश्यन्त अलख अगम है!
વરસે નુર સવાયો રે.
ध्यान की सूरत में जब आदमी पहुंचता है! तो उसे भूख प्यास कुछ नहीं लगती है वह तल्लीन हो जाता है! ध्यान की अवस्था में प्रकाश के दर्शन होते है! जो न जाने कितने सूर्य के प्रकाश के सामान होते है! उस नूर, उस प्रकाश की बात यहाँ की है!
હા રે હા ઝળહળ જયોતું દેવા તારી ઝળકેજી,
कोटि सूर्य के प्रकाश के दिए की ज्योति के सामान उस देवता तत्व के दर्शन होते है!
દરશન વિરલે પાયો રે.
ये दर्शन करना हर किसी के वश के बात नहीं है! इसे करने वाला कोई ध्यानी ग्यानी और निडर निर्भीक बिरला पुरुष ही होता है!
હા રે હા શોભાજીનો ચેલો પંડિત દેવાયત બોલ્યા જી,
સંતનો બેડલો સવાયો રે.
देवायत पंडित लिखित ये भजन संत की महिमा का बखान करता है! और बताता है! की संत चरण में जाके हम इन सभी अनुभूतियों को प्राप्त कर सकते है!
यहाँ जितना हो सकता था मैंने टूक में लिखने का ही प्रयास किया है! यदि किसी को और गहरे तरीके से इसे जानना हो तो मुझे सीधे संपर्क कर सकता है!
जिसे कुछ भी समझने में या गैरसमझ हुई हो तो वह हमसे संपर्क कर सकता है!
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