"नाम" नागेश जय गुरुदेव (दीपक बापू)

गुरुवार, 19 मई 2016

सवाल प्रश्न क्वेश्चन

सवाल ****प्रश्न ****क्वेश्चन 

"सवाल अपने आप से" "प्रश्न अपने आप से" "QUESTION TO YOURSELF"
जी हाँ अपने आप से एक बार तो सभी, अपने आप से ये पूछते ही है, हर व्यक्ति अपने आप से सवाल तो करता ही है! और जवाब की खोज में लग जाता है! अक्सर ये सवाल हम अपने आप से तब पूछते है जब कुछ बुरा होता है या तो जब हमारी आशा की विपरीत कोई काम होता है! या तो जब हम कोई नया काम स्टार्ट करते है तब हम अपने आप से एक बार तो सवाल करते ही है! और हक़ीक़त में देखा जाये तो ये अच्छी बात है! परन्तु क्या सिर्फ यही तक इसको रखना ठीक है???   गौर करने वाली बात ये है की सवाल पूछना वह भी अपने आप से ये बहुत बड़ी ज्ञानी की निशानी है! ये बात हम सभी जानते है! इसको मानते भी है! तो जब हम ये जानते है! तो हम इसे अपनाते क्यों नहीं है! क्यों कुछ भी करने के पहले हम एक बार अपने आप से सवाल करने में कतराते है! काफी सारे डिसीजन्स बिना सोच विचार के ले लेते है! और जब हम ऐसा करते है तो १० में से ८ बार गलती का शिकार होते है! जो २ बार बच जाते है वह भी बचते नहीं है! बस थोड़ा रास्ता लम्बा कटता है और आगे चल के औंधे मुँह गिरते ही है!
         सवाल!  इसे अपने आप से करना चाहिए ही चाहिए!  सवाल के बारे में एक बात सुनी थी की जो सामने है वह सवाल है और जो उसके पीछे है वह जवाब है!   बात को प्रैक्टिकली भी ले सकते है! और सोच सकते है! विचार कर सकते है!!! कई बार लोग सवाल पूछने वाले को बेवक़ूफ़ समझते है! परन्तु ये बात तो हम सभी जानते है! की सवाल पूछने वाला सिर्फ सवाल पूछने भर के लिए बेवकूफ रहता है! एक बार उसने सवाल कर दिया और उसको जवाब मिल गया तो वह तो पूर्ण हो जाता है! परन्तु जो लोग उसको नादान मानते थे वह हमेशा के लिए नादान ही रह जाते है!

        सवाल! ना जाने कई सारे अविष्कारों का जन्मदाता है ये सवाल या यूँ भी कह सकते है! की सभी अविष्कारों का जन्मदाता सवाल ही है! सोच के देखिये!  किसी ने अपने आप से सवाल किया की ये धरती कैसी है? तो जवाब आया और उसकी पुष्टि हुई! कैसी दिखती है? तो जवाब आया और आविष्कार होने लगे! हर बार जरुरत सवाल बन के खड़ी होती गयी और मानव ने जवाब के रूप में अविष्कार को जन्म दिया! तो सवाल की अहमियत आप समझ ही रहे होंगे की सवाल क्या से क्या कर सकता है!

      सवाल! एक बार एक राजा था जो हर काम अपनी मर्जी से करता था! अब राजा था तो हर काम मर्जी से ही करेगा! आप कहेंगे इसमें बड़ी बात क्या है! तो बड़ी बात ऐसी है की वह काम की सलाह मशविरा किसी भी अपने मंत्री या सलाहकार या किसी भी अनुभवी व्यक्ति के बिना ही करता था! और इसी कारन ज्यादातर उसके क्रियान्वित कार्य समय से पहले ही बंद पड़ जाते थे! कोई भी काम अपने अंत तक नहीं पहुंच पाता था! और हैरत करने वाली बात ऐसी की राजा इस बात को ना ही सभा में रखता ना ही किसी और से डिसकस करता! दिन बीतते जा रहे थे! राज्य की हालत ख़राब थी! राजा कुछ समझ नहीं पा रहा था! अकेले ही अकेले घूंट रहा था! ऐसा नहीं था की उसे अपनी प्रजा की चिंता नहीं थी ! परन्तु वह अपने आपको सर्वोच्च मानता था! उसकी नज़र में कोई उसके जैसा था ही नहीं जिसके साथ बात कर के वह कोई रास्ता निकाल सके!
       
