"नाम" नागेश जय गुरुदेव (दीपक बापू)

सोमवार, 28 मार्च 2016

उत्पत्ती

उत्पत्ती


बहुत दिन बीत गए मैं कुछ लिख नहीं पा रहा था उसके कारन बहुत से है अलग-अलग तरह के मगर उसे जाने दीजिये कोई मतलब नहीं निकलता है उनका! आज मैं कुछ इम्पोर्टेन्ट चीज़ो को विस्तार कर के बताने जा रहा हूँ! जिसके लिए हम शुन्य अर्थात एकदम पहले से शुरुआत करेंगे! सब से पहले की हम यहाँ क्यों है?? इसके तो शॉर्टकट में फ़िलहाल उसका जवाब यही है जिसको ज्यादातर लोग मान्य करेंगे की हम यहाँ पे अपने जीवन को सफल बनने के लिए ही आये है! अपने जीवन की हर चाहत को पूरा करने के लिए ही यहाँ आये है! इसके आलावा कोई और उद्देश्य या कहे लक्ष्य है ही नहीं! मगर एक बार दिल पे हाथ रख के देखिये की आप अपने को सफल बनाने के चक्कर में समाज देश दुनिया को दिखने के चक्कर में खुद को कितना खो चुके है! हक़ीक़त में हम यहाँ उस इश्वर की खोज उसका अस्तित्व उसकी चरण की शांति को खोजने के लिए ही आये है, अजीब अजीब तरीके से लोग उसे मनाने की कोशिश करते रहते है और इस चक्कर में कई बार उलटे पुलटे काम भी कर जाते है! मगर हम इस मायानगरी में आने के बाद अपनी चाहत की दिशा बदल देते है चाहत कुछ और होती है मगर चकाचौंध देख के वह बदल जाती है ऐसा क्यों होता है अखिर हम इसके बहार क्यों नहीं आ पते है जी हाँ ये बात सच है की हम जानते हुए भी बेवकूफ़ बनते है और अपने दिल को कुछ और बेवकूफो के ज़रिए दिलाशा भी देते है की "WE ARE RIGHT" And things are just to happen" ये सब होने के लिए ही है और हम सही है, पर क्यों ऐसा सोचना अगर गलत है तो क्यों गलत है! और अगर सही है तो क्यों सही है! सब से पहले तो हम ये देखेंगे की उत्पत्ति कैसे हुयी है यहाँ जो में लिख रहा हूँ उसका हिसाब किताब कितने लोग मानते है या नहीं मानते है ये मैं नहीं जानता हूँ ये एक सोच है जिसे मैंने पन्ने पे उतरा है और मुझे इसका इससे ज्यादा अच्छा सही और मजबूत विचार कही और मिला नहीं है कम से कम अब तक तो बिलकुल भी नहीं!!!!!!! ये दुनिया आग का गोला थी जिसे हम सूर्य का ही एक भाग कह सकते है और हक़ीक़त भी यही है की यह सूर्य का या सूर्य के सामान किसी बड़े तारे का ही भाग थी या जो भी हो चाहे! पर थी तो ये आग का ही एक गोल करोड़ो वर्ष बीतते गए और इस आग के गोले की बाहरी परत (सतह) ठंडी पड़ती गयी और जैसा की हम सभी जानते है की सूर्य से आने वाली किरण डायरेक्ट यहाँ तक नहीं पहुंचती है जिसके कारन टेम्परेचर बढ़ता नहीं है और यही कारन था की आग का ये गोल जल जल के खुद-बा-खुद ठंडा पड़ने लगा! ये सब पहले से इतनी आसानी से हो गया ऐसा बिलकुल भी नहीं है क्योकि हम आज सूर्य की किरणों से बच्चे है क्योकि वह डायरेक्ट हमारी पृथ्वी पे नहीं आती है पर शुरुआत में वह आ रही थी पर रासायनिक क्रियाओं के होते रहने से पृथ्वी में घर्षण के कारन गुरुत्वाकर्षण का निर्माण हो रहा था और आकाश में खंडित हो कर विचरने वाले कई तत्वों को अपने में समाहित कर रहा था जिसके कारन पृथ्वी से ऊपर गैस के रूप में एक वातावरण का निर्माण हुआ जिसने सूर्य की किरणों को फ़िल्टर करना शुरू कर दिया, और इसकी बाहरी परत धीरे धीरे सख्त होने लगी सख्त