"पशु कि पनिया बने नर का कछु नहीं होए
जो नर करनी करे तो नर से नारायण होए"
इस साखी में बताया है की एक पशु तक इतना उपयोगी होता है की उसके शरीर के भागो से कुछ न कुछ वस्तुए बनती है पर नर इतना अभागा है की उसका कुछ नहीं होता है पर नर की करनी मतलब उसके कर्म यदि सही हो तो वही नर नारायण भी बन सकता है आज इसी बात पे हम तरह - तरह से नज़र डालेंगे
मनुष्य अवतार वह अवतार है जिसकी पाने की इक्षा मात्र से भगवन भी धरातल पर उतर आते है !
मत्स्य / कुर्मा / वराहा / वामना / परशुराम / गौतम बुद्धा* / श्री राम / श्री कृष्णा / नरसिम्हा / कलयुगी कल्कि* ये सब उदहारण है प्रभु के आगमन के जिसके बारे में हम सभी लोग ज्यादातर जानते ही है
आखिर क्या है ये मनुष्य अवतार क्यों है ये मनुष्य अवतार इसे समझना या समझाना मुश्किल नहीं है मगर इस मोह माया भरी दुनिया में हम लोग इतने भ्रमित हो चुके है की हममें समझने की ताकत ही नहीं रही
"पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात.
एक दिना छिप जाएगा,ज्यों तारा परभात."
कबीर का कहना है कि जैसे पानी के बुलबुले होते है ठीक इसी प्रकार मनुष्य का शरीर क्षणभंगुर है।जैसे दिन का उजाला होते ही तारे छिप जाते हैं, वैसे ही ये देह भी एक दिन नष्ट हो जाएगी. और हम सभी इस बात को भलीभांत जानते है
फिर भी हम अपने आप से बांज नहीं आते!
मनुष्य को जीवन का सत्य पता करना बहुत जरुरी है इस नश्वर श्रुष्टि में हर कलाकार को अपना किरदार पता होना जरुरी है अन्यथा जीवन व्यर्थ ही कहलाता है! जब इस धरती पे आते है तब हम अनेक तरह के रिश्तो में बांध दिए जाते है और जिसने जन्म दिया है उसके ऋणी बन जाते है इन ऋणों को चुकाना अत्यंत आवश्यक है
बिना इस ऋण को चुकाए यदि हम सत्कर्म भी करने की सोचे तो भी फलित नहीं होता है इसीलिए पहले इनसे निपटिये और भाव भक्ति में लग जयिय ए क्योकि उस ऊपर वाले ने आप को मनुष्य अवतार दिया है ताकि आप उसे याद कर सको और दुसरो को भी उसकी महत्ता समझा सको और अपने साथ साथ और लोगो के जीवन को सार्थक बना सको
इस धरती पर जन्मे हर सजीव की कोई न कोई उपयोगिता है ही फिर वह पेड पौधे हो पहाड़ जंगल या मनुष्य हो इन सब का कुछ न कुछ काम अवश्य है सभी एक दूसरे पे जाने अनजाने निर्भर करते ही है इस प्राणी श्रृंखला में अगर देखा जाये तो सबसे मूरख और सबसे समझदार भी स्वयं मनुष्य है परन्तु उसके नासमझी के कारन वह किसी काम का नहीं होता है जब की पशु पेड पौधे हर रूप से काम आते ही है जब तक मनुष्य अपने आप को नहीं जानेगा नहीं पहचानेगा तब तक उसके जीवन का कोई मोल नहीं है और वह नाकारा की गिनती में ही है परन्तु वही नर यदि अपने कर्मो को भलीभांति करे प्रभु में लीन रहे समाज की बुराइयो को दूर करे इंसानी दुष्ट प्रकृति को सुधार दे या उसके तरफ अग्रसर रहे तो वही नर नारायण भी बन सकता है जिसके बहुत से उदहारण हमारे संत महात्मा है जिन्हे इंसानियत के आलावा और कोई जात धर्म का परवाह नहीं था उन्होंने सभी को एक सरीखा ही गिना कबीर का लिखा हुआ दोहा
"कबीरा खड़ा बाजार में मांगे सब की खैर
ना किसी से दोस्ती ना किसी से बैर"
उपरोक्त पंक्ति लिखे हुए शब्दों की सत्यता दर्शाती है ना सिर्फ कबीर बल्कि दूसरे सभी संत फ़क़ीर जलाराम बापा, बजरंग दास, तुकाराम, मोरारी बापू, कानदास, सेवादास, परब वाला और न जाने कितने ही ये सभी इस सत्य को जानते थे और इसीलिए उन्होंने अपने साथ साथ सभी का उद्धार किया
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