"नाम" नागेश जय गुरुदेव (दीपक बापू)

मंगलवार, 31 मई 2016

थोड़ी सी ज्ञान की बात भाग ४

थोड़ी सी ज्ञान की बात भाग ४


मोक्ष
बड़ा ही छोटा सा शब्द लगता है लिखने में, बहुत बड़ा सोचने में, असीमित अद्भुत समझने में!
मोक्ष की प्रथम सीढ़ी को आज समझने की कोशिश हम करेंगे!

मैं यहाँ जो लिख रहा हूँ वह मेरे शब्द है, उन्हें और लोगो ने भी लिखा होगा ना नहीं है परन्तु इसे मैंने मेरे हिसाब से मेरी अनुभूति मेरे अनुभव का निचोड़ बन के लिखा है! तो यदि किसी को भी आपत्ति हो तो मुझे कह सकते है!


देखिये ये हम सभी जानते है! किसी भी अध्ययन की प्रथम श्रेणी होती है श्रवण, जी हाँ, सुनना, बिना सुने कोई वस्तु पता कर पाना मुश्किल होता है! सुनना सिर्फ कानो से नहीं होता है! सुनना आँखों से भी होता है! मन से भी होता है! त्वचा से भी होता है! सुनना है तो ये सब आप की एक जगह पे होनी चाहिए! मन भटकते रहेगा, शरीर अस्त व्यस्त रहेगा, आँखे ठिकाने पे नहीं रहेगी तो कानो में पड़ने वाली बात का कोई महत्व नहीं रहेगा उसका कोई असर नहीं होगा! इसीलिए बोलने वाला जब बोल रहा है तब श्रवण की क्रिया सही ढंग से होनी चाहिए, सुनना ही मोक्ष की पहली सीढ़ी चढ़ने का रास्ता है! या जिस तरह से कहिये, जो भी मानिए, सुनना ही ज्ञान का पहला पग है!

बोलने वाले को सुनने वाले के प्रति श्रद्धा होनी चाहिए और सुनने वाले को भी बोलने वाले के प्रति श्रद्धा होनी चाहिए तो ही बोले हुए शब्दों का कुछ असर होगा! आज की डेट में क्या हो गया है! की बोलने वाला बोलता रहता है! सुनने वाला सिर्फ कान इस बात पे लगाता है की कब बोलने वाला कोई गलती करे और ये हमला कर देवे, और यही आज कल चल भी रहा है! मैं नहीं कहता हूँ की ये गलत है या सही है! हर किसी का अपना नज़रिया है! हर किसी के पास अपना तर्क है! मेरा सोचना जिस बारे में जैसा है वैसा हर किसी का हो ऐसा जरुरी नहीं है! परन्तु सिद्धांत कभी गलत नहीं होते है! धर्म कभी गलत नहीं होता है! वेद, शस्त्र, धर्म ग्रन्थ इन सभी किताबो को यदि पढ़ ले और सोचे तो एक छोटा सा सार अगर देखना हो तो यही है की सभी के साथ प्रेम करो, जीव दया रखो, और निज धर्म का पालन करो

तो जैसे की सुनना ही प्रथम सीढ़ी है! आप खुद सोच के देखिये छोटे से बच्चे हो या बड़े बुजुर्ग बिना कुछ भी सुने हम कोई नतीजा नहीं निकाल सकते है! सुनना ज्ञान की प्रथम जरुरत है! कोई भी ज्ञान प्रथम श्रवण से शुरू होगा! बिना कुछ सुने कोई वस्तु सीखी नहीं जा सकती है! शक्ति का संचार भी सुनने से ही रिलेटेड है! आप को याद होगा रामायण की घटना जिसमे राम और राम के चाहने वाले इस बात को लेके परेशान थे की सीता की खोज में आगे बढ़ना है! तो इस समुद्र को पार करना होगा और ये करेगा कौन? कौन इतना सक्षम है जो उस पार जाके माता सीता का पता कर सके और पुनः यहाँ आके हमें सूचित कर सके? तब हनुमान से जामवन्त ने उन्हें उनकी शक्ति का परिचय कराया ये परिचय उन्होंने कैसे कराया? बोल के! जी हाँ उन्होंने शब्दों में वाणी में उसको बताया और हनुमान ने उसे सुना! सिर्फ सुना भर ही था और उनमे उस शक्ति का संचार हुआ! और नतीजा हम सभी जानते है! हर व्यक्ति में परमतत्व का वास है! हर किसी में घट घट में उसका वास है! ये बात हर कोई जानता है! हर कोई इस बारे में बोलता भी है! परन्तु बहुत कम लोग इस बात को अपने आप में सही तरीके से उतारते है! बहुत ही कम लोग है जो इस बात से भली-भाँती न सिर्फ परिचित है! बल्कि उनमे वह परिवर्तन भी दीखते है! सिर्फ बातो में नहीं अपितु व्यवहार में भी! ये शक्ति उनमे कहा से आई तो जवाब होगा श्रवण! उन्होंने इसकी महिमा को प्रथम सुना है! उसके बाद में आगे जो कुछ होना था वह हुआ! परन्तु प्रथम श्रवण ही है!

