मानव का स्वभाव बहुत ही बेजोड़ है जी हां इसका कोई जोड़ ही नहीं है! पल में हँसता है पल में रोता है! न जाने क्या क्या इसके दिमाग में चलता है! इसके मन की बात जानने की कोशिश करना बहुत मुश्किल है! शब्दों पे ग़ौर कीजिएगा की मुश्किल है नामुमकिन नहीं! आज हम कुछ इसी विषय पे चर्चा करेंगे और फिर आगे चल के इसको आध्यात्मिक के मार्ग से समझने की कोशिश करेंगे!
सभी तरफ से इंसान की एक खासियत यही है की हर बात में उसको अपनी ही चीज़े सही लगती है! १ लाख लोगो में से १ शायद ऐसा मिले जो सही का दामन पकड़ के ही चले अपनी हर गलती मान ले! हर तरह से अपने कर्तव्य का पालन करे! अपने हर कदम को फूंक फूंक के रखे! उसकी वाणी में निर्मलता हो! ऐसे व्यक्ति बहुत मुश्किल से ही मिल पाते है! पर अफ़सोस ऐसे लोगो को अक्सर दुनिया बेवकूफ़, गधा ही समझती है! मनुष्य बहुत ही मतलबी प्रकार का होता है ये उसकी प्रकृति में ही है! दुनिया में कोई भी वस्तु बिना मतलब के है ही नहीं! छोटी सी छोटी वस्तु फिर वह चाहे कुछ भी हो! कुछ भी! हर वस्तु का अपना मतलब है! हर वस्तु का अपना नियम है! हर वस्तु अपने आप में बेजोड़ है! इसीलिए किसी भी जीव को, मनुष्य को, या वस्तु को छोटा समझना छोड़ दीजिए सबसे पहले तो! हर वस्तु की अपनी एहमियत, अपना स्वाभिमान होता है! और जैसे आप के स्वाभिमान को ठेस पहुंचे तो दुःख होता है ठीक उसी प्रकार किसी के भी स्वाभिमान को ठेस हमें नहीं पहुंचाना चाहिए! इश्वर में यदि आप का विश्वास है! आप उसमे मानते है! उसका मानते है! तो ये बात याद रखिये की इश्वर कभी किसी का बुरा नहीं चाहते है! अतएव आप भी किसी का बुरा न करे क्योंकि किसी का बुरा करने वाले को ईश्वर क्यों चाहेगा!
और दूसरी दृष्टि से देखते है तो पता चलता है की "पावर ऑफ़ अट्रैक्शन" इसके बारे में आप सभी ने सुना ही होगा! बड़े बड़े लोगो ने इसके सिद्धांत को मान है, महसूस किया है! और अपनी अपनी राय रखी है! ये सिद्धांत कुछ ऐसा है की आप जब किसी के बारे में ज्यादा सोचते है! उसके प्रति आप का विश्वास गहरा होने लगता है! तो वह आप के पास आ ही जाती है! या कहिये की आप में आ ही जाती है! उदाहरण के तौर पे देखते है! की यदि समझो आप सुबह सुबह उठ रहे है! और कुछ गलत हो गया तो आप समझ बैठते है की आप का आज दिन ख़राब जाने वाला है! और आप के दिमाग में ये बात घर करने लगती है! आप बहार निकलते है! तो आप पहले से यही सोचते है की आज का दिन ख़राब है! गाड़ी नहीं मिलेगी बस छूट जाएगी! और यही होता भी है! और अगर सीधी तौर पे नहीं होता है! तो ऐसा ही कुछ होता ही है! जैसे की बस जल्दी नहीं मिलती है! गाड़ियाँ जल्दी नहीं रूकती है! ऑटो, टैक्सी कोई सवारी नहीं मिल पाती है! समय और आपका धीरज दोनों ही साथ साथ चरम पर पहुंच जाते है! और आगे आगे जैसे जैसे आप बढ़ते है! आप की मीटिंग ख़राब होती है! आप के खाने में देरी होती है! कारोबार नहीं हो पाता है! सब कुछ ठीक वैसा ही होने लगता है! जैसा की आप ने सोचा होता है! शॉर्टकट में कहे तो दिन सही मायने में ख़राब हो ही जाता है! इसका मतलब आप क्या समझते है! ऐसा क्यों हुआ! जी हाँ इसका कारन था "पावर ऑफ़ अट्रैक्शन" प्रकृति ये नहीं सुनती की आप को क्या चाहिए या नहीं चाहिए उसे हाँ या ना का मतलब नहीं पता है वह सिर्फ इतना ही जानती है की आप के दिमाग में क्या चल रहा है किस के बारे में आप ज्यादा सोच रहे है और वह उस वस्तु को आप के सामने ला के रख देती है!
