१ गुरु कौन है
जब व्यक्ति जन्मा लेता है तब उसको इस श्रुष्टी में होने वाली किसी बात की जानकारी होती नहीं है सभी वस्तुएँ उसको दिखाई, बताई, समझाई जाती है और ये सब बाते स्टेप बी स्टेप होती है जैसे की उसको खान खाने, के लिए पिता, माता, मामा, काका, नाना, दादा ये सब रिश्ते बताने समझाने जो भी है फिर वह उसके माता पिता हो या कोई और रिश्तेदार या पहचानने वाला कोई भी ये ही वह पहले गुरु होते है सही मायने में!! ज्यादातर जगहों पे लिखा होता है या बताया जाता है की माँ पिता ही प्रथम गुरु होते है और ये बात गलत भी नहीं है क्योकि उपरोक्त सभी बाते वह ही लोग सीखते है पर यदि किसी कारन वश दुर्भाग्य से ये लोग न हो तो इनके आलावा जो भी इन बातो का ख्याल रखता है या बताता है वह ही उस व्यक्ति का प्रथम गुरु होता है!
इस प्रथम गुरु के बाद में व्यक्ति मिलता है अपने जीवन के दूसरे पड़ाव में आने वाले दूसरे गुरु से जो की उसे अक्षर ज्ञान देते है जैसे की स्कूल, कॉलेज या कोई कोर्स के वक़्त (अब बहुत लोगो का सवाल होगा की कितने गुरु मिल गए उपरोक्त प्रथम गुरु में ही तो इसे द्वितीय या दूसरा गुरु क्यों कहा तो मैं अपने तथ्यों को क्लियर कर दो की सेकंड लेवल का गुरु है ये ना की लाइफ में मिलने वाला सिर्फ दूसरा व्यक्ति जो गुरु की तौर पे मिला है) ये भी गुरु ही है!
तीसरा पड़ाव आता है कामना और घर सम्भालना जिसे हम गृहस्थ जीवन भी कह सकते है इसमें भी एक गुरु मिलता है पर ये गुरु का रूप थोड़ा बाकि के दो गुरु से अलग होता है ये गुरु को आप एक आदर्श के रूप में देख सकते है! ये गुरु आदर्श स्वरुप होता है जिसे देख के हमें अपना करियर चुनने में और अपने आप को आगे की और अग्रसर करने में सहायता मिलती है मगर हम इसे हक़ीक़त में गुरु की उपाधि दे नहीं पाते है या कहिये की मानते ही नहीं है मगर ध्यान दिया जाए तो वह भी एक गुरु ही है!
चौथा गुरु जो की सबसे अहम है जरुरी है, सर्व ज्ञाता, सर्व गन संपन्न, है वही एक्चुअली गुरु है जिसकी कामना हम करते है यही वह गुरु है जो हमें सतगुरु के दर्शन करा देता है ८४ के झंझट से उसके बोझ से मुक्त करा देता है हर तरह की मोह माया के बंधन को तोड़ देता है या कहिये की तोड़ने की ताकत हमारे अंदर झोंक देता है उसके एक शब्द का व्यापर कर के ही हम भव दरिया को पार कर लेते है ऐसे गुरु की कामना हम करते है और यही वह गुरु है जिसे हम ढूंढते है!
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