"नाम" नागेश जय गुरुदेव (दीपक बापू)

बुधवार, 27 जुलाई 2016

How Life Changes/जीवन बदलता कैसे है

      मैं नहीं जानता हूँ की ये शुरुआत क्यों हो रही है! पर ये जानता हूँ की बात निकली है तो दूर तक जाएगी!
हर किसी को दुनिया में आने के बाद एक किरदार मिल जाता है जो इसे बखूबी निभा जाता है उसे सब याद करते है, और जो नहीं निभा पाता है उसकी यादें कुछेक के पास पड़ी पड़ी धुल खाती रहती है!

       बड़ी मुश्किल से मनुष्य देह मिलती है, इसका इस्तेमाल सही तरीके से करना चाहिए, जिस वचन की पूर्ति के लिए हम धरती पे आये है वह पूरा करना चाहिए! इसे पूरा करना ही हमारा एक मात्रा उद्देश्य होना चाहिए!

यहाँ मैं कुछ सच्चाई कहानी के रूप में लिख रहा हूँ इसे आप जीवनी समझिये या जो चाहिए वह समझिये मगर इसके जरिये अगर मैं आप को कुछ समझ पाऊ या आप के लाइफ में कोई चेंज ला पाऊ तो ये मेरे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होगा!

 (1) How Life Changes
           जीवन बदलता कैसे है

  दुनिया बहुत बड़ी है! उसमे ज़मीन के टुकड़ो के अनेक विभाजन हुए है और सभी अपनी अपनी सत्ता कायम कर के उन टुकड़ो को देश विदेश का नाम दे दिया है! ऐसा ही एक देश जिसमे संस्कृति, साहित्य, सन्मान, धर्म, सद्भावना, दया आदि चरित्रवान चीज़े फलती फूलती है! ऐसे ही देश के एक बड़े नगर मुम्बई में एक छोटे से कोने में उस लड़के का जन्म हुआ, जिसकी कहानी हम यहाँ देखेंगे!

  बरसात के दिन थे वो, जब उसका जन्म हुआ, और दुनिया के लिए तो बस एक जनगणना में गिनती बढ़ी थी पर उसके घर के लिए तो उस दिन सभी की ख़ुशी का दिन था! शायद!!    आप सोच रहे होंगे की शायद क्यों? आगे पता चलेगा!!  हर बच्चे की तरह उसका बचपन भी बीतना था पर घर की हालात और लड़के की बदनशीबी ने ४ ५ साल की उम्र में ही उसको सड़क किनारे ठेले पे बैठना सीखा दिया! घर वालो के साथ में वह भी पढाई लिखाई कर के वही ठेले पे लग जाया करता था! बचपन से ही खेल कूद का मनोरंजन का शौक हर किसी को होता ही है! उसे भी था पर पूरा हो नहीं पाता था! और अगर पूरा करने चले भी जाए तो घर से पिताजी का डंडा, माँ की बेलन, चप्पल हर घरेलु औजार उसके इन्तेजार में पलकें बिछाए बैठा रहता था!

चाहते हुए भी उस दिशा में बढ़ पाना तो मुश्किल था! जैसे तैसे अंग्रेजी माध्यम से हिंदी माध्यम में तबादला हो गया उसका! कारन पता नहीं क्या था या शायद वह बताना नहीं चाहते होंगे! धीरे धीरे गाडी आगे बढ़ी मेट्रिक तक पहुची! एसएससी की पढाई को बहुत ही मुश्किल समझा जाता है! तरह तरह के कोचिंग लगाए जाते है बच्चो के पर अपने उस्ताद कहा कोचिंग में जायेंगे तो घर पे ही जो समय मिलता उसमे पढ़ते! इम्तिहान के दिन सर पे थे! बोर्ड की परीक्षा का समय कुछ इस तरह होता है सुबह ११ बजे से २ बजे तक! तो इम्तिहान में भी वह २ बजे इम्तिहान देके निकलते २.१५ बजे घर पहुचते और २.३० बजे अपने पिताजी के ठेले पे पहुच जाते! फिर तो ६ उनके वही बजते थे ना नुकुर की कुछ बोला तो चप्पल डंडे तो हाज़िर ही है! घर पहुच के भी कुछ हो न पाता फिर कुछ ही देर में दोबारा ठेले से बुलावा आता टी ब्रेक का जो नहीं नहीं कर के १ घंटे का होता था उसके बाद ठेले को बंद करने की जिम्मेदारी फिर घर आके लाइट बंद और सो जाना! बिचारे सुबह सुबह २ या ३ बजे जागते बाहर जाते और पढ़ते उजाला होते ही घर पे आते और पढ़ते ९ बजे ठेला लगा के देते और इम्तेहान देने पहुच जाते! जैसे तैसे इम्तिहान ख़तम हुए फिर तो २४ घंटे के ठेले चलाने लगे!

