अगर खोज सकता है (Original Version by Nagesh)
अगर खोज सकता है भीतर तो खोज कर
जाग सकता है भीतर तो खोज कर
ना कर इन्तेजार किसी बाहरी क्रांति की
ये अंदर ही दबी है बस्स खोज कर!
ना तृष्णा मिटेगी, ना इच्छा हटेगी!
ख़तम जड़ से हो जाए कुछ ऐसा नया कर!
तेरे तिमिर को मिटाना जरुरत
मिटा दे इसे बस्स दिए की खोज कर!!
है पतझड़ अभी तो बसंत भी होगा!
सुखी है धरती तो सावन भी होगा!
है झीलें, पहाड़ी कतारो में बैठी!
हरियाली भी होगी तू बस्स खोज कर!
तेरे ज्ञान का तू पुलिंदा बना दे!
है नाला यहाँ पे इसे तू बहा दे!
है तेरे ही भीतर वो झरना, सरिता!
फकत तैर जा तू बस्स खोज कर!!
ये बगिया, चमन ये फिर लहरा उठेंगे!
पुष्प हजारो अधर में खिलेंगे!
है थोड़ी सी देरी तू कुछ सबर कर!
है खुशबू यही पे, तू बस्स खोज कर!!
है बरसों से बंजर अगर तेरी धरती!
तो पानी भी उतना बहाना पड़ेगा!
नए बीज लाकर लगा दे ये पौधे!
उपजाऊ है तू भी, तू बस्स खोज कर!!
जो आता नहीं है जो दीखता नहीं है
जो मिलता नहीं है उसी और जाना!
है संसार झूठा, है झूठी हर मूरत!
तू ही एक सत् है, तू बस्स खोज कर!!
हैं खाई बड़ी सी इसे भर के लेना!
हो खाली ज़रा तू, जो रखा है भर कर!
दिखा इनको बहार का रस्ता अभी से!
है सुन्दर वो आनंद, तू बस्स खोज कर!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Please inform direct to admin if things are not proper