लेख (ब्रह्म की खोज करने वाला प्रथम व्यक्ति)सौजन्य (दीपक बापू)
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ऋग्वेद का यह उद्घोष है कि ब्रह्म एक है तथा इसे ब्रह्म ज्ञानी लोग विभिन्न नामो से पुकारते है। ब्रह्म का सबसे समीपवर्ती प्रियतम नाम ओम है। इसे प्रणवाक्षर भी कहा जाता है। सनातन धर्म में प्रयुक्त सभी मंत्र ओम से ही प्रारम्भ होते है क्योकि सभी मंत्र उसी एक सत्य ब्रह्म के लिए ही है अन्य किसी के लिए भी नहीं। क्योकि वही एक नित्य है सत्य है सनातन है। वेदो में तथा पुराणो में विभिन्न नामो से उसी एक ब्रह्म का वर्णन है। ब्रह्म का नाम इनमे से कोई भी हो सकता है। हम उसका वर्णन इनमे से किसी भी नाम से कर सकते है। ब्रह्म को किसी एक पुस्तक किसी एक शब्द किसी एक नाम किसी एक गुण किसी एक स्थान किसी एक व्यक्ति तक सिमित नहीं किया जा सकता है। ब्रह्म स्वयं में अनंत है. उसके अनंत नाम है। उसके अनंत गुण है। उसका परिमाप अनंत है। उसकी अनंत प्रकार से प्रार्थना किया जा सकता है। उसकेअनंत प्रकार के रूप है। इन सबमे से हम किसी भी रूप में ब्रह्म कि पूजा कर सकते है। यथा नद्याः सरोवराः प्रवाहतः गच्छन्ति सागरम्। सर्वदेव नमस्कारम् ब्रह्मैकं प्रति गच्छति ।।
🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀 कुछ व्यक्तियों का यह मत है कि ईश्वर निराकार है। तथा कुछ की यह मान्यता है कि ब्रह्म साकार है। अगर ब्रह्म साकार है तो इसमें मानव अपनी अपनी धारणा बुद्धि के अनुसार ब्रह्म के विभिन्न रूपों की कल्पना कर सकता है किन्तु अगर ब्रह्म निराकार है तो निराकार में मानव कि बुद्धि काम करना बंद कर देती है और वह और आगे तक कल्पना करने में असमर्थ हो जाता है और उसके मन में यही बात घर कर जाती है कि ब्रह्म का कोई भी स्वरुप नहीं है। ठीक वैसे ही जैसे कि किसी को अँधेरे में पूछा जाय कि अमुक वस्तु कैसी है तो वह यही कहेगा कि कोई आकर नहीं है। अगर आपको ऐसा प्रतीत होता है तो आपको यह समझ लेना चाहिए कि आप अभी अंधकार के आधिपत्य में है आपके ज्ञान चक्षुओ को प्रकाश की आवश्यकता है जो कि अभी प्राप्त नहीं हुआ है। आपको अभी प्रयास करने कि आवश्यकता है। जैसा कि आपको ज्ञात है कि देखने के लिए केवल आँखे ही पर्याप्त नहीं है ज्ञान चक्षु कि भी आवश्यक है। आँखों से केवल प्रकाश में देखना सम्भव है किन्तु अगर आपने किसी चीज़ को नहीं देखा है और उसके बारे में आपको ज्ञात भी नहीं है तो उस परिस्थिति में उसे ज्ञान चक्षु से ही देखा जा सकता है। मानव के साथ यह समस्या है कि जो भी वस्तु उसकी आँखों में प्रतिबिंबित न हो उसको देखना तथा समझना असम्भव या कठिन है। जैसा कि अगर वैज्ञानिको को अगर मंगल तक पहुचना है तब वे विभिन्न प्रकार के गणितीय भौतिक तथा रासायनिक परिस्थितियों का अध्ययन करते है जो कि केवल ज्ञान चक्षुओ से ही सम्भव होता है। अध्ययन के पश्चात वे निष्कर्ष पर पहुंच जाते है तथा मंगल तक पहुचने में सफल हो जाते है। जब वे मंगल पर पहुँचते है तभी यह देखना सम्भव हो पता है कि वह कैसा है वह का वातावरण कैसा है आदि आदि।