हर बार ऐसा ही होता है! लोग कर्ज के बारे में ही सोचते रहते है और कर्ज में ही डूबे रह जाते है! हर समय उनके दिमाग में यही चलता रहता है और इसी के चलते उनका सामना हर बार उसी वस्तु से होता है! उसी व्यक्ति से होता है! जिसको वह मिलना तो नहीं चाहते है! मगर सोचते हमेशा उसीके बारे में है! तो सब से पहले तो ये समझ लीजिए की निगेटिव थिंकिंग को आप अपने दिमाग से हटा दीजिए! जिस वस्तु की जरुरत है ही नहीं उसके बारे में सोचिए भी मत! क्योंकि आप का सोचना प्रकृति को उस वस्तु के लिए निमंत्रण देता है! और जब आप इसको प्रैक्टिकल कर के देखेंगे तो आप को परिवर्तन स्वयं में महसूस होगा! और फिर आप को अच्छी बाते सोचनी है! अच्छा टारगेट सोचना है! जिस वस्तु की जरुरत है उसके बारे में ध्यान दीजिए और देखिये आप को क्या मिलता है! प्रकृति का स्वभाव बहुत ही अनूठा है! वह तुरंत कोई काम नहीं करती है! उसके लिए माहौल बनाती है! उसके लायक माहौल बनने पे आप को वह वस्तु खुद मिलती है! इसमें थोड़ा समय तो लगता है! पर उतना नहीं जितना आप सोच रहे है! ये काम होता है! सही समय में होता है! और आप की आशा के अनुसार ही होता है! मगर ये आप की सोच और आप की पोसिटिवनेस पे लंबित करता है! की उसमे कितना समय लगेगा!
अक्सर मानव अपने आप से ये सवाल नहीं करता है की उसको यहाँ क्यों भेजा गया है! आखिर वह क्या काम करने आया है! उसके मन में अगर कुछ चलता है! तो वह है कुछ मिला लेना कुछ प्राप्त कर लेना! देखा जाए तो मानव पूरी तरह से मोह माया के जाल में फंसा हुआ ही है! ये मोह माया का जाल मैं नहीं कहता हूँ की कोई बुरा जाल है! क्योंकि जैसा मैंने पहले भी लिखा हुआ था ही की मानव शरीर ३ गुण ५ तत्व और २५ प्रकृति का मिला जुला स्वरूप ही है! तो ये लाज़मी है की उसमे ये सभी वस्तु देखने को मिलेंगे! गलत इसमें होता है! उनको हासिल करने का तरीका! अक्सर मानव इन्हे हासिल करने के लिए गलत तरीके अपनाता है! और पतन की तरफ मूड जाता है! आखिर क्या फायदा है! ये सब करके! जिसको इतना चाहा, जिसके लिए दिन रात एक कर दिया! वह मिलने के बाद में भी हमें शांति नहीं मिलती है! अक्सर एक धोखे में एक डर में जीते रहते है! क्या आप यही चाहते थे?
