"नाम" नागेश जय गुरुदेव (दीपक बापू)

शुक्रवार, 8 जुलाई 2016

थोड़ी सी ज्ञान की बात भाग ५

थोड़ी सी ज्ञान की बात भाग ५

पिछली बार हमने मोक्ष की बात की थी उसके बारे अपने हिसाब से समझने की कोशिश की थी! हमने देखा की कैसे किन किन चरणों में हम उसके तरफ बढ़ सकते है!

इस बार हम जो बात कर रहे है! वह एकदम साधारण सी व्यक्ति परिचय को लेकर है! इसके बारे में हमने पहले भी कुछ न कुछ लिखा ही है, फिर भी पता नहीं क्यों ऐसा लगता है की उसके बारे में और लिखना चाहिए!

और जरुरी भी है!

हम बात शुरू करते है एक कहानी से
"एक लड़का था...."

बस अब सोचिये कहानी का नाम आया लड़के का नाम आया अब आप के मन के अंदर कुछ विचार ने घर कर लिया होगा लड़का मतलब १२ से लेकर १५ साल के बिच का होगा! विद्यालय के तरफ जाता होगा! कोई खेल खेल रहा होगा! ऐसे ही हर किसी ने अपने हिसाब से उस लड़के की छबि बस इस एक लाइन में बना ली होगी! दिल पे हाथ रखिये और कहिये, आप ने अपने बच्चे को भी देखा होगा और ऐसा ही कुछ न कुछ सोच लिया होगा!

ये सही है और जरुरी भी है इंसानी दिमाग इतना पावरफूल है की वह कोई भी छबि तुरंत बना लेता है जो उसने प्रत्यक्ष देखि है उसमे वह तुरंत ही किसी किरदार को जोड़ लेता है! और आज कल तो सिनेमा सीरियल इतने हो गए है की जो प्रत्यक्ष नहीं देखे है किसी किरदार को उनको इन सिनेमा वालो के हिसाब से जोड़ लेते है!

कुछ लोगो का दिमाग इतना पावरफूल होता है की सिनेमा देखते देखते आगे क्या होगा या क्या हो सकता है वह भी बताने लगते है! ऐसे लोग अक्सर बोर ही करते है! क्योंकि इनके कारन दूसरों का मज़ा ख़राब होता है!

व्यक्ति अक्सर ऐसा सोचता है की वह ज्ञानी है! और होता भी है! परन्तु उसको कमियाबी नहीं मिल पाती इसका कारन क्या है! आखिर जो व्यक्ति दूसरों को रास्ता दिखा सकता है, जिसमे इतना ज्ञान भरा पड़ा है! जिसको सब कुछ पता है! भला बुरा होनी अनहोनी सब कुछ! वह खुद धोखा कैसे खा जाता है! वह क्यों अपने आप को स्थापित नहीं कर पाता है! क्यों वह हर बार गिर जाता है! इसका कारन दुनिया खोज रही है! इनके ऊपर तो कितने लोगो ने पीएचडी भी कर लिया है! फिर भी निष्कर्ष निकल नहीं रहा है! एक फल के गिरते ही न्यूटन ने ग्रेविटी की खोज कर दी पर मानवता आज की तारीख में इतनी गिर रही है उसके गिरित्वकर्षण(गिरने के आकर्षण) की खोज कौन कर रहा है! और अगर कर रहा भी है तो खोज पूरी क्यों नहीं हो रही है! और अगर हो गयी है तो उसका निदान क्यों नहीं हो रहा है!

कारन सीधा है! "अहंकार" लोग अक्सर अहंकार के वशीभूत हो कर अपने ज्ञान का सर्वनाश कर देते है! अपनी शक्ति को क्षीण कर देते है! उन्हें पता भी नहीं चलता है और वह लोगो की नज़र से गिर जाते है! हर तरफ से अपमान सहन करना पड़ता है! लोग उन्हें धोखे में रखते है और समय देख के कन्नी कांट लेते है! मुंह में राम बगल में छुरी ये कहावत यहाँ एकदम सही बैठती है! कन्नी कांटने वाले कोई बुरा नहीं सोचते है! परन्तु उन्हें ये बर्दाश्त नहीं हो पाता है! इसका कारन वह लोग नहीं है जिन्होंने साथ छोड़ा होता है! उसका कारन खुद वही व्यक्ति है जिसने अपने आप को गलत तरीके से पेश किया! उसके ज्ञान ने उसका विनाश कर दिया या कह सकते है की ज्ञान ने विनाश के तरफ धकेल दिया है!
इससे बचने का उपाय भी है! उपाय आज थोड़े से शब्दों में लिखूंगा और चाहूंगा की ३ दिन कर के देखिये उसके बाद निष्कर्ष दीजिये और तभी आगे बढ़ेंगे