जब तक मंगल ग्रह पर हम नहीं पंहुच जाते तब तक मंगल ग्रह हमारे लिए निराकार है जब हम उसपर पहुंच जाते है तब वह हमारे लिए साकार हो जाता है। ठीक इसी प्रकार अगर हम यह कहते है कि यह वस्तु निराकार है इसका अर्थ यह है कि हमें उसका स्वरुप पता नहीं है या तो हमारी आँखों के पास उतनी छमता नहीं है कि हम उसे देख सके। भौतिक जीवन में हमारे सपने भी निराकार होते है उसे हम अपने ज्ञान चक्षुओ से देखते है तथा जब उन लक्ष्यों कि प्राप्ति हमें हो जाती है तब हम कहते है कि हमारे सपने साकार हो गए। अतः यह सिद्ध होता है कि हमारे सपने निराकार होते है और वे साकार हो सकते है।
ठीक इसी प्रकार ब्रह्म कि कल्पना जब हम करते है तो वह भी हमें निराकार प्रतीत होतेही और हम उसको प्राप्त करने या प्राप्त होने का प्रयास किये बिना ही यह धारणा बना लेते है कि वह निराकार है। अतः यदि आप यह कहते है कि ब्रह्म निराकार है तो यह स्पष्ट है कि आप अभी ब्रह्म कि कल्पना कर रहे है आप उसके साक्षात्कार के लिए प्रयास नहीं कर रहे है और आपने अभी उसके स्वरुप का दर्शन भी नहीं किया है। अतः यह स्पष्ट है कि निराकार ब्रह्म की प्रथम अवस्था है तथा साकार ही उसकी अंतिम अवस्था है.
वेदो में भी ठीक इसी प्रक्रिया का वर्णन है। प्रारम्भ में वेद यह कहता है कि ब्रह्म कि कोई प्रतिमा नहीं है तथा उसके कोई स्वरुप नहीं है किन्तु जब ऋषि ज्ञान तथा योग के द्वारा ब्रह्म का दर्शन कर लेता है तब वह कहता है कि ब्रह्म अनंत रूपों वाला है उसके अनंत गुण है वह स्वयं में अनंत है उसके प्रार्थना तथा प्रशंसा के अनेक प्रकार हो सकते है। इस प्रकार अनेक ऋषियों ने ब्रह्म का साक्षात्कार किया तथा अपने अपने ज्ञान के अनुसार रेखाचित्रों द्वारा भी ब्रह्म के स्वरुप को समझने का प्रयास किया। यह विभिन्नता ठीक उसी प्रकार है कि यदि किसी वस्तु को १० विभिन्न कलाकारों को दिखाया जाय तथा यह कहा जाय कि वे अलग अलग कमरो में बैठ कर उसके रेखाचित्र बनाये तो यह निश्चित है कि उन सभी के रेखाचित्र एक दूसरे से भिन्न होंगे। जबकि वास्तविकता यह है कि वे सभी रेखाचित्र एक ही वस्तु के है।
धर्मिक पुस्तको को ही लीजिये कोई व्यक्ति उन्हें पढ़कर शांतिमार्गी हो जाता है तो कोई उसे ही पढ़कर हिंसक हो जाता है तो कोई अहिंसक हो जाता है कोई वसुधैव् कटुम्बकम कहता है कोई सभी मान्यताओ का सामान आदर करता है कोई अपने से सभी बड़ो को प्रणाम करने कि बात करता है तो कोई केवल ब्रह्म को ही प्रणाम करने कि बात करता है। तो कोई केवल अपने ही मार्ग को उत्तम तथा अन्य के मार्ग को गलत बताता है। कोई कोई तो अपने को बड़ा तथा दूसरे को छोटा बताता है। यह ठीक वैसे ही है जैसा कि अगर दो व्यक्तियों को कुछ दूरी पर स्थित दो सामान ऊंचाई वाले भवनो पर खड़ा कराया जाय और पूछा जाय कि सामने वाले भवन कि ऊंचाई कितनी है तो वे दोनों सामने वाले भवन को एक दूसरे से छोटा कहेंगे।