पैसे जमा कर कर के आप ने अपने बच्चे को अच्छी उच्च शिक्षा देने के लिए बाहर भेज दिया ! और आप को फिर भी डर लगा रहता है! की कहीं वह बिगड़ ना जाए कहीं उसमे कोई खराबी ना आ जाये! इतना कुछ कर के भी आप को यकीन नहीं होता है! की आने वाला परिणाम कैसा होगा! हर वस्तु आप करते खुद ही है! पर खुद आप को अपने कर्म पे विश्वास नहीं है! हर बार एक ही बात की जो भगवान करेगा वह ही होगा! सिर्फ बोलने के लिए ही करना खुद है! फल की इच्छा भी अपने हिसाब से है! तो भगवान् का नाम क्यों ख़राब करना! उसने क्या बुरा सिखाया! क्या आप ने संस्कार दिए है! अपने बच्चे को नहीं! क्यों! क्योंकि आप अपनी मोह माया की दुनिया में सिर्फ पैसे को ही सर्वोपरि मान रहे थे! मानना भी चाहिए मैं नहीं कहता हूँ की पैसे की जरुरत नहीं होती है! मगर टाइम समय का सदुपयोग इस बात पे कौन ध्यान देगा! इसका ठेका किसने लेके रख हुआ है! आखिर इस और भी तो आप को ध्यान देना है! आप क्यों इसको छोटी सी बात समझ के इग्नोर कर देते है! अपने आप में परिवर्तन लाइए! परिवर्तन बहुत जरुरी है! जो जैसा चलता आया है! यदि वैसा ही छोड़ दिया रहता तो सृष्टि कभी आगे नहीं बढ़ पाती! इसीलिए परिवर्तन को खुले दिल से स्वीकार कीजिये और परिवर्तन का हिस्सा बनिए! आदतों को सुधारे! गलत काम से बनने वाले काम को रोक ही दीजिये! ना बोल दीजिये! कोई जरुरत नहीं है! की हम गलत तरीके से ही कुछ पाये! सही तरीका भी होता है! अक्सर बचपन से सुनते आये है कई बार तो लोगो ने कइयों को बोल भी रहेगा! की अपनी चादर के हिसाब से ही पैर फैलाने चाहिए! तो सिर्फ बोलने के लिए! करने के लिए नहीं! "केहनी माँ!!! रेहनी माँ नथी रेवातु!" क्या है ये!
मैंने ये बात बहुत बार महसूस की है की जब मैं बोलना शुरू करता हूँ कहीं भी तो बहुत से लोगो का व्यवहार ऐटिटूड! कुछ इस तरह रहता है की वह सब कुछ जानते है! उन्हें किसी वस्तु की जरुरत नहीं है! वह पुरे के पुरे है! अरे भाई रहोगे मैंने कब मना किया है! मैंने तो पहले भी कहा है! की आप लोग ज्ञानी ही हो पर थोड़े से अंजान हो! हर किसी को पता होता है! की वह सही कर रहा है! या गलत कर रहां है! पर समस्या यही होती है! की पता रहते हूए भी उक्त व्यक्ति उस कार्य को करता ही है! आखिर ऐसा क्यों करता है वह! इसका कारन है! उसका अंजान होना! आने वाले परिणाम से अंजान होना ही उसके पतन का कारन बनती है! इसी लिए सब से पहले तो जानकार बनिए! किसी वस्तु को देखना सुनना अलग वस्तु है! पर खबर रखना बहुत जरुरी इसीलिए हमेशा कहता हूँ की अंजान मत रहो! खबर रखो!
कुछ पाने की इच्छा रखना सिर्फ इच्छा तक सिमित नहीं रहनी चाहिए उस दिशा में वैसा काम भी होना चाहिए! पॉजिटिवनेस बहुत जरुरी है! कोई भी काम स्टार्ट करने के पहले उसमे अगर हमारा कॉन्फिडेंस नहीं होगा हमारे अंदर उसके प्रति सही रूचि पोसिटिवनेस नहीं होगी तो वह काम आगे चल के ख़राब होना ही है! मगर हमारे भीतर कॉन्फिडेंस और पॉजिटिवनेस हो तो लगभग आधा काम तो वही हो जाता है! ये बात सभी जानते है! बोलते भी है! पर करते नहीं है! बहुत पहले एक जगह हमारी एक ऑन्टी के मुँह से मैंने ये सूना था! तभी मैं बहुत छोटा था! कहते है कुछ बाते होती है जो दिमाग पे असर छोड़ देती है! बस वैसा कुछ ही है ये! की "सोचने में समय ज्यादा लगता है तो फैसले कमजोर हो जाते है!" उसके बाद इस शब्द के सत्यापन के लिए मैंने बहुत खोज बीन की खुद पे चूका हूँ बहुत बार यह सही निकला! मगर कुछ जगहों पे ये गलत भी निकला देखा जाए तो ये गलत बहुत लिमिटेड वस्तु में ही निकला वह ऐसी बाते थी जिन्हे हम बड़े डिसीजन्स भी बोल सकते है!