ज़िन्दगी जीने के लिए दुनिया में हमें उस ऊपर वाले ने भेजा है और हम इस बात को अच्छी तरीके से जानते है की हमे उसने सिर्फ अच्छा काम करने के लिए ही भेजा है फिर भी इस दुनिया की बुराई हमे अपने में जकड लेती है और हम अपने किये हुए वादो को भूल जाते है जो हमने इस ज़मीन पे जीवन पाने के पहले किये थे !
"कॉल बचन दे बाहेर आयो, आकर लोभ में चित्त लगायो"
बड़ी ही खुबशुरत वाणी है "भजन बिना नर है पशु के सामान"
क्या है वो सच आखिर क्या वादा किया था हम ने कौन सा कॉल था वह??
इस लेख में मैंने जो भी लिखा है वह सब उस सच को ढूंढने के समय में मुझे मिला है, हर व्यक्ति इस सत्य को प्राप्त कर सकता है उसे ज्यादा मेहनत न करनी पड़े इसीलिए उसका एक साधारण रुप से मैं यहाँ वर्णन कर रहा हूँ यदि कोई गलती, भूल हो जाए या शब्दों में कोई कमी रहे तो इसे मेरी नादानी या नासमझी ही समझना क्योंकि जिसने मुझे बताया वह सही था, है और रहेगा।..
इस चीज़ की शुरुआत कैसे करूँ मुझे पता नहीं है इसीलिए मुझे ज्यो ज्यो याद आ रहा है मैं उसको यहाँ लिखते जा रहा हूँ
सब से पहले दास सवा बापू की सलामी जिसने सब से पहले मेरे मस्तिष्क में अपनी छाप छोड़ी
(१) "पहली सलामी पृथ्वी ने करिये जेनी पीठ पर पग दाई फरिये
करू परिक्रमा शीश नामवि सवा शेर नि जेने काया बनावी"
अर्थ
इसके अर्थ हर कोई अपने हिसाब से निकलता है जिसमे सब से सिंपल यही समझ में आता है की
(१) यह पृथ्वी/जमीन/धरातल/धरतीमाता/मृत्युलोक और न जाने किन किन नामो से हमारे संतो पुरखो ने इसे नवाजा है ! इसने हमे सबसे पहले अपने ऊपर (पीठ) खड़े रहने बैठने घर बनाने और न जाने क्या क्या करने के अवसर दिए यदि यह धरती न होती तो हम क्या करते इस्का हम अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते है इसीलिए ऐसी धरती को महान समझना हम सभी का परम कर्त्तव्य है यदि ये न होती तो किस जगह राम-रावण, कृष्णा-कंश, नरसिम्हा-हिरण्यकश्यप ये सब कहा आते कहा अपनी लीलाओ को दिखाते जनमानस को बोध कराते इसका जवाब शायद हमारे पास नहीं है सिर्फ इतना ही नहीं अतएव यही है जिसने अपने गर्भ की गर्मी से अपने उपजाऊ जमीन से हमें अन्न वस्त्र और पुजीविका के साधन उपलब्ध कराये है इसीलिए हमे इसका सबसे ज्यादा कर्ज चुकाना है और हमारी पहली सलामी (नमस्कार)(प्रणाम) इस धरातल को है जिसकी परिक्रमा करते हुए अपने शीश को झुका नतमस्तक हो कर मैं अपने आप को इसका हिस्सा जान रहा हूँ इसने मुझे बनाया है ये मैं मानता हूँ और उसके इस कर्ज को स्वीकारता हूँ
(२) हम सभी जानते है की यह शरीर पांच तत्वों से बना है वो तत्व् है १-जल २-वायु ३-जमीन(मिटटी)(भूमि) ४-आकाश(शुन्य) ५-अग्नि(आग तेज)
और ये तत्त्व उस एक बूँद में शमाए होते है जिसके बारे में उक्त समझदार व्यक्ति जानते ही है और जो नही जानते है उनके लिए इसका ब्यौरा आगे चल के मैं दे दूंगा! ये १ बूँद जब स्त्री के गर्भाशय में जाता है तब उसे एक रूप मिलता है ये रूप नर नारी किसी का भी हो सकता है करनी पे आधारित है इस रूप में वह मनुष्य उसी गर्भाशय में ९ माह तक अपने आप को कुंठित कर के सिकुड़ा हुवा दयनीय स्थिति में रहता है और भगवन के वचनो का स्मरण करता है उस वक़्त वह उसी गर्भाशय में परिक्रमा करता हुआ हाथो को जोड़े हुए प्रभु से अपने किये हुए वादो को दुहराता है और प्रभु के नाम को सर्वस्व मानते हुए बाहर आने की विनंती करता है इसी बात को यहाँ इस पहली सलाम में बताया गया है जिसमे पृथ्वी वह शरीर है जिसमे मनुष्य ने ९ माह गुजारे और परिक्रमा करते हुए हाथो को जोड़कर विनंती की तब जा कर उसे यह सवा शेर की काया (मनुष्य रूपी अवतार) मिला है
