"नाम" नागेश जय गुरुदेव (दीपक बापू)

मंगलवार, 15 नवंबर 2016

थोड़ी सी ज्ञान की बात भाग ७ - Thodi si gyaan ki baat Bhaag 7

थोड़ी सी ज्ञान की बात भाग ७


चार खाणी याने के सृष्टि में जन्मने वाली ४ अलग अलग अवस्थाये!
इंड पिंड स्थावर ओसवाल
इसमें हमारी खाणी पिंड जिसमे ३ गुण ५ तत्व मिल के ये अष्टधा का बगीचा बना
जिसमे प्राण या आत्मा या परमात्मा जो भी कहें, नाम का भंवरा बैठा हुआ है! और वही इस बगीचे में फूल को खिला रहा है! खैर इतना तो हम सभी जानते है!
बची हुयी तीनो खानियों का क्या??
इन तीनो में कितने गुण कितने तत्व है?? इसकी जानकारी यदि किसी ने दी है तो सब से पहले वह थे कबीर साहेब!
जिसके विचार इतने उच्च कोटि के थे वह आदमी कैसा होगा??
मुझे पता नहीं कबीर थे या नहीं थे मैंने देखा नहीं है उनको
जहां तक मैं जानता हूँ वह तो लिखना भी नहीं जानते थे! उन्होंने तो बस वैखरी का सहारा भर लिया है! इन सभी को उनके शिष्यो ने लिखा या ये भी मान सकते है की ये सब किसी और दिमाग की उपज है!! चाहे जो भी हो पर है तो मजबूत इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है!
गीता रामायण ये सब भी मुझे तो कभी कभी किसी एक ही दिमाग की उपज लगते है जिस कारण ये दोनों में ही जोड़ संभव हो सका है!
युग के हिसाब किताब में यदि हम जाए तो सब बाते खोखली हो जाती है! वेद के अनुसार ही?
मगर बोलने और सफाई पेश करने वाले कह देते है की हर बार राम का रावण का जन्म हुआ है!
कृष्ण का कंश का जन्म हुआ है!(बात कांटते हुए!)
आज कल तो सोशल मीडिया में भी बड़ी सुर्खिया होती है
राम रावण
कृष्णा कंश
ओबामा ओसामा
हंसी आती है लोगो के तर्क पे कितना सोच लेते है! यदि इसी तर्क पे चलना होता तो हिरण्यकश्यप को मारने वाला नरसिंह क्यों? इसका जवाब नहीं होगा शायद कुछ तर्क ये पढ़ने के बाद में वह बिठा भी ले
मगर ओशो की भाषा में (मुझे क्या?)
जिस गीता के बल पे कृष्ण को भगवान् साबित करते है वह गीता ही कहती है की वह महापुरुष थे योगेश्वर थे जो दूसरे में भी योग जागृत कर सकते थे ऐसे तो हमारे स्वामी विवेकानंद जी भी थे! मतलब वह भी भगवान् हुए! मानने वाले मान भी लेंगे! और मानना भी चाहिए!
क्या आप ने गीता सही ढंग से पढ़ी है! उसमे मार काट खून खराबे वाली बात कहीं नहीं है! सिर्फ आंतरिक युद्ध की ही बात की है कृष्ण ने! कोई दुर्योधन द्रोणाचार्य थे ही नहीं ये सब अपने भीतर ही है!
योगेश्वर कृष्णा ने गीता में ही कुरुक्षेत्र की सही जगह भी बताई है फिर भी आदमी क्यों आँखो के होते हुए अंधा बनता है?

मैं बताता हूँ!! जितना मुझे पता है वह हिसाब से तो ऐसा ही लगता है की ये जो जंजीर पाँव में पड़ी है ना! इसे काफी समय हो चूका है पड़े पड़े तो अब इस के साथ स्नेह बांध चूका है! प्यार हो गया है! इसके साथ में! कभी हाथी को देखा है उसके पाओ में रस्सी बाँध के खूटे से गाड़ दिया जाता है बचपन से ही! तब उसमे खूंटे को तोड़ने की ताकत नहीं होती है धीरे धीरे कर के वह ये मान लेता है और बड़े हो जाने तक भी उसके भीतर वह ताकत नहीं आ पाती है! वह उसका आदि हो जाता है! ऐसा कई जानवरो के उदहारण है जिसमे पहले उन्हें डरा के धमका के उन्हें लालच देके काम करवा लिया जाता है! फिर धीरे धीरे कर के उन्हें इसकी आदत पड़ जाती है और फिर मेहनत नहीं करनी पड़ती है खुद-बा-खुद सब होने लगता है! क्यों? क्योंकि उन्हें उसके साथ लगाव हो जाता है, एक सम्बन्ध जुड़ सा जाता है!
सोचिये जानवर में और हम में क्या फर्क रह गया वह भी बांध गए और हम भी! वह भी कुछ नहीं कर पा रहे है और हम भी! ऐसी ही दशा अध्यात्म और धर्म के मामले में हमारी है! हम जानते है मानते है मगर क्या? वही जो दुसरो ने बताया जो सदियो से चल रहा है!
   मैं पूछता हूँ आप से, आप सभी से की सदियो से चली आ रही इस परंपरा ने क्या दिया है! सिवाय धोखे के! सर और सिर्फ धोखा! अपने भीतर झाँकने की तरकीब तक से हम वंचित है! जिसे मंदिर मस्जिद गिरिजा घर में जा - जा कर ढूंढ रहे है! जिसके लिए सब परपंच फैला के रखे है! वह तो दिख ही नहीं रहा है!
हर वेद पुराण कुरआन बाइबिल सभी शाश्त्र एक ही बात चिल्ला चिल्ला कर कह रहे है! भीतर झांको - भीतर झांको!! मगर नहीं, हम नहीं झाकेंगे! अरे भाई क्यों झांके?? हमारे पंडित जी ने मन किया है,  हमारे मुल्ला साहब ने इसे गलत बताया है! क्यों सही का साथ देने की हिम्मत नहीं है हम में??

सभी जानते है मंदिर में देवता नहीं मिलता मगर तर्क दे देते है, एकाग्रता होती है, मन चित्त सही रहता है! अच्छा लगता है शांति मिलती है! अरे क्या ख़ाक मिलती है! क्या मैं तुम लोगो को जानता नहीं हूँ! जो कनखी नज़र कर के चारो और देखते रहते हो! क्या देखते हो! किसे ढूंढती है तुम्हारी नज़रे?? भगवान् को?? वाह वाह!! वहा बैठ के भी भीख ही मांगते हो ना! मंदिरो में घंटे बजा कर, मस्जिदियो में चिल्ला चिल्ला कर, हाथ जोड़कर घुटने टेक कर! इतना निर्दयी हो गया तुम्हारा परमेश्वर जो तुम्हे घुटने पे ले आया! नहीं वह निर्दयी नहीं है! वह निर्दयी नहीं है! ये तो तुम्हारे ढकोसले है! तुम अपने आप को धार्मिक साबित करने पे तुले हो और इसी दिशा में तुम ये सब ढोंग कर रहे हो!

तुम्हारा बच्चा खाना छोड़ दे! घुटने रगड़ रगड़ के पहाड़ पे चल के तुमसे मिलने आये! तुम्हारे आगे आ के हाथ जोड़ के गिड़गिड़ाए कैसा लगेगा तुम्हे! अच्छा या बुरा??

क्रमश: 

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