बच्चे की पढ़ाई, कारोबार का बढ़ाना वगेरा! ऐसे में एक लम्बी सोच की जरुरत रहती है! कुछ निर्णय ऐसे होते है जिनके लिये एक अच्छे और समझदारी भरे सोच की जरुरत होती है! और उसके बाद जब इसमें कदम रखते है! तो गाडी बहुत दूर तक जाती है! कहने का मतलब है! दोनों वस्तु में कोई गलत नहीं है! मगर दोनों की जगह उनका सही मायने में जरुरत पूरा करती है! जरुरत होती है हमें समझदार बन के सही वस्तु, सही व्यवहार, सही निर्णय को सही समय पे लेने की! इसे सीखने की भी जरुरत नहीं है! पता सबको है! बस अंजान बन जा रहे है! और भेड़ की तरह चले जा रहे है! परिवर्तन! बहुत जरुरी है! हमें अपने देश के प्रति, परिवार के प्रति, समाज के प्रति यदि कुछ करना है! राम लक्षमण कृष्णा कबीर, स्वामी विवेकानंद जैसा बनना है! तो हमें भी परिवर्तन का हिस्सा बनना पड़ेगा! इतिहास पढ़ने की जरुरत नहीं है! इतिहास बनाने की जरुरत है! अपने आप को आज ही सही दिशा में मोड़ लीजिए! परिवर्तन को न्योता दे दीजिये! काबिल बनिए! आदर्श बनिए! आप सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ रचना है!
जिसे कुछ भी समझने में या गैरसमझ हुई हो तो वह हमसे संपर्क कर सकता है!
जय गुरुदेव Jay Gurudev જાય ગુરુ દેવ
नागेश शर्मा Nagesh Sharma નાગેશ શર્મા
दीपक बापू Deepak Bapu દિપક બાપુ
Nagesh Best articles
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guru
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Pratham
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Pashu ki paniya bane
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Chauryaashi ka fera
84 ka fera
Yoni-manav yoni
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Yatra Tatra Sarvatra
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EK SHURUVAAT
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Prachand urja ke do pravahini kundali me
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Maanva mastishk kaisa hai
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Thodi Si Gyaan Ki Baate Bhaag 1
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Thodi Si Gyaan Ki Baate Bhaag 2
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Thodi Si Gyaan Ki Baate Bhaag 3
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Kuch mulbhut tatvo ki jaankari
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Brahm ki khoj
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Manav Swabhaav Parivartan
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SAWAL PRASHNA QUESTION
सभी तरफ से इंसान की एक खासियत यही है की हर बात में उसको अपनी ही चीज़े सही लगती है! १ लाख लोगो में से १ शायद ऐसा मिले जो सही का दामन पकड़ के ही चले अपनी हर गलती मान ले! हर तरह से अपने कर्तव्य का पालन करे! अपने हर कदम को फूंक फूंक के रखे! उसकी वाणी में निर्मलता हो! ऐसे व्यक्ति बहुत मुश्किल से ही मिल पाते है! पर अफ़सोस ऐसे लोगो को अक्सर दुनिया बेवकूफ़, गधा ही समझती है! मनुष्य बहुत ही मतलबी प्रकार का होता है ये उसकी प्रकृति में ही है! दुनिया में कोई भी वस्तु बिना मतलब के है ही नहीं! छोटी सी छोटी वस्तु फिर वह चाहे कुछ भी हो! कुछ भी! हर वस्तु का अपना मतलब है! हर वस्तु का अपना नियम है! हर वस्तु अपने आप में बेजोड़ है! इसीलिए किसी भी जीव को, मनुष्य को, या वस्तु को छोटा समझना छोड़ दीजिए सबसे पहले तो! हर वस्तु की अपनी एहमियत, अपना स्वाभिमान होता है! और जैसे आप के स्वाभिमान को ठेस पहुंचे तो दुःख होता है ठीक उसी प्रकार किसी के भी स्वाभिमान को ठेस हमें नहीं पहुंचाना चाहिए! इश्वर में यदि आप का विश्वास है! आप उसमे मानते है! उसका मानते है! तो ये बात याद रखिये की इश्वर कभी किसी का बुरा नहीं चाहते है! अतएव आप भी किसी का बुरा न करे क्योंकि किसी का बुरा करने वाले को ईश्वर क्यों चाहेगा!