            कुछ दिन बाद वहा एक संत का आना हुआ! और संत के बारे में तो क्या कहने! कहते है! संत जिस भूमि पे अपने कदम रख दे वह भूमि पवित्र हो जाती है! कुछ ऐसा ही यहाँ भी होने वाला था! राजन से मिलने की इच्छा संत को हुयी! क्योंकि उसने राज्य की हालत देखि! लोग बिना काम के पड़े हुए है! रास्तो की हालत ख़राब है! झगडे चोरी फसाद सभी तरह के राज्य देश के अहित के कार्य भली भाँती फल फूल रहे थे! संत ने महल की तरफ रुख किया! और राजा से मिलने जा पहुंचा! राजा ने सही तरीके से अतिथि धर्म को  निभाया! ये देख संत ने राजा से कहा! की क्या मैं आप से कुछ बोल सकता हूँ???  राजा ने सोचा की ये फ़क़ीर मुझे क्या बोलेगा खाने आया है! खिला तो दिया है! अब क्या रहने के लिए ज़मीन मांगेगा! या कुटिया बनवा के देने के लिए कहेगा! चलो कोई बात नहीं! कम से कम सुन तो ले की ये कहता क्या है! और राजा ने संत को बोलने के लिए कहा! संत ने उसे तुरंत सिर्फ इतना ही कहा! की हे राजन! जो अभी तुमने अपने मन में किया बस इसी को करो तुम्हारा काम हो जायेगा! राजन तनिक विचार किया और संत की बात को समझ गया की संत के एक शब्द ने उसके मन में सवाल खड़े कर दिए और जवाब की चाह में जब उसने संत को मौका दिया बोलने का तब उसे संत ने उसकी गलती का एहसास दिल दिया की जो कुछ होता है! उसे अपने आप में दबा के रखना गलत है! उसको जाहिर होने दो! सवाल करने जरुरी है! सवाल नहीं होंगे तो  किसी के पास यदि जवाब होगा तो भी नहीं मिलेगा! क्योंकि हमने सवाल किया है ही नहीं! बस फिर क्या था! राजा ने दरबार में अपने सभी मंत्रियो सलाहकारों, अनुभवियों को बुलाया! और हालत से अवगत कराया और सलाह की! सभी खुश हुए! क्योंकि सभी जानते थे पर राजा के सामने किसकी हिम्मत हो कुछ बोलने की! काश उन्होंने भी सवाल किया होता! तो राज्य की दुर्दशा नहीं होती! पर कोई बात नहीं! कहते है! देर है पर अंधेर नहीं! शायद ये उनकी होनी में था जो हुआ और समय से संत के मार्गदर्शन के कारन वह अपने सही रास्ते पे आ सके!

    खैर राजा को तो समय मिल गया अपनी भूल सुधारने का पर ज्यादातर लोगो को नहीं मिल पाता है! जिसके कारन लोग अजीब अजीब तरह के दलदल में धंसते चले जाते है! चारो तरफ से अपने आप को अकेला ही पाते है! मैंने पहले भी कहा था! अपने लेख में की यदि कुछ अंदर भरा पड़ा है! तो उसे एक्सप्रेस करो! किसी भी तरीके से! क्योंकि आप यदि अपने अंदर ज्वालामुखी लेके चलेंगे तो वह एक दिन फटेगा ही फटेगा! और कही इस ज्वालामुखी के चपेट में आप के अपने ना जाए इसीलिए समय रहते इस ज्वालामुखी को शांत करना बहुत ज़रुरी है!