अब लाइफ में चेंज आने को था इम्तिहान के रिजल्ट आये उत्तीर्ण हो गए थे अब तो कॉलेज जाने की तैयारी  थी साथ साथ कंप्यूटर में भी हाथ आजमाया बारहवीं भी उत्तीर्ण हुए उसके बाद घर से और ठेले से बाहर निकल के जॉब ज्वाइन की कंप्यूटर चलाते चलाते कब उसे बनाना सिख लिया पाता ही नहीं चला! और फिर गाडी ने  रफ़्तार पकड़ ली! सबकुछ सही से चलने लगा! नए नए किरदार जुड़ते गए! और लड़का अब लड़का न रहा! शादी हुयी! सब कुछ सही से चल ही रहा था की जीवन ने फिर से करवट ली! और कारोबार की शुरुआत हुयी! काफी अच्छे ढंग से शुरुआत हुयी! पर कुदरत को शायद ये मंजूर न था! और एक अकस्मात् चोरी ने सब कुछ पलट के रख दिया! कारोबार में भारी नुकसान हुआ! जो कुछ जमा पूंजी थी उसमे भी नुकसान की भरपाई नहीं हो पायी! बाहर से कर्ज लेना पड़ा! और कर्ज के बोझ तले तो अच्छे अच्छे दब जाते है! फिर इसकी कहा बिसात थी! बर्बादी ने घेर लिया! एक अच्छा जीवन शुरू होने के पहले ही ख़त्म हो गया!

ऊंचाई से गिरा के ज़मीन पे समय ने इस कदर पटका की खड़े होने की ताकत भी नही रही! फिर नशे ने घेर लिया! अब तो दिन रात बस नशे का शराब का ही सहारा रह गया था!  परिस्थिति नशे में और भी गिरती गयी! दाने-दाने के मोहताज़ हो गए ऐसी नौबत आ गयी घर छूट गया! रिश्ते टूट गए! दोस्त बिखर गए! ज़िन्दगी की हक़ीक़त दिखने लगी! नया पुराना सब याद आने लग गया! लोगो ने ताने देने शुरू कर दिए, और भाई दे भी क्यों नहीं! इसने कौन सा सही काम किया था! समय ने धोखा दिया तो नशे का ग़ुलाम बनने की जरुरत क्या थी! समय से लड़ा जा सकता था! पर कौन समझाए! ताना देने तो सब आये! पर समझाने कोई नहीं!

फिर एक दिन कुछ सत्संगियो का साथ मिला! और जीवन ने फिर से नया मोड़ लिया! नाश छुटा, बुरी सांगत छूटी! कर्ज तो ज्यो का त्यों रहा! पर सत्संग ने नयी उम्मीद भरी थी तो झेलते चल दिए! भजन सुने! समझे! नये नये खोज में लग गए! रहस्य को जाना! और अब उस रहस्य को पूरी तरह से समझने की कोशिश शुरू की है!
आगे आगे देखिये होता है क्या!
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यह कहानी बदलाव पे थी जिसमे बताया की कितने जल्दी जल्दी इस जीवन में उतार चढ़ाव आते है! कैसे अपने बेगाने और बेगाने अपने बन जाते है! दुनिया की कोई ताकत जो काम नहीं कर पाती है! वह भजन और सत्संग एक क्षण में कर देता है!

इन सभी बदलाव के बिच में जो भी घटा उसे भी हम आगे चल के देखेंगे कहानी के शेष अंश में तब तक के लिए आप के लिए ये एक सोच दी है जिसे आप को सोचना है, समझना है! और मंथन करना है! की गलती किसकी थी! और सही कौन था! बदलाव कब आना चाहिए था! और कब नहीं आना चाहिए था! नशा क्यों हावी पड़ा!  नशा क्यों छूट गया!

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