किन्तु सभी लोग इस बात में एकमत है कि ब्रह्म एक है ईश्वर एक है । अगर वह एक है तो विभिन्न प्रकार कि मान्यताये और धारणाये क्यों? यह इसलिए कि सबकी बुद्धि अलग अलग है तथा सभी अपनी अपनी समझ के अनुसार ब्रह्म के बारे में बता रहे है।
☘☘☘☘☘☘☘☘☘☘☘☘☘☘☘🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 ऋग्वेद कहता है - 🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌿 एकम सत विप्राः वहुधा वदन्ति।। 🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷ब्रह्म सत्य है और उसे प्राप्त करना विज्ञान से सम्भव है। जैसे भौतिक गुण के लिए भौतिक विज्ञान होता है रासायनिक गुण के लिए रसायन विज्ञान होता है ठीक उसी प्रकार ब्रह्म के लिए ब्रह्म विज्ञान या योग विज्ञान है। जिसमे परिकल्पनाएं है मार्ग बताय गए है किन्तु ब्रह्म का साक्षात्कार तो इस बात पर निर्भर करता है कि आप उस मार्ग पर कितना सही चले है तथा कितना प्रयास किया है. यह ठीक उसी प्रकार है कि प्रयोगशाला में सभी लोग एक ही प्रयोग करते है किन्तु विभिन्न प्रकार कि त्रुटियाँ होने के कारन उनके परिणाम अलग अलग तथा कभी कभी गलत भी होते है।अगर आप ब्रह्म को निराकार कहते है तो इसे यह समझा जायेगा कि आपने केवल सुना है कि ब्रह्म होता है किन्तु देखा नहीं है। इसलिए यदि कोई व्यक्ति इस बात को लेकर दृढ है कि ब्रह्म केवल निराकार होता है। आप अभी ब्रह्म में विस्वास कि प्रथम सोपान पर खड़े है। जैसे जैसे आप ब्रह्म के ओर उन्मुख और समीप होते जाते है वैसे वैसे ही ब्रह्म आपको निराकार से साकार रूप में प्रतीत होने लगता है और अंत में आपको ब्रह्म के साकार रूप के दर्शन होते है।मैं यह कहता हूँ कि आप ब्रह्म प्राप्ति के लिए किसी विद्वान के पास जाइए। आप स्वाध्याय कीजिये । अगर आपको कोई विषय वस्तु नहीं समझ में आये तो आप अन्य पुस्तको से सहायता ले सकते है। जब स्वाध्याय से आपके पास धर्म या ब्रह्म का एक प्रतिबिम्ब बन जाय तब आप किसी विषय विशेषज्ञ के पास जा सकते है। अगर आप बिना स्वाध्याय किये ही किसी विशेषज्ञ के पास जायेंगे तो आपको अंध भक्त होने कि संभावना अधिक होगी और इस अवस्था में आपको अगले के तर्कों को पूर्णतया मानना होगा। अतः अंध भक्त होने से बचने के लिए आप स्वाध्याय करने के बाद ही किसी के पास ब्रह्म चर्चा के लिए जाय।सर्दी के मौसम में जब कुहासा होता है उस समय आपको कुहासे से आगे कुछ नहीं दिखाई देता है किन्तु जब आप वस्तु के समीप जाते है तभी आपको उस वस्तु के साकार होने का बोध होता है। किन्तु यह तब भी थोड़ा धुंधला ही रहता है जब कुहासा पूर्णतया समाप्त हो जाता है तब आपको वह वस्तु साफ दिखाई देने लगती है। ठीक इसी प्रकार ब्रह्म साकार है किन्तु ज्ञान नहीं होने के कारन हम यह मैंने को विवस है कि ब्रह्म निराकार है। अतः अपने ज्ञान को विकसित कीजिये तथा ईश्वर के साकार रूप का साक्षात्कार कीजिये। कभी भी लोगो के बहकावे में मत आये कि आज तक भगवन को किसने देखा है आदि आदि। आप उनसे यह पूछे कि आज तक मंगल पर कौन गया है? किसी आविष्कार के बारे में पूछे कि जब यह पहले नहीं हुआ था तो आज कैसे हो गया? अगर आपको भी ऐसा लगता है कि ब्रह्म निराकार है तो आप ब्रह्म को खोजने वाले प्रथम व्यक्ति का स्थान प्राप्त कर सकते है। क्यों इस उपलब्धि को आप हासिल करना नहीं चाहते?