८४ चोर्यासी का फेरा
जी हाँ ये वर्ड जितना सुनने में डरावना लगता है;, उतना भयानक तो इसकी सच्चाई लोगो ने भी हमें बता के राखी है आज शायद मैं उस स्टेज पे नहीं हूँ जब इसको पूरी तरह डिटेलिंग कर पाऊ या सही गलत ठहरा सकु मगर इसकी और तहे (परते/खाल/निचोड़) अगर मेरे आगे आई तो में आप लोगो के साथ अवश्य शेयर करूँगा फ़िलहाल जो में इसके बारे में लिखने जा रहा हूँ उसके बारे में गीता, महाभारत, रामायण, शिवपुराण हर जगह लिखा हुआ है मगर थोड़ा घुमा फ़िर के और हमारे कुछ संतो को छोड़ के ज्यादातर संत हमें इन बातो से डरते ही रहते है, इन लोगो से थोड़ा आगे बढ़ कर मैंने एक कोशिश की है की चलो शायद आप का थोड़ा सा डर दूर कर दू!
सबसे पहले तो आप को बता दू की मैं यहाँ पे किसी को प्रूफ करने नहीं बैठा हूँ मैं आपको डायरेक्ट अपने अनुभूति (अनुभव) के बारे में बता रहा हूँ, जिसमे उस भगवान/परम तत्व/परमात्मा से मिला हूँ! (चाहे आप माने या ना माने) और यकीन मानिए ये वह जगह, वह लेवल है जब ना वह आप से बात करता है ना ही आप उसके साथ में बात कर सकते है! सिर्फ आप देखते है! और चीज़े होती जाती है! सबसे बड़ी बात!! जैसी आप की जिज्ञासा वैसा वह पे नज़ारा होगा और आप के विचार आप की वाणी आप के शब्द वह आप को दिखाई देंगे!!!!!! होते हुए!! करते हुए! जैसे उदाहरण के तौर पे आप किसी को कुछ बताना चाहते हो की उसकी गाड़ी का स्टैंड नीचे ही है वह उसे उठाना चाहिए तो ये बात आप उसको इन्फॉर्म करो या बताओ उसके लिए प्रयोग होने वाले शब्द आप के जिव्हा पे आने के पहले ही आप के अंदर निर्मित हो गए होते है मगर क्या आप ने सोचा ये निर्मित क्यों हुए क्यो कि उस चीज़ को आपने देखा है और उन शब्दों का जन्म हुआ जिसे आप की अंतर आत्मा ने देखा मगर आप की ऊंचाई आप की क्षमता उतनी गहरी या पहुंची हुयी नहीं है की आप बिना वाणी के प्रयोग किये उस काम को कर दे इसको दूसरे भाग में समझेंगे!!!
तो ये की आप उक्त (उस) व्यक्ति को बिना बताये और सिर्फ देखने भर से उसके स्टैंड को सही दिशा में ले जाये या इसी तरह के कोई काम जो आप के देखने भर मात्र से हो जाये! ठीक उसी तरह जब वह भगवान मुझे मिला तब उनसे मिलने के बाद में मेरा सवाल तो कुछ निकला ही नहीं मगर मैंने जो देखा समझा उसको यहाँ पे शब्दों में निकलने की कोशिश कर रहा हूँ
उसने मुझे दिखाया की ८४ की योनि एक शब्द या यूँ कहे की संज्ञा (विशेषण) मात्र है सिर्फ योनि जो सब से पहले आप को दी गयी है वह स्थावर के रूप यानि की झाड़ पहाड़ इन रूप में और ये रूप किसी न किसी कारन नष्ट हुए फिर आप जिस तरह से उस अवस्था में लोगो के काम आ पाए जितनो के आप ने पेट भरे या जो भी आप से लोग (जीव दूसरे ना की मानव जात ही क्योकि वैसे भी शुरुआत में मानव नहीं थे) फायदा उठा पाये उन कर्मो के हिसाब से आप को आगे योनि मिली स्थावर के बाद आप को रेंगने वाले और दूसरे टाइप के भी (पिंड) प्राणियों में शामिल किया गया उसके बाद आपको जलचर प्राणियों में (पानी के) शामिल किया गया और फिर ज़मीन पर चलने वाले प्राणियों में आप आये जब तक में कुछ और आप के ही जैसे लोग भी अपनी अपनी योनि तक़रीबन पूर्ण करने आ गए थे! बास कुछ आगे पीछे थे लोग और कुछ नहीं! और ये लोग धीरे धीरे कर के विकसित होते हुए मानव बने अब्ब ये मानव बने तो इन्होने इच्छाएं (चाहत) रखनी शुरू की जो की मानव का स्वाभाविक गुण है! और ये स्वाभाव ही इन्हे विकसित करता गया और अपने आप को हम आज इस रूप में इस जगह पे और दुनिया के इस लेवल पे देख रहे है पर क्या ये लेवल पा कर हमने सब कुछ पा लिया नहीं we still want more & more बार बार इसी अधूरी इच्छा को पूरा करने के लिए जन्मा लेते रहते है और ये जन्मा का लेना देना किसी दूसरे ८४ के फेरे से जुदा हुआ है ही नहीं आप ने जो भी अपनी लाइफ में कांटा है जितने भी योनियों को लिया है जिया है उन्होंने आपको सिर्फ और सिर्फ पुण्य दिया है और कुछ नहीं और उन्ही पूण्य के बल पे आप को ये मानव शरीर मिला जिसे की आप को आप की इच्छाएं पूरी करने के लिए दिया गया है!