और दूसरी दृष्टि से देखते है तो पता चलता है की "पावर ऑफ़ अट्रैक्शन" इसके बारे में आप सभी ने सुना ही होगा! बड़े बड़े लोगो ने इसके सिद्धांत को मान है, महसूस किया है! और अपनी अपनी राय रखी है! ये सिद्धांत कुछ ऐसा है की आप जब किसी के बारे में ज्यादा सोचते है! उसके प्रति आप का विश्वास गहरा होने लगता है! तो वह आप के पास आ ही जाती है! या कहिये की आप में आ ही जाती है! उदाहरण के तौर पे देखते है! की यदि समझो आप सुबह सुबह उठ रहे है! और कुछ गलत हो गया तो आप समझ बैठते है की आप का आज दिन ख़राब जाने वाला है! और आप के दिमाग में ये बात घर करने लगती है! आप बहार निकलते है! तो आप पहले से यही सोचते है की आज का दिन ख़राब है! गाड़ी नहीं मिलेगी बस छूट जाएगी! और यही होता भी है! और अगर सीधी तौर पे नहीं होता है! तो ऐसा ही कुछ होता ही है! जैसे की बस जल्दी नहीं मिलती है! गाड़ियाँ जल्दी नहीं रूकती है! ऑटो, टैक्सी कोई सवारी नहीं मिल पाती है! समय और आपका धीरज दोनों ही साथ साथ चरम पर पहुंच जाते है! और आगे आगे जैसे जैसे आप बढ़ते है! आप की मीटिंग ख़राब होती है! आप के खाने में देरी होती है! कारोबार नहीं हो पाता है! सब कुछ ठीक वैसा ही होने लगता है! जैसा की आप ने सोचा होता है! शॉर्टकट में कहे तो दिन सही मायने में ख़राब हो ही जाता है! इसका मतलब आप क्या समझते है! ऐसा क्यों हुआ! जी हाँ इसका कारन था "पावर ऑफ़ अट्रैक्शन" प्रकृति ये नहीं सुनती की आप को क्या चाहिए या नहीं चाहिए उसे हाँ या ना का मतलब नहीं पता है वह सिर्फ इतना ही जानती है की आप के दिमाग में क्या चल रहा है किस के बारे में आप ज्यादा सोच रहे है और वह उस वस्तु को आप के सामने ला के रख देती है!
हर बार ऐसा ही होता है! लोग कर्ज के बारे में ही सोचते रहते है और कर्ज में ही डूबे रह जाते है! हर समय उनके दिमाग में यही चलता रहता है और इसी के चलते उनका सामना हर बार उसी वस्तु से होता है! उसी व्यक्ति से होता है! जिसको वह मिलना तो नहीं चाहते है! मगर सोचते हमेशा उसीके बारे में है! तो सब से पहले तो ये समझ लीजिए की निगेटिव थिंकिंग को आप अपने दिमाग से हटा दीजिए! जिस वस्तु की जरुरत है ही नहीं उसके बारे में सोचिए भी मत! क्योंकि आप का सोचना प्रकृति को उस वस्तु के लिए निमंत्रण देता है! और जब आप इसको प्रैक्टिकल कर के देखेंगे तो आप को परिवर्तन स्वयं में महसूस होगा! और फिर आप को अच्छी बाते सोचनी है! अच्छा टारगेट सोचना है! जिस वस्तु की जरुरत है उसके बारे में ध्यान दीजिए और देखिये आप को क्या मिलता है! प्रकृति का स्वभाव बहुत ही अनूठा है! वह तुरंत कोई काम नहीं करती है! उसके लिए माहौल बनाती है! उसके लायक माहौल बनने पे आप को वह वस्तु खुद मिलती है! इसमें थोड़ा समय तो लगता है! पर उतना नहीं जितना आप सोच रहे है! ये काम होता है! सही समय में होता है! और आप की आशा के अनुसार ही होता है! मगर ये आप की सोच और आप की पोसिटिवनेस पे लंबित करता है! की उसमे कितना समय लगेगा!