सवाल की जरुरत जीवन में इतनी है की उसके बिना जीवन ही नहीं लगता है! सवाल के बिना कोई वस्तु का अस्तित्व नहीं लगता है! सवाल अपने आप से करना भी बहुत जरुरी है! और दूसरों से भी करना जरुरी है!प्रश्न  के बारे में ऐसी कई बात है जिन्हे समझना जरुरी है! प्रश्न का निर्माण क्यों होता है इसका मूल क्या है! यह जानने की कोशिश थोड़ी हम करेंगे! प्रश्न हमेशा जवाब के साथ ही होता है! उदाहरण के तौर पे जब बालक का जन्म होता है! तो पूछते है! की लड़का हुआ या लड़की? ये प्रश्न है! और जवाब पीछे पीछे चला आता है! देखा जाए तो उत्पत्ति से ही प्रश्न शुरू हो जाते है! आप की पहली सांस पृथ्वी पे लेने के साथ ही आँखे खुलते ही अचंभित सी दिखती है! वाणी नहीं होने के कारन आप के सवाल आप के रुदन में आप की आँखों में दीखते है! छोटी सी उम्र में ही आप सवाल शुरू कर देते है! और जब तक आप की साँसे चल रही है! तब तक आप सवाल करते ही रहते है! गूंगा हो बहरा हो या किसी भी प्रकार से मानसिक या शारीरिक रूप से अक्षम हो पर सवाल के दायरे से बाहर नहीं होता है! परन्तु अक्सर हम सवाल जो हमारी ज़िन्दगी हमारे मोक्ष से रिलेटेड है हम उन्हें नहीं करते है! आध्यात्मिक रूप से धर्म के नाम पे यदि हमारे धर्मगुरु कोई बात कहते है तो हम आँख मूँद के उसको करने लग जाते है! सवाल नहीं करते है! कुछ दिन पहले एक इंसिडेंट नज़रो में आया! एक गुरुमुखी महानुभाव धूम्रपान से सख्त नफरत करने लग गए जब की धुआँ उड़ाना तो उनकी शान होती थी! मगर उनकी नफरत देख के उनके विचार सुन के मुझे भी बड़ा अच्छा लगा की चलो इनमे इतना बड़ा फरक गुरु के कारण आ गया! ये देख के मुझे भी तनिक विचार करने पे मजबूर होना पड़ा पर ये वस्तु ज्यादा दिन तक देखने नहीं! मिली !  कुछ दिन बाद ही मैंने उन्हें उनके गुरु महाराज के साथ धुंए का छल्ला उड़ाते देखा! मुझसे रहा नहीं गया मैंने पूछ ही लिया की ऐसा क्यों तो उन्होंने कहां की जिसने छुड़ाया था उसीने दोबारा पीने के लिए कहा है! अब समझने  वाली ये बात है की ऐसा क्यों हुआ! और ऐसे को क्या समझेंगे! इसमें कहीं कोई गलती है या नहीं! अगर गलती है तो किसकी है! और क्यों है! क्यों उस व्यक्ति ने अपने गुरु से सवाल नहीं किया की जब आप ने मुझे छोड़ने के लिए कहा था तो आज दोबारा आप ही खुद मुझे क्यों ये पकड़ा रहे है!क्या कारन है इसका! मगर नहीं उसने नहीं पूछा क्योंकि उसका काम होने लगा था उसे नशे में रहने की लत थी और उसके गुरु ने उसे दुबारा उस नशे को करने की आज्ञा दे दी थी! काश जब  छोड़ने के लिए गुरु ने बोला था तब एक सवाल कर लिया होता की क्यों छोड़ू तो उसे गुरु अच्छी तरह से समझाते की उसके कारन क्या हो सकता है! पर उसने नहीं पूछा और जब गुरु ने दुबारा पकड़ने बोला तभी भी उसने नहीं  पूछा की क्यों मुझे पुनः वही काम करने के लिए कह रहे है! गुरु की सोच कुछ अच्छी होती तो वह बाहर आती और दृश्य कुछ और होता और अगर गुरु के पास कोई जवाब नहीं होता तो सीधा सीधा मतलब था इसका की वाणी और वर्तन में फेर है! ऐसे धोखे से सावधान! परन्तु ये सब व्यक्ति करता ही नहीं है! आदमी आज कल पूरी तरह मतलबी हो चूका है! जब तक उसका काम बन रहा है! उसकी मौज चल रही है! तब तक वह किसी से भी कोई भी सवाल नहीं करता है! मगर जब उसकी पूछ दबती है! तब बराबर हर सवाल जवाब शुरू हो जाते है! तब आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो जाता है! ऐसे में देरी बहुत हो जाती है! और आप अपना बहुत बड़ा नुक्सान कर बैठे होते है!