बिना श्रवण के आगे बात नहीं बढ़ती है! इस विषय में ज़रा विस्तार से सोच के देखिये! ध्वनि की स्पीड ध्वनि का सृजन, ध्वनि से सृजन ये सब बाते आप के दिमाग में आने लगेंगी! शुन्य से पृथ्वी का निर्माण हुआ! शुन्य में से भी एक ध्वनि का उद्घोश हुआ था और ये निर्मिति का कार्य शुरू हुआ! ऐसा कई सारे ग्रंथो में लिखा हुआ है! ध्वनि बहुत ही महत्वपूर्ण है! उस ध्वनि को किसी ने सुना था तो ही उसे पता चला की निर्मिति का आदेश है! और ये निर्माण कार्य शुरू हुआ! सोचो यदि सुनने वाले ने सुना ही नहीं होता तो????  देखा सोचने का सोच के ही हम हमारे खयाली घोड़े को कहा से कहा ले गए!

                 सही बात है! यदि सुनने वाले ने नहीं सुना होता तो निर्मिति होती ही नहीं! इससे हम समझ सकते है की सुनना कितना जरुरी है! वैसे तो मैंने पहले भी बताया हुआ है! की सुनना सिर्फ कानो से ही नहीं है अलग अलग कान है आप के पास, आँखो के कान है! आप के मन के कान है! आप की त्वचा के भी कान है! नाक के भी कान है! जीभ का भी कान है! तो इन सभी से आप को  सही से सुनना है! जब कोई आप से बात करता है! तो आपको एकाग्रचित्त हो के उसकी बात सुननी चाहिए कम से कम तब तक जब तक उसका बोल के खत्म न हो जाए क्योंकि बहुत बार ऐसा होता है! की सामने वाले आरम्भ करने के साथ ही हम आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू कर देते है! अपने ज्ञान की तुलना उसके ज्ञान से करने लगते है! अपने आप को ही सही मान लेते है! मेरे भाई ये आदत बुरी है! बदल डालो! आप स्वयं सोच के देखो की आप को यदि किसी को कुछ समझाने के लिए कहा जाएगा तो आप शुरुवात ० से अर्थात शून्य से ही करेंगे! यही वस्तु हर व्यक्ति करता है! क्योंकि उसके सुनने के लिए जो भी लोग जमा हुए है! सभी के सभी आप की तरह ही एक ही बुद्धि वाले हो ऐसा जरुरी नहीं है! और कभी होगा भी नहीं! इसीलिए बोलने वाला अक्सर अपनी बातो को धीरे धीरे कर के सरल करते हुए सहज रूप से आप में उतारने की कोशिश करता है! हो सकता है! आप जिन बातो के बारे में सुनना चाहते है! वह भी वही बोलने वाला हो परन्तु आप में और उसमे फर्क है! अंतर है! उस अंतर को बने रहने दीजिये और सुनिए की उसकी बात कब खत्म होती है! उसके बाद में भी यदि आप का समाधान नहीं हुआ है! आप को आप की वस्तु नहीं मिली है! उसने कोई बात या हर बात गलत की है! तो उसके समक्ष अपने सवालो को जरूर रखे, क्योंकि पहले ही लेख में मैंने बताया है! की सवाल बहुत जरुरी है! सवाल ही अविष्कार का जन्मदाता है! तो सवालों का होना बहुत जरुरी है! परन्तु सवाल करने का ढंग और सवाल करने का समय दोनों सही हो तो जवाब भी सही मिलेगा परन्तु इन दोनों में से एक भी गड़बड़ रहा या दोनों ही गड़बड़ रहे तो फिर जवाब की अपेक्षा भी बेकार है! इसीलिए कार्य को संपन्न करने  किसी भी वस्तु को समझने के लिए सुनना बहुत जरुरी है!