प्राचीन कल में वेद पुराण हुआ करते थे पुराणो में बोध कथा के माध्यम से वेदो में कही गयी बातो को बड़े ही सरल तथा रोचक तरीके से समझाया गया है। कुछ विद्वान तथा विशेषतया आर्य समाजी विद्वान इसे काल्पनिक बताते है अगर यह काल्पनिक हो भी तो इसमें क्या बुराई है? अगर ब्रह्म के बारे में हम दुसरो से सुनकर ही कल्पना करते है बाद में उसे प्राप्त होने या प्रत्यक्ष साक्षात्कार के लिए प्रयास करते है। उसमे से हमें कहानिया ग्रहण करने की अपेक्षा उसमे उपस्थित भगवानुवाच तथा इश्वरोवाच पर विशेष ध्यान देना चाहिए। ब्रह्म की वाणी ही वेद वाणी है। पुराणो में तो केवल यही समझने का प्रयास किया गया है की किसने क्या कर्म किया तो उसे क्या फल मिला? पुराणो को पढ़ने से मना करना उपयुक्त नहीं है। वेदो के माध्यम से ब्रह्म के उपदेश को समझना बहुत ही कठिन है। पुराणो के माध्यम से समझना बहुत ही आसान है। यह कहकर मैं पुराणो को किसी विद्वान से सुनने का समर्थन करता हूँ। कृपया पुराणो को त्यागे नहीं। उसमे कुछ प्रछेप हो सकते है जिसे विद्वानो की सर्व सम्मति से सुधारने की महती आवश्यकता है जिससे विश्व भर के मानव मात्र का कल्याण हो सके। पुराणो में कुछ अश्लील शब्द मिलते है जिसपर कुछ विद्वानो की असहमति हो सकती है। इसे त्यागने के बजाय सुधारने की महती आवश्यकता है। आज आवश्यकता है पुनः एक नए वेदव्यास की जो पुनः इन वेदो तथा पुराणो से प्रक्षेपों को हटाकर उनके वास्तविक रूप को मानव मात्र के सम्मुख रख सके जिससे मानव मात्र का कल्याण सुरक्षित हो। अगर आप की पकड़ वेदो तथा पुराणो पर अधिक हो तो कृपया एक समूह बनाये तथा इस पावन जीर्णोद्धार में अपना अमूल्य योगदान करे। नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब लोग अपने बच्चो को यह पढ़ाएंगे की प्राचीन काल में वेद पुराण हुआ करते थे. वेदो को ईश्वर ने लिखा तथा पुराणो को ब्राह्मणो ने लिखा कृपया ऐसी भ्रान्तिया न फैलाये। इससे समाज में भेद भाव पैदा हो रहा है। सबको एकजुट करने का प्रयास करे। अगर सम्भव हो तो सबके साथ मिलकर किसी एक ही मत का प्रचार करे। सोशल मीडिया में सभी लोग अपना अपना प्रचार कर रहे है। सभी अपने अपने धर्म गुरु का ही प्रचार कर रहे है धर्म का नहीं। यह भी एक प्रकार का पाखंड है इससे भी बचे। पाखंडी नहीं धार्मिक बने। केवल सनातन धर्म का ही प्रचार प्रसार करें। सनातन धर्म की जय हो!नोट: प्रस्तुत लेख व्हाट्सप्प ग्रुप के सौजन्य से दीपक बापू द्वारा भेजे हुए लेख से बिना किसी रूपांतरण के ज्यों की त्यों ली गयी है! यदि किसी को कोई तकलीफ हो तो वह कमेंट में अपनी राय लिख सकता है!धन्यवादजिसे कुछ भी समझने में या गैरसमझ हुई हो तो वह हमसे संपर्क कर सकता है! जय गुरुदेव Jay Gurudev જાય ગુરુ દેવ नागेश शर्मा Nagesh Sharma નાગેશ શર્મા दीपक बापू Deepak Bapu દિપક બાપુ
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