जूना धर्म ल्यो जाणी मारा संतो, जूना धर्म ल्यो जाणी,
नदी किनारे नर कोई उभो, तृष्णा नहीं छिपानी,
का तो एनु अंग आलसु, का सरिता खरे सुखानी!
--मारा संतो, जूना धर्म ल्यो जाणी
कल्पतरु तले जन कोई बैठो, क्षुदा खूब पीड़ानि रे,
नहीं कल्पतरु, ऐ बवालियों, का भाग्य रेख भेलानी
--मारा संतो, जूना धर्म ल्यो जाणी
सद्गुरु सेवई शिष्य नव सुधरे, विमल मलि नहीं वाणी रे
का तो गुरु जी ज्ञान विणा ना, का पापी पामर आ प्राणी
--मारा संतो, जूना धर्म ल्यो जाणी,
भक्ति करता भय दुःख आवे, धीरज नहीं ठेरानि रे
का सम्झन रही छे छेटी, का नहीं ऐ नाम निर्वाणी
--मारा संतो, जूना धर्म ल्यो जाणी,
मलि चिंतामणि पण तो ये, चिंता नव ओलानी रे
नहीं चिंतामणि, नक्की ऐ पथरो, का वास्तु नव ओळखणि
--मारा संतो, जूना धर्म ल्यो जाणी,
मल्यु धन तोए मौज ना मानी, कहु कर्मनि कहानी रे
का तो भाग्य बीजाणु भनियु, का तो खोटी कमानी
--मारा संतो, जूना धर्म ल्यो जाणी,
अमृत मल्यु पण अमर थयो नहिं, पिवनी जुक्ति ना जाणी रे
नदी किनारे नर कोई उभो, तृष्णा नहीं छिपानी,
का तो एनु अंग आलसु, का सरिता खरे सुखानी!
--मारा संतो, जूना धर्म ल्यो जाणी
कल्पतरु तले जन कोई बैठो, क्षुदा खूब पीड़ानि रे,
नहीं कल्पतरु, ऐ बवालियों, का भाग्य रेख भेलानी
--मारा संतो, जूना धर्म ल्यो जाणी
सद्गुरु सेवई शिष्य नव सुधरे, विमल मलि नहीं वाणी रे
का तो गुरु जी ज्ञान विणा ना, का पापी पामर आ प्राणी
--मारा संतो, जूना धर्म ल्यो जाणी,
भक्ति करता भय दुःख आवे, धीरज नहीं ठेरानि रे
का सम्झन रही छे छेटी, का नहीं ऐ नाम निर्वाणी
--मारा संतो, जूना धर्म ल्यो जाणी,
मलि चिंतामणि पण तो ये, चिंता नव ओलानी रे
नहीं चिंतामणि, नक्की ऐ पथरो, का वास्तु नव ओळखणि
--मारा संतो, जूना धर्म ल्यो जाणी,
मल्यु धन तोए मौज ना मानी, कहु कर्मनि कहानी रे
का तो भाग्य बीजाणु भनियु, का तो खोटी कमानी
--मारा संतो, जूना धर्म ल्यो जाणी,
अमृत मल्यु पण अमर थयो नहिं, पिवनी जुक्ति ना जाणी रे
कल्पतरु तले जन कोई बैठो, क्षुदा खूब पीड़ानि रे,
नहीं कल्पतरु, ऐ बवालियों, का भाग्य रेख भेलानी
--मारा संतो, जूना धर्म ल्यो जाणी
ये बात हर कोई जानता है की प्रभु हर जगह मौजूद है हर किसी में मौजूद है!
मुझ में तुम में हर किसी में, पर इस बात को जानते हुए भी हम अंजान ही रहते है!
संतो के समागम के बावजूद भी हममे कोई परिवर्तन आ नहीं पाता है, संत उस कल्पतरु वृक्ष के सामान है
जिसके पास हमारी कोई भी इच्छा अधूरी नहीं रह सकती, मगर फिर भी उस संत के चरण में रह के भी उस कल्पवृक्ष या यूँ कहे की देह धारी गुरु के छत्र में रह कर भी हम कुछ सिख नहीं पाते है, और हमारी प्यास ज्यो की त्यों रह जाती है! इसमें कल्पतरु की गलती माने, या हमारा अहंकार, हमारा पागलपन उसकी गलती माने, या इन सब से पर भाग्य का लिखा हुआ मान के छोड़ दे की शायद हमारी किस्मत में कल्पतरु के वृक्ष का लाभ नहीं है!
जूना धर्म, इस जुने धर्म में इन बातो का समावेश है, सत्य का समावेश है, इसको जानना बहुत जरुरी है! सत सनातन इश्वर की भूमिका, वेद ग्रन्थ सबकुछ इसी से विस्तारित हुआ है! इसी जुने धर्म से तो जिसने ये जूना धर्म जान लिया उसके लिये सब कुछ सरल और सहज हो जाएगा
ये मेरी समझ थी इसके साथ किसी की कोई आपत्ति रहे या कोई और भी समझन रहे तो अवश्य साँझा करे धन्यवाद
नागेश शर्मा
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