सब से पहले तो जो लोग आप से नाराज़ है या जिन्हे ऐसा लगता है की आप अहंकार में आ गये है पता कीजिये की ऐसा कौन सा व्यवहार था जिसके कारन उन्हें ऐसा लगा और उसे बंद कर दीजिये! यह कार्य ३ दिन कर के देखिये उसके बाद में हम आगे बढ़ेंगे!

आप ने यदि इस व्यवहार को अगर अपनाया होगा तो आप ने देखा होगा की वह लोग थोड़ा शांत हो गए है और आपस में खुसर फुसर चालू हो गयी है! इसके लिए चिंता करने की जरुरत नहीं है ये तो आदत होती है! हमें अपने आप को श्रेष्ठ बनने की जरुरत होती है! हमें नहीं देखना है की दूसरे लोग क्या सोच रहे है या दूसरे लोग किस तरह का व्यवहार हमसे चाहते है! जरुरी है की हम जो कर रहे है उसका पता हमें खुद तो है ही तो हमे देखना है की क्या हमारा व्यवहार सही है! मैंने पहले भी कहा था की जो बर्ताव हम हमारे साथ नहीं चाहते है वह बर्ताव हमें दूसरों के साथ भी नहीं करना चाहिए! बस इतनी सी बात का यदि हम पालन कर ले तो बहुत सी मुश्किल आसान हो जाती है!


बहुत बार देखा जाता है की मनुष्य अपने आप को बहुत ऊपर समझने लगता है! इस धारणा को बदलने की जरुरत है! इस दुनिया में हर व्यक्ति अपने आप के अंदर श्रेष्ठ ही है! और आप से कही से भी काम नहीं है! आज जो पैदा हुआ है कल वह भी बड़ा होगा! आज आप ने स्नातक किया है कल वह भी करेगा! इसीलिए उम्र या अनुभव के हिसाब से किसी के बुद्धि की गिनती मत कीजिये! आप को ये हक़ किसी ने नहीं दिया है की आप किसी की बुराई करे या सुने! ये करना ही सब से बड़ा पाप है! इससे आप के पुण्य का क्षय होता है!
आप दुनिया में कोई भला काम करे या न करे परन्तु ये बुराई करने वाली गलती आप से नहीं होनी चाहिए!
ठीक इसी प्रकार यदि आप रोज़ सत्कर्मो का अम्बार लगा देते है! तो भी एक बुराई आप के सारे कर्मो को शुन्य कर देगी इसीलिए आप को बहुत जरुरत है इन बातो में ध्यान देने की

व्यक्ति की आदत होती है किसी को भी यदि वह बढ़ता हुआ या सही दिशा में जाता हुआ देखता है तो उसे तकलीफ होने लगती है! वह उसकी टांग खींचना आरम्भ कर देता है! जो लोग उसका साथ देते है उन्हें भड़काने की कोशिश करने लगता है! हर तरफ से उसे अकेला कर देना चाहता है! और आखिर ऐसा क्यों?? इसका कारन कुछ नहीं है! ऐसे व्यक्ति का कुछ लेना देना होता नहीं है! बस उसे अच्छा नहीं लगता है! किसी का भी भला उससे देखा नहीं जा सकता है! ये बाते भलाई की करेगा पर भलाई से इसका कोई लेना देना नहीं रहता है! सिर्फ बड़ी बड़ी बातो का ही इसके पास अम्बार लगा होता है! ये व्यक्ति सिर्फ बुराई सुनाने का और सुनने का आदि होता है! जब तक आप किसी की बुराई इसके सामने करेंगे या इसकी की हुई बुराई को आप सुनेंगे तब तक आप अच्छे है! मगर जहां आपने काम की बात शुरू की इसे तकलीफ हो जाती है! ऐसे लोगो को पहचानने की जरुरत है! ऐसे लोगो से दूर रहने की जरूरत है!  मगर क्या करे गलती सिर्फ निंदा करने वाले की नहीं हमारी भी है जो हम सुन के उसको बढ़ावा दे रहे है!