अक्सर मानव अपने आप से ये सवाल नहीं करता है की उसको यहाँ क्यों भेजा गया है! आखिर वह क्या काम करने आया है! उसके मन में अगर कुछ चलता है! तो वह है कुछ मिला लेना कुछ प्राप्त कर लेना! देखा जाए तो मानव पूरी तरह से मोह माया के जाल में फंसा हुआ ही है! ये मोह माया का जाल मैं नहीं कहता हूँ की कोई बुरा जाल है! क्योंकि जैसा मैंने पहले भी लिखा हुआ था ही की मानव शरीर ३ गुण ५ तत्व और २५ प्रकृति का मिला जुला स्वरूप ही है! तो ये लाज़मी है की उसमे ये सभी वस्तु देखने को मिलेंगे! गलत इसमें होता है! उनको हासिल करने का तरीका! अक्सर मानव इन्हे हासिल करने के लिए गलत तरीके अपनाता है! और पतन की तरफ मूड जाता है! आखिर क्या फायदा है! ये सब करके! जिसको इतना चाहा, जिसके लिए दिन रात एक कर दिया! वह मिलने के बाद में भी हमें शांति नहीं मिलती है! अक्सर एक धोखे में एक डर में जीते रहते है! क्या आप यही चाहते थे?
पैसे जमा कर कर के आप ने अपने बच्चे को अच्छी उच्च शिक्षा देने के लिए बाहर भेज दिया ! और आप को फिर भी डर लगा रहता है! की कहीं वह बिगड़ ना जाए कहीं उसमे कोई खराबी ना आ जाये! इतना कुछ कर के भी आप को यकीन नहीं होता है! की आने वाला परिणाम कैसा होगा! हर वस्तु आप करते खुद ही है! पर खुद आप को अपने कर्म पे विश्वास नहीं है! हर बार एक ही बात की जो भगवान करेगा वह ही होगा! सिर्फ बोलने के लिए ही करना खुद है! फल की इच्छा भी अपने हिसाब से है! तो भगवान् का नाम क्यों ख़राब करना! उसने क्या बुरा सिखाया! क्या आप ने संस्कार दिए है! अपने बच्चे को नहीं! क्यों! क्योंकि आप अपनी मोह माया की दुनिया में सिर्फ पैसे को ही सर्वोपरि मान रहे थे! मानना भी चाहिए मैं नहीं कहता हूँ की पैसे की जरुरत नहीं होती है! मगर टाइम समय का सदुपयोग इस बात पे कौन ध्यान देगा! इसका ठेका किसने लेके रख हुआ है! आखिर इस और भी तो आप को ध्यान देना है! आप क्यों इसको छोटी सी बात समझ के इग्नोर कर देते है! अपने आप में परिवर्तन लाइए! परिवर्तन बहुत जरुरी है! जो जैसा चलता आया है! यदि वैसा ही छोड़ दिया रहता तो सृष्टि कभी आगे नहीं बढ़ पाती! इसीलिए परिवर्तन को खुले दिल से स्वीकार कीजिये और परिवर्तन का हिस्सा बनिए! आदतों को सुधारे! गलत काम से बनने वाले काम को रोक ही दीजिये! ना बोल दीजिये! कोई जरुरत नहीं है! की हम गलत तरीके से ही कुछ पाये! सही तरीका भी होता है! अक्सर बचपन से सुनते आये है कई बार तो लोगो ने कइयों को बोल भी रहेगा! की अपनी चादर के हिसाब से ही पैर फैलाने चाहिए! तो सिर्फ बोलने के लिए! करने के लिए नहीं! "केहनी माँ!!! रेहनी माँ नथी रेवातु!" क्या है ये!