(२) "बीजी सलाम करू अन्न जल अग्नि जिव्हा डोरी ये जग जगनी
आपनी श्रुष्टि आपने खावे बीजी सलाम करू मन भावे"
अर्थ
बीजी याने दूसरी सलाम अन्न (खाना)(भोजन)या (भोज्य पदार्थ), जल(पानी), अग्नि (आग) को करता हूँ क्योकि ये तीनो के बिना कोई मनुष्य या कोई भी प्राणी या दूसरे शब्दों में कहे तो कोई भी सजीव इस संसार में नहीं रह सकता है!
यह संसार में भोजन चक्र को यदि देखा जाये तो सभी एक दूसरे के ऊपर जीवित है एक दूसरे को खा रहे है (इसे समझाना या समझना जीतना आसान लगता है उतना है नहीं फिर भी मैं अपनी तरफ से इसके बारे में आप को आगे चल के बताऊंगा )
इस अन्न जल अग्नि को मेरी दूसरी सलाम समर्पित है!
(३) "त्रिजी सलाम करू त्रिकाला चन्द्रमा भान मोठा महिपाला
अवे आप श्रुष्टि मा करो अंजुवाला"
अर्थ
त्रिजी याने तीसरी सलाम जो की हम त्रिकाल यानी तीन काल को करते है ये तीन काल है चन्द्र सूर्य(भान) महिपाल (राजा या कृष्णा भगवान) यही वह तीन लोग है जिनसे इस श्रुष्टि में उजाला होता है और यह निरंतर रूप से चलती रहती है इसीलिए तीसरी सलाम मैं इन तीनो को करता हूँ
(४) "चौथी सलाम मा चारो खाणी एक बीजक नि जगत बंधानी
अविनाशी पर्चो छे एमा चौथी सलाम नि मोठी महिमा"
अर्थ
यहाँ शब्द खानी का प्रयोग हुआ है खानी मतलब वह जरिया जिससे किसी सजीव की उत्पत्ति होती है जिसके ४ प्रकार है
(१) इंड (२) पिंड (३)थावर (४)ओसवाल इसके बारे में मैं आप लोगो को सविस्तार समझाऊंगा आगे चल के
ये चारो से होने वाली उत्पत्ति इस श्रुष्टि को चलती है इसी के आधार पर ये श्रुष्टि टिकी है और सुचारू रूप से चल रही है चौथी सलाम इन्ही चारो खानियो को समर्पित है
(५) "पांचवी सलाम करू पहाड़ वन खण्डी जेने वेक्ख तापी अने ठंडी
शरीर वेराय सेव काय कीधी पांचवी सलाम रहो सौ रीझि"
अर्थ
पांचवी सलाम पहाड़ वन भूतल विभाग को जिसने सदियों से पड़ने वाली सर्दी गर्मी और प्रलय को भी देखा है
हर चीज़ को सहन किया है और हमारे लिए अपने आप की परवाह न करते हुए निरंतर हमारी सेवा करते आ रहे है इसीलिए इनकी महत्ता अधिक है और ये हमसे रुष्ट न हो ऐसी प्रार्थना मैं करता हूँ
(६) “छठी सलाम करू सात सतवाचा सत्कर्म मन अने वचनो ना साचा
सत् चित रहे आनंद एक रंगा छठी सलाम करू गतगंगा"
अर्थ
छठवी सलामी उन सच्चे व्यक्तियों के लिए है जिनकी वाणी निर्मल है जो सच्चे है जिनका मन ध्यान हमेशा सत्कर्मो और धार्मिक प्रसंगो में लगा रहता है ऐसे लोग गंगा के समान है जिनके पास होने मात्र से हम पवित्र हो जाते है ऐसे व्यक्ति के लिए ही छठी सलाम है
(७) "सातवी सलाम करू शेष ने छेल्ली पृथ्वी ना भार रह्या छे झेली
सकल श्रुष्टि वसे तम माथे सात सलाम करू बेयो हाथे"
अर्थ
सातवी सलाम मैं शेषनाग को करता हूँ जिसने इस पृथ्वी के भार को संभाल के युगो युगो से अपने माथे पे रखा हुआ है ये शेषनाग श्री विष्णु जी के साथ दिखने वाले ही है अतः इनकी गरिमा कहीं से कम नहीं है !