             इसके बाद में आती है बारी याने की दूसरा पग जो की है सुनने के बाद उसे समझने की! जी हाँ! सुन लिया फिर सिर्फ सुन के उसे दरकिनार कर देना या अपने आपको ही सही मान कर किसी बात को भी तूल ना देना बहुत ही बड़ी बेवकूफी है! सुनने के बाद में उस बात को समझना बहुत जरुरी है! कोई भि बात को सुन के लिया और उसे समझ भी लिया तो फिर सोने पे सुहागा जैसा ही होता है! समझना हर किसी के बस के बात नहीं है! सुनना और समझना एक समझदार व्यक्ति ही कर सकता है! जिसमें आत्मसंयम हो जो हर विचार को बारीकी से देखे जिसकी नज़रो में अहंकार न हो! क्योंकि इन में से किसी भी वस्तु का लोप हुआ तो वह व्यक्ति सुनेगा ही नहीं! अन्यथा सुनेगा तो समझेगा नहीं! समझने वाला व्यक्ति अलग ही होता है! आपने बहुत से लोगो को देखा होगा! जो की पूरी मूवी देख लेते है! मगर फिर भी उनके पास सवालो भरमार रहती है! उन्हें किसी वस्तु को किसी बात को समझने का ह्यूमर नहीं होता है! ऐसे व्यक्ति ज्यादातर लोगो में चिड़चिड़ापन का ही निर्माण करते है! ये लोग किसी जोक्स को समझने में ४ दिन लगा देंगे इन्हे हर बात डिटेल में कर के बतानी पड़ती है! फिर भी इनके पल्ले नहीं पड़ती है! ऐसे व्यक्ति सुन के समझने की शक्ति नहीं रखते है! लोगो को समझदार दिखे कर के ये चुपचाप सुन के तो ले लेते है! पर उसको समझ नहीं पाते है कर के आगे भी नहीं बढ़ पाते है! तो हमें ऐसा नहीं बनना है, ये बात याद रखिये! समझने के बाद में किसी भी वस्तु के बारे में लिखना या बोलना बहुत ही आसान हो जाता है! इसीलिए समझना बहुत जरुरी है अगर कोई बात समझ नहीं आती है! तो दुबारा उसपे गौर कीजिये पर समझिए जरूर

            इसके आगे तीसरी सीढ़ी या पग जो है वह है! मंथन की या यूँ कहे जिसे सुना समझा उसपे विचार करने की जरुरत है!  विचार करना किसी भी बात पे बहुत जरुरी है! कई सारी ऐसी बाते होती है, जिन सर पैर कुछ पता ही नहीं चलता है! सब कुछ उसका बेपत्ता होता है! ऐसी बाते भी विचार करने योग्य है! इस दुनिया में हर बात का कुछ न कुछ तो महत्व होता ही है! सिर्फ अंतर इतना ही होता है! की कुछ हमारे महत्व की होती है! कुछ किसी और के! कुछ किसी और के! मगर बिना महत्व कुछ नहीं है! कोई वस्तु हमारे महत्व की है या नहीं ये बात बिना विचार किये पता नहीं चलने वाली! विचार करेंगे तो ही उसका सत्यापन हो पाएगा! विचारों के घोड़े को लगाम नहीं होती है! और मंथन करने की शक्ति हर किसी में नहीं होती है! बहुत बार हम सुनते है अजीब अजीब सी बाते और खुश भी हो जाते है! परन्तु बिना विचार किये हम उस बात के मरहम को पहचान नहीं पाते है! उदाहरण के तौर पे आप से कहता हूँ की आप ने विष्णु के वरह अवतार के बारे में सुना होगा यहाँ पर में आप को पूरा विवरण नहीं दे रहा हूँ बस उसमे से एक लाइन जिसके कारन आप अपने विचार को सही दिशा दे पाये!
 इस कहानी में ऐसा बताया गया है की असुर ने पृथ्वी को समुद्र में डुबो दिया! फिर वरह का अवतार हुआ और उसने पृथ्वी को समुद्र से बाहर निकाला!! अब्ब ये क्या है?   समुद्र तो खुद पृथ्वी पे है तो पृथ्वी को कैसे समुद्र में डूबा दिया ये कैसे मुमकिन है! मगर क्या करे लोगो को विचार करने की सूझती ही नहीं है! किसी का भी कोई भी मंथन किसी बात को लेके नहीं होता है! जो चल रहा है उसे चलने दो सब सही है! बस यही मान के बैठे हुए है मैं आप को थोड़ा सा इसमें क्लियर करने की कोशिश करता हूँ आप खुद मंथन कर के देखिये! हक़ीक़त में पृथ्वी को किसी समुद्र में लेके जाया गया था ही नहीं! आप ने संतो की वाणी में अगर कभी गौर किया रहेगा तो पता रहेगा की संतो ने वेदो ने इस शरीर को भी पृथ्वी कहा है! और जो समुद्र यहाँ दर्शाया गया है वह है रसातल जो की काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ, माया से भरा पड़ा हुआ है! इस पृथ्वी को उन असुरो ने इस रसातल में डुबो दिया था कहने का तात्पर्य ये है की उन्होंने हमारी ज़मीन हमारी दुनिया पृथ्वी नहीं बल्कि इस शरीर को पांच तरह के व्यसन जो की हानि पहुंचते है! उनमे डूबा दिया था! काम क्रोध मद मोह लोभ माया इन्हे रसातल कहा जाता है! इसमें विलीन कर दिया था उन्होंने मानवों को इस बात को यहाँ दर्शाया गया परन्तु लोगो ने अलग ही छवि बना ली! इसमें गलती किसकी है! कथा लिखने वाले की नहीं या बनाने वाले की जिसने चित्रण किया! नहीं! इसमें गलती है हमारी जो भेड़ की तरह एक ही दिशा में लगे है! आगे बढ़ने की उसमे से बाहर निकलने की सोचते ही नहीं है!
और ये तो सिर्फ एक छोटा सा उदाहरण था ऐसे तो न जाने कितने उदाहरण रहेंगे देने के लिए की पूरी वेबसाइट और मेरी ज़िन्दगी दोनों ही कम पड जाये!