सवाल ज़िन्दगी से


सवाल ज़िन्दगी से
       आखिर क्या सवाल हो सकते है जो ज़िन्दगी से पूछने है? क्या हो सकता है! ज़िन्दगी से संबंद्धित जो हम अज्ञानी बन गए है! सब कुछ तो हम कर ही रहे है तो ऐसा क्या छूट गया जिसके लिए आज हम इस बात को दुहरा रहे है? क्या हमने कुछ गलत किया है?, क्या हमने कोई वस्तु पीछे छोड़ दी है?  !! जी हाँ हमने अपनी ज़िन्दगी में जो करना चाहिए था वह नहीं किया और अगर किया तो भी उसे कोई मान्यता नहीं दी है! हमने बहुत कुछ अपनी जीवन काल में पीछे छोड़ दिया है!, बहुत से सवाल ऐसे है जो हमने अपने आप से किये ही नहीं है और किये है तो भी उसके प्रति कोई भी संज्ञान हमने नहीं लिया! कोई विचार के घोड़े हमने उस मैदान में दौड़ाए ही नहीं! उस ऊबड़ खाबड़ ज़मीन को हमने ज्यों का त्यों ही रहने दिया उसमे कोई भी हल चलाना हमने अपनी जिम्मेवारी समझी ही नहीं!

विस्तार तौर पे लिखने या बोलने जाऊं तो शायद सब कुछ कम पड जाए इसीलिए यहाँ कुछ मुख्य सवालों को सहविस्तार समझाने की कोशिश कर रहा हूँ!

ये सवाल निज से जुड़े हुए है अपने आप से ही
मैं कौन हूँ, मैं क्या हूँ, मैं क्यों हूँ?
   जवाब:  मैं कौन हूँ ये हाथ मेरा हाथ है मैं नहीं, ये पैर मेरा पैर है मैं नहीं, ये सब कुछ पूरा का पूरा शरीर मेरा है मेरे भाग है जो मुझ से जुड़े है पर ये सब कुछ मैं नहीं हूँ, मेरा नाम मेरा है पर वह भी मैं नहीं हूँ तो मैं कौन हूँ, मैं ????   जवाब एकदम सरल सहज और सर्वमान्य है की मैं मैं ही हूँ जो मुझमे बैठा है, जो इस पांच तत्वों से बने तीन गुण पच्चीस प्रकृति से रहित इस देह को चला रहा है! हर वस्तु का ज्ञान करा रहा है! वह तो मुझमे अंदर ही बसा है और वह ही मैं हूँ,
   कई जगह पे आध्यात्मिक, धार्मिक स्थलों में हमने देखा सुना है वह मनुष्य को आत्मा कहते है! और ये सही बात है! पर आत्मा अपने आप को कह भर देना और मान लेना दोनों में बहुत फेर है! कितनी जगहों में तो इसे रट्टा मार के याद कराते है की आप आत्मा है! आप भगवान का अंश है! आप स्वयं भगवान् है! पर क्या ये सही है! इससे उस व्यक्ति में फरक पड़ता है?? नहीं! बिलकुल नहीं वह उस जगह को छोड़ते ही दुबारा अपने विचारों को वही त्याग देता है!
ऐसा क्यों?
क्योंकि इसे समझना इतना आसान नहीं  है मेरे भाई, हम सभी इन बातो को जानते है! पर एक्सेप्ट करना बहुत मुश्किल है! तो पहले अपने आप को जानो, सही तरीके से जानो, इसके लिए आप को एक चटके की जरुरत है! किसी देह धारी गुरु की जरुरत है जो आप के आतम-गुरु को जगा सके! मैं आत्मा हूँ मैं इश्वर का अंश होते हए स्वयं ईश्वर हूँ, और मैं हूँ तो जो भी इस धरति पर है वह भी ईश्वर ही है! और सभी के साथ प्रीति का व्यवहार ही रखना मेरा प्रथम धर्म है! सत्य प्रेम करुणा सिर्फ बातो में नहीं व्यवहार में भी! और यदि मैं यह करता हूँ तो ही "मैं" हूँ वर्ना मैं तो था भी नहीं और हूँ भी नहीं!











जिसे कुछ भी समझने में या गैरसमझ हुई हो तो वह हमसे संपर्क कर सकता है!

जय गुरुदेव                Jay Gurudev                                     જાય ગુરુ દેવ
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