"नाम" नागेश जय गुरुदेव (दीपक बापू)

सोमवार, 28 मार्च 2016

Ek Suruaat

Date 28th of March 2016


             हमेशा से एक ख्याल दिल में आता है की जो भी होता है उसके पीछे क्या कारन है हम जिस भी रस्ते पे चलते है उससे क्या हासिल करना चाहते है तो एंडिंग पॉइंट पे एक ही जवाब है की शान्ति, जी हां मगर ये शांति हमें मिलती है क्या??? क्या सही में हम शान्ति की अनुभूति को अपने अंदर समां पाते है??? क्या हम शान्ति का सही सही अर्थ जानते भी है?? और अगर जानते है तो क्या हम उसके राह में चलते है?? ये सभी प्रश्नों के जवाब सरल रूप पे बता पाना थोड़ा मुश्किल है! मगर नामुमकिन नहीं सिर्फ शब्दों की कमी के कारन ही हम सही ताल मेल नहीं बिठा पा रहे है और जो कुछ भी हमें कहना है नहीं कह पा रहे है तो आइए थोड़ा प्रकाश इस और भी डालने की कोशिश करते है शायद आप को थोड़ी सी मदद मिल जाए समझने में!! कुछ लोगो का जवाब जिन्हे हम बुद्धिजीवी भी कह सकते है "की जी हाँ शांति मिली है हमें हमने हमारी इच्छा को हमारे लोगो की डिमांड को पूरा किया है और हमें शांति मिली" 
अब दोबारा शब्दों पे ग़ौर करेंगे तो पाएंगे की उन्हें शांति नहीं मिली है जब उन्हें उनकी मन की दशा के बारे में बोलने के लिए कहा जायेगा तो हमें एक्चुअल जो जवाब मिलेगा वह होगा "ना" क्योंकि जिस इच्छा की पूर्ति हम करते है वह से ही दूसरी इच्छा जन्मा लेना शुरू कर देती है! कबीर ने अपनी पंक्ति में इन शब्दों को कहा है की "आशा तृष्णा मिटे नहीं कह गए दास कबीर"

उदहारण के तौर पे समझने के लिए देखते है की.. हम चाहते है की शादी हो जाये और कुछ टाइम में हो जाती है शादी होने के बाद शांति मिलती है??? नहीं मिलती फिर दूसरी इच्छा होती है की बच्चे हो जाये ! बच्चे के बाद में इच्छा होती है की वह लड़का हो या लड़की हो जैसी जिसकी सोच होती है वैसा डिमांड सोच के हिसाब से होने के बाद में भी शांति नहीं मिलती फिर दूसरी इच्छा की वह अच्छा निकले अच्छा निकले तो ठीक नहीं निकलता है नालायक निकलता है तो फिर हम अशांति में ही आ जाते है! अच्छा निकलता है तो भी इच्छाएं बढ़ती जाती है की अब उसकी शादी, नाती पोते दादा बनना है नाना बनना है etc etc…. मतलब एक्चुअली शांति मिलती है ही नहीं और अंत में हम पहुंचते है कहा मंदिर में, किसी गुरु की शरण में की भाई बहुत हो गया अब कुछ ज्ञान की बात करो तो शान्ति मिले!!! ;);) और ले देके कोई कितना भी पैसे वाला हो कैसा भी हो लास्ट में शान्ति उसे यही मिलती है तो ये सब क्यों इतना घूमने घुमाने का चक्कर क्यों जितना उस उपर वाले ने दिया उसमे शांति क्यों नहीं मानते है या जो भी मिलता है उसको पचा क्यों नहीं पाते है ये सीखना हमे बहुत जरुरी है! बहुत से गुरु संत महात्मा आज ढोंगी स्वरुप बनाए घूमते रहते है जिनका खुद का उद्धार नहीं है! वह तुमको क्या उद्धार दिलाएंगे, फिर भी हमारी मानसिकता देखिये सब कुछ देखते समझते हुए भी हम अंधे और अबोध बनते है क्योकि हम लोगो के हाथ पाँव, इन्होने बाँध के रख दिए है जैसे की “फैमिली डॉक्टर” दवाई असर नहीं कर रही है फिर भी हम उसके पास ही जा रहे है क्योकि फॅमिली डॉक्टर है और वह भी ऐसा ही करता है की कुछ न कुछ एंटीबायोटिक देकर टाइम पास जारी रखे हुए है ना खुद ठीक करेगा न तुम्हे कहीं और जाने देगा! और फिर! 'भाई, जाने दे भी क्यों उसकी जीविका चल रही है तुम से वह भी तुम्हे नचाता रहेगा जब तक तुम खत्म नहीं हो जाते… मगर यहाँ देखने वाली चीज़ है की जैसे डॉक्टर सब के सब ख़राब नहीं है मगर लेवल होता है कोई RMO हो या सिर्फ कान का या दांत का ही डॉक्टर हो तो हम उसे डॉक्टर ही कहेंगे कुछ और नहीं ठीक वैसे ही जो गुरु होता है वह गुरु ही है मगर उनका भी एक लेवल है कोई अच्छी बाते जानता है, किसी को अच्छे व्यवहार के बारे में बारीकी से जानकारी होती है किसी में शालीनता की भरमार होती है! कोई शब्दों के खेल में पारंगत होता है कोई योग विद्या का धनि होता है हर व्यक्ति जो गुरु कहलाता है किसी न किसी गुण का धनि तो है ही और उस गुण के आधार पे ही वह आगे की और बढ़ता है! है ये सब ही गुरु है मगर हमको इन सब से ऊपर इन सभी का मिला जला स्वरुप चाहिए जिसके पास ये सब कुछ हो और आगे बढ़ने के साथ साथ आगे बढ़ने की ताकत रखता हो ऐसा देह धरी गुरु हमे ढूंढना है! अच्छा जब ये पता चल गया है की गुरु ढूँढना है तो ये जानना भी जरुरी है की गुरु है क्या और गुरु कैसा होता है गुरु की व्याख्या काया है आज विस्तार में हम गुरु की चर्चा करेंगे 

3 टिप्‍पणियां:

  1. सत् विचार-:आत्मविश्वास, आत्मज्ञान और आत्मसंयम केवल यही तीन जीवन को परम शांति सम्पन्न बना देते हैं।और यह तीन केवल एक सत्संग के द्वारा ही प्राप्त हो सकता है।

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  2. सत् विचार-:आत्मविश्वास, आत्मज्ञान और आत्मसंयम केवल यही तीन जीवन को परम शांति सम्पन्न बना देते हैं।और यह तीन केवल एक सत्संग के द्वारा ही प्राप्त हो सकता है।

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