               मंथन या कहे की विचार करना बहुत महत्व रखता है! इसके  सहारे बड़े बड़े फैसले भी लेने में आसानी हो जाती है! मंथन आने वाले परिणाम का सटीक नहीं तो भी अंदाजन या यूँ कहे तक़रीबन वाला साक्ष्य करा ही देता है!


        प्रैक्टिकल खुद से कर के देखना! खुद की अनुभूति में किसी वस्तु को लाना! जी हाँ चौथी सीढि या यूँ कहे की चौथा पग अध्ययन का होता है! स्वयं की अनुभूति खुद से कर के देखना! हर बात सुन के समझ के और विचार कर के किसी और के सामने रख देना उचित नहीं है! उसे आप में प्रैक्टिकल होना भी बहुत जरुरी है! यदि आप किसी बात के लिए किसी को समझा रहे है! तो जरुरी है की वह बात आप ने भी प्रैक्टिकली अपनाई हो! उदाहरण के तौर पे आप देख सकते है! बहुत से ढोंगियो को! पैसे कमाने के लिए बैठे गुरु महाराज को उन्हें योग का ध्यान का कोई प्रैक्टिकल नॉलेज नहीं होता है! उन्हें कोई अनुभूति नहीं होती है! परन्तु सुन सुन के पढ़ पढ़ के उन्हें काफी कुछ पता चल जाता है और इसीकी गोली बना बना के वह लोगो को देते है! और उनका धंधा चल पड़ता है! पर कब तक ये वही लोग है जो आगे चल के भोग विलास में पकडे  जाते है! फिर कानून का डंडा इनका ध्यान पूरा करता है! ये तो हुयी अलग बात मगर आप देखिये बहुत से लोग है ऐसे जो किस तरह से रहना है! क्या करना है! कैसे करना है! सब कुछ बताते है! मगर खुद की बारी आते ही पलट जाते है! तो ये बात उचित नहीं है! ऐसी बाते आप को सही तौर पे उस अनुभूति से वंचित तो रखेंगी ही और आप के जीवन में कोई भी चेंज नहीं आएगा!

हूँ बोलू पछि
मुख खोलू पछि
प्रथम मने आचरण आपजे

बस यही लाइफ में होना चाहिए कुछ भी बोलने के पहले अपने आप में उस आचरण को रखिये वर्ना आप हसी के पात्र के आलावा और कुछ नहीं हो!
बहुत से लोगो को पीठ पीछे बोलने की आदत होती है! ऐसे लोग वही होते है! जो चाहते है की आप आगे न बढे तो ऐसे लोगो को बोलने दीजिये और आप अपना काम सही ढंग से करिये सत्य का रास्ता कठिन है! पर मंज़िल पक्की है!



तो जैसा हमने देखा की
श्रवण
समझन
मंथन
स्वतः अनुभूति

इसके बाद ही कुछ आप का हो सकता है! इस बात को ध्यान रखिये और आगे बढ़ते रहिये

जय गुरुदेव




जिसे कुछ भी समझने में या गैरसमझ हुई हो तो वह हमसे संपर्क कर सकता है!

जय गुरुदेव                Jay Gurudev                                     જાય ગુરુ દેવ
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