"दृश्या दृष्टि अलख तू एक ही सात सलाम करू एम देखि
आपनी सलाम करिष्ये आपे दास सवो सतगुरु माप अमापे"
अर्थ
हर नज़र से नज़ारे से देखा हर जगह देखा अलख हरी तू एक ही है हर जगह है हर किसी में है मुझमे भी है तुझे अपने रूप में देख के मैं सभी सलाम करता हूँ
अपनी सलाम अपने आप को करता हूँ इस तरह का वर्णन सवा दास अपने सतगुरु को ध्यान में रख के कर रहे है
दास सवा लिखित इस साखी में ज्यादातर पहली सीढ़ी चढ़ने की हर वह तरकीब दिख ही गयी है इसीलिए इस लेख का नाम भी मैंने प्रथम दिया है और सब से पहले अपने लेख में शामिल किया है!
आज हम इस सीढ़ी पे चढ़ने की कोशिश करेंगे उसे कैसे चढ़ना है इस बात को सिखने की कोशिश करेंगे मैं अपने शब्द आप के समक्ष रख रहा हूँ तो इसके पीछे मेरा ध्येय एक ही है की सभी सुखी रहे और सभी में शांति की स्थापना हो!
मोक्ष
बड़ा ही छोटा सा शब्द लगता है लिखने में, बहुत बड़ा सोचने में, असीमित अद्भुत समझने में!
मोक्ष की प्रथम सीढ़ी को आज समझने की कोशिश हम करेंगे!
मैं यहाँ जो लिख रहा हूँ वह मेरे शब्द है, उन्हें और लोगो ने भी लिखा होगा ना नहीं है परन्तु इसे मैंने मेरे हिसाब से मेरी अनुभूति मेरे अनुभव का निचोड़ बन के लिखा है! तो यदि किसी को भी आपत्ति हो तो मुझे कह सकते है!
देखिये ये हम सभी जानते है! किसी भी अध्ययन की प्रथम श्रेणी होती है श्रवण, जी हाँ, सुनना, बिना सुने कोई वस्तु पता कर पाना मुश्किल होता है! सुनना सिर्फ कानो से नहीं होता है! सुनना आँखों से भी होता है! मन से भी होता है! त्वचा से भी होता है! सुनना है तो ये सब आप की एक जगह पे होनी चाहिए! मन भटकते रहेगा, शारीर अस्त व्यस्त रहेगा, आँखे ठिकाने पे नहीं रहेगी तो कानो में पड़ने वाली बात का कोई महत्व नहीं रहेगा उसका कोई असर नहीं होगा! इसीलिए बोलने वाला जब बोल रहा है तब श्रवण की क्रिया सही ढंग से होनी चाहिए, सुनना ही मोक्ष की पहली सीढ़ी चढ़ने का रास्ता है! या जिस तरह से कहिये, जो भी मानिए, सुनना ही ज्ञान का पहला पग है!
बोलने वाले को सुनने वाले के प्रति श्रद्धा होनी चाहिए और सुनने वाले को भी बोलने वाले के प्रति श्रद्धा होनी चाहिए तो ही बोले हुए शब्दों का कुछ असर होगा! आज की डेट में क्या हो गया है! more
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