मैंने ये बात बहुत बार महसूस की है की जब मैं बोलना शुरू करता हूँ कहीं भी तो बहुत से लोगो का व्यवहार ऐटिटूड! कुछ इस तरह रहता है की वह सब कुछ जानते है! उन्हें किसी वस्तु की जरुरत नहीं है! वह पुरे के पुरे है! अरे भाई रहोगे मैंने कब मना किया है! मैंने तो पहले भी कहा है! की आप लोग ज्ञानी ही हो पर थोड़े से अंजान हो! हर किसी को पता होता है! की वह सही कर रहा है! या गलत कर रहां है! पर समस्या यही होती है! की पता रहते हूए भी उक्त व्यक्ति उस कार्य को करता ही है! आखिर ऐसा क्यों करता है वह! इसका कारन है! उसका अंजान होना! आने वाले परिणाम से अंजान होना ही उसके पतन का कारन बनती है! इसी लिए सब से पहले तो जानकार बनिए! किसी वस्तु को देखना सुनना अलग वस्तु है! पर खबर रखना बहुत जरुरी इसीलिए हमेशा कहता हूँ की अंजान मत रहो! खबर रखो!
कुछ पाने की इच्छा रखना सिर्फ इच्छा तक सिमित नहीं रहनी चाहिए उस दिशा में वैसा काम भी होना चाहिए! पॉजिटिवनेस बहुत जरुरी है! कोई भी काम स्टार्ट करने के पहले उसमे अगर हमारा कॉन्फिडेंस नहीं होगा हमारे अंदर उसके प्रति सही रूचि पोसिटिवनेस नहीं होगी तो वह काम आगे चल के ख़राब होना ही है! मगर हमारे भीतर कॉन्फिडेंस और पॉजिटिवनेस हो तो लगभग आधा काम तो वही हो जाता है! ये बात सभी जानते है! बोलते भी है! पर करते नहीं है! बहुत पहले एक जगह हमारी एक ऑन्टी के मुँह से मैंने ये सूना था! तभी मैं बहुत छोटा था! कहते है कुछ बाते होती है जो दिमाग पे असर छोड़ देती है! बस वैसा कुछ ही है ये! की "सोचने में समय ज्यादा लगता है तो फैसले कमजोर हो जाते है!" उसके बाद इस शब्द के सत्यापन के लिए मैंने बहुत खोज बीन की खुद पे चूका हूँ बहुत बार यह सही निकला! मगर कुछ जगहों पे ये गलत भी निकला देखा जाए तो ये गलत बहुत लिमिटेड वस्तु में ही निकला वह ऐसी बाते थी जिन्हे हम बड़े डिसीजन्स भी बोल सकते है!बच्चे की पढ़ाई, कारोबार का बढ़ाना वगेरा! ऐसे में एक लम्बी सोच की जरुरत रहती है! कुछ निर्णय ऐसे होते है जिनके लिये एक अच्छे और समझदारी भरे सोच की जरुरत होती है! और उसके बाद जब इसमें कदम रखते है! तो गाडी बहुत दूर तक जाती है! कहने का मतलब है! दोनों वस्तु में कोई गलत नहीं है! मगर दोनों की जगह उनका सही मायने में जरुरत पूरा करती है! जरुरत होती है हमें समझदार बन के सही वस्तु, सही व्यवहार, सही निर्णय को सही समय पे लेने की! इसे सीखने की भी जरुरत नहीं है! पता सबको है! बस अंजान बन जा रहे है! और भेड़ की तरह चले जा रहे है! परिवर्तन! बहुत जरुरी है! हमें अपने देश के प्रति, परिवार के प्रति, समाज के प्रति यदि कुछ करना है! राम लक्षमण कृष्णा कबीर, स्वामी विवेकानंद जैसा बनना है! तो हमें भी परिवर्तन का हिस्सा बनना पड़ेगा! इतिहास पढ़ने की जरुरत नहीं है! इतिहास बनाने की जरुरत है! अपने आप को आज ही सही दिशा में मोड़ लीजिए! परिवर्तन को न्योता दे दीजिये! काबिल बनिए! आदर्श बनिए! आप सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ रचना है!
जिसे कुछ भी समझने में या गैरसमझ हुई हो तो वह हमसे संपर्क कर सकता है!
जय गुरुदेव Jay Gurudev જાય ગુરુ દેવ
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Maanva mastishk kaisa hai
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Thodi Si Gyaan Ki Baate Bhaag 1
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Thodi Si Gyaan Ki Baate Bhaag 2
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Thodi Si Gyaan Ki Baate Bhaag 3
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Kuch mulbhut tatvo ki jaankari
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Manav Swabhaav Parivartan
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SAWAL PRASHNA QUESTION
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