होने के साथ में जो आग में से गरम हवा सराउंड किये हुए थी उनमे केमिकल रिएक्शन हुआ और वह भाप (गैस) में से कन्वर्ट होक लिक्विड फॉर्म में आने लगे और जैसा की हम सभी इस बात से परिचित है की "Earth is totally surrounded in-fact mostly part of earth is covered by water" पृथ्वी पूरी तरह से लगभा ९५% से ज्यादा पानी से ही ढकी हुयी है! और ये भी सच बात है की उस समय में आग के इस गोले की गर्मी को माप निकल पाना थोड़ा मुश्किल ही है और जैसे जैसे वर्षो बीतते गए तब पिघले हुए वस्तुओं में से बनने वाली गैस की मात्र भी एक ऊँचे लेवल पे पहुंची थी और गैस से लिक्विड भी उतने ही ऊँचे लेवल पे हुआ जिसके कारन लिक्विड की मात्र बहुत ज्यादा बढ़ गयी! मगर यह प्रथम प्रक्रिया थी जिसमे पानी का जिसको सही तौर पे समझने के लिए गहन अध्ययन की जरुरत है और उसमे तो पूरी बुक ही भर जाए पर यहाँ हम थोड़ा सा शॉर्टकट ले रहे है और आगे बढ़ रहे है, जैसा की हमने देखा की ये लिक्विड में ट्रांसफर होने के बाद जब बारिश के रूप में इस ज़मीन पे पड़ा तो ज़मीन में मौजूद केमिकल्स के साथ हुए रिएक्शन एक साथ ये एक हो गए और पानी में मिल गए और ये तो साफ है की यह पानी पीने लायक तो बिलकुल भी नहीं था और ये शुरुआती दौर था हमारे पृथ्वी के बनने का! अब जैसा की यहाँ तक हमने देखा की अपनी प्यारी पृथ्वी (Earth) बन के तैयार थी जिसपे वाटर / एयर / और सूर्य / चन्द्र प्रकाश भी था! अब आगे… ये लाइन आप को याद होगी “चौथी सलाम करू चारो खानी एक बीजक नई जगत बंधाणी” सात सलामी की सखी से ली हुयी इस सलामी का डिटेलिंग हम पहले ही कर चुके है (http://santnagesh.blogspot.com/2016/03/pratham.html) इसमें एक वर्ड आया है ओसवाल ये एक खानी है “खानी” कहे तो पैदावार की टाइप हवा से जो पैदाइश होती है वह ठीक इसी प्रकार पानी में मिले हुए केमिकल और बाहरी पर्यावरण में फैले हुए कुछ “अनु” ने साथ में रिएक्शन कर के सब से पहले एक जीव की उत्पत्ति की जो की बिना किसी कोशिका के था जिसे साइंस ने अमीबा का नाम दिया है यही अमीबा आगे चल के थोड़ा फैला और रिएक्शन्स भी बढे जिनमे से कीड़ी मेरा मतलब की चींटी वगेरा टाइप के जानवर हुए इनकी गलत ब्रीडिंग या मिक्स ब्रीडिंग ने दूसरे और जीव को पैदा किया और इनके साइज आपसी मिक्स ब्रीडिंग के कारन धीरे धीरे बढ़ने लगे और एक विशाल रूप लेने लगे जो की हम सब जानते है बन्दर गर्रिला चिम्पांजी डायनासोर इत्यादि… इसके आगे की कहानी मानव के विकास की वह तो सर्व व्यापक है और सभी को पता है इसीलिए इसकी ज्यादा डिटेलिंग यहाँ करने की कोई जरुरत नहीं है और अब जब हम आगे बढ़ेंगे आध्यात्मिकता की और तो ये सवाल सब से पहले आएगा की “ये यहाँ क्यों हुआ सूर्य के चारो तरफ same distance पे दूसरी जगह या किसी और जगह क्यों नहीं हुआ और अगर ये हुआ तो यहाँ पे ही क्यों हुआ किसीने बोला था किसने बोला था तो वह कौन था और क्यों था” इसकी जानकारी ही हमारा मैन उद्देश्य है और इसके बारे में हम जो भी लिखेंगे वो सब कुछ एक पुख्ता सबूत के साथ हो सच हो और तर्क सहित हो इसकी मैन अपने तरफ से भरसक कोशिश करूँगा

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