हर बात कहीं नहीं जाती है! हर दर्द बया नहीं होता है!
कुछ फासले रखने पड़ते है निगाहों में........
हर बार वो बात नहीं होती!!!!

कई बार हम जहाँ होते है! उस जगह हमे होना नहीं चाहिए! लोगो के नज़र में हम अच्छे बने रहे! उन्हें हमसे तकलीफ़ ना हो ये सोच कर हम वहाँ बने रहते है! दूसरों की ख़ुशी के लिए हम हमारे ख़ुशी का त्याग कर देते है! ये बहुत अच्छी बात है! दूसरों के नज़र में! सही भी है! दूसरों के नज़र में, पर पता नहीं क्यों मैं इस बात से बैर रखता हूँ! मैंने पहले भी कहा है! की हर व्यक्ति आज़ाद है! वह अपनी सोच रख सकता है! मैं भी अपनी सोच रखता हूँ! इस बारे में! और मेरा सोचना ऐसा है की अगर तुम्हें कहीं अच्छा नहीं लग रहा है! तुम्हारे विपरीत बातें चल रही है! या भजन कुछ हट के हो रहा है! बिना सर पैर की बातें चल रही है! तो मैं तो यही कहूँगा जब तक सहनशीलता है, तब तक सहन करो वरना उठ के चल दो! क्योंकि वहा खड़े रहने से आप का दिमागी संतुलन भी हिल सकता है! आप के दिशा में विघ्न आ सकता है! बड़े बड़े ज्ञानियो ने कहा है की जिसने भी नौ शक्ति पे विजय पायी और जिसने सहन शक्ति पे विजय पायी वह एक जैसे ही है! इस दुनिया में हर तरह की भक्ति शक्ति सब धरी की धरी रह जाती है, यदि आप में सहन शक्ति ना हो!
सहन शक्ति के तो क्या कहने है! मगर क्यों सहन करे! सहन करने की क्या वजह है! कोई ख़ास वजह अक्सर नहीं होती है! मजबूरी होती है! मजबूर बनते है हम! या यूँ कह सकते है की शुरुआत से ही हमे मजबूर रहने की आदत हो गयी है! सरकार, स्कूल, कार्यालय, दुकान, घर - परिवार, दोस्त ये सभी ने हमें मजबूर रह के जीने सीखा दिया है! और हम इससे बाहर भी नहीं आते है! और अगर कोई जाने की कोशिश करता है! सभी मिल के उसको समाज के विरुद्ध बताते है! उसकी निंदा शुरू कर के उसको अलग कर देते है!

गलत बात है! आप को दृढ होना पड़ेगा! किसी दूसरे को तकलीफ ना हो ये जरुरी है! मगर हम तकलीफ झेले ये जरुरी नहीं है! समय के साथ चलना चाहिए! बदलाव लाना चाहिए मगर हर बार हम ही बदले ऐसा तो नहीं है ना?? बदलना आप को भी है! उन्हें भी है! सही से खड़े होना चलना भागना आप ने सिखाया और अगर मैं थोड़ा ज्यादा तेज भाग रहा हूँ तो तकलीफ किस बात की! आप को खुश होना चाहिए की जिस बीज को आप ने बोया उसमे फल आ गए! मगर आप खुश नहीं है! माली खुश है तो देखने वाले खुश नहीं है! की हमारे सामने जिस पौधे को लगाया गया वह बड़ा हो रहा है! ऐसा क्यों होता है! क्योंकि वह सोचता है! गलत ढंग से सोचता है! वह सोचता है की यह हमसे आगे नहीं जाना चाहिए! ज्ञान घमंड देता है! मानो या ना मानो मगर ज्ञान और घमंड का चोली दामन वाला साथ है! पति - पत्नी, भाई - बहन, माँ-पिता, काका - काकी, दोस्त - यार घर - बार ये सब बोलने वाली जैसी बाते है! ठीक वैसे ही ज्ञान-घमंड भी साथ साथ ही है! ये आना ही है जरुरत है इसे एक्सेप्ट करने की और यदि सही है तो ही एक्सेप्ट करिये वरना बड़े प्यार से समझा दीजिये की ये गलत है और कहा गलत है!
रास्ता सिर्फ बनाया जाना बड़ी बात नहीं होती है! उसपे चलना और चलाना भी जरुरी है!

Kramash::

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