सबसे पहले तो आप को बता दू की मैं यहाँ पे किसी को प्रूफ करने नहीं बैठा हूँ मैं आपको डायरेक्ट अपने अनुभूति (अनुभव) के बारे में बता रहा हूँ, जिसमे उस भगवान/परम तत्व/परमात्मा से मिला हूँ! (चाहे आप माने या ना माने) और यकीन मानिए ये वह जगह, वह लेवल है जब ना वह आप से बात करता है ना ही आप उसके साथ में बात कर सकते है! सिर्फ आप देखते है! और चीज़े होती जाती है! सबसे बड़ी बात!! जैसी आप की जिज्ञासा वैसा वह पे नज़ारा होगा और आप के विचार आप की वाणी आप के शब्द वह आप को दिखाई देंगे!!!!!! होते हुए!! करते हुए! जैसे उदाहरण के तौर पे आप किसी को कुछ बताना चाहते हो की उसकी गाड़ी का स्टैंड नीचे ही है वह उसे उठाना चाहिए तो ये बात आप उसको इन्फॉर्म करो या बताओ उसके लिए प्रयोग होने वाले शब्द आप के जिव्हा पे आने के पहले ही आप के अंदर निर्मित हो गए होते है मगर क्या आप ने सोचा ये निर्मित क्यों हुए क्यो कि उस चीज़ को आपने देखा है और उन शब्दों का जन्म हुआ जिसे आप की अंतर आत्मा ने देखा मगर आप की ऊंचाई आप की क्षमता उतनी गहरी या पहुंची हुयी नहीं है की आप बिना वाणी के प्रयोग किये उस काम को कर दे इसको दूसरे भाग में समझेंगे!!!
तो ये की आप उक्त (उस) व्यक्ति को बिना बताये और सिर्फ देखने भर से उसके स्टैंड को सही दिशा में ले जाये या इसी तरह के कोई काम जो आप के देखने भर मात्र से हो जाये! ठीक उसी तरह जब वह भगवान मुझे मिला तब उनसे मिलने के बाद में मेरा सवाल तो कुछ निकला ही नहीं मगर मैंने जो देखा समझा उसको यहाँ पे शब्दों में निकलने की कोशिश कर रहा हूँ
उसने मुझे दिखाया की ८४ की योनि एक शब्द या यूँ कहे की संज्ञा (विशेषण) मात्र है सिर्फ योनि जो सब से पहले आप को दी गयी है वह स्थावर के रूप यानि की झाड़ पहाड़ इन रूप में और ये रूप किसी न किसी कारन नष्ट हुए फिर आप जिस तरह से उस अवस्था में लोगो के काम आ पाए जितनो के आप ने पेट भरे या जो भी आप से लोग (जीव दूसरे ना की मानव जात ही क्योकि वैसे भी शुरुआत में मानव नहीं थे) फायदा उठा पाये उन कर्मो के हिसाब से आप को आगे योनि मिली स्थावर के बाद आप को रेंगने वाले और दूसरे टाइप के भी (पिंड) प्राणियों में शामिल किया गया उसके बाद आपको जलचर प्राणियों में (पानी के) शामिल किया गया और फिर ज़मीन पर चलने वाले प्राणियों में आप आये जब तक में कुछ और आप के ही जैसे लोग भी अपनी अपनी योनि तक़रीबन पूर्ण करने आ गए थे! बास कुछ आगे पीछे थे लोग और कुछ नहीं! और ये लोग धीरे धीरे कर के विकसित होते हुए मानव बने अब्ब ये मानव बने तो इन्होने इच्छाएं (चाहत) रखनी शुरू की जो की मानव का स्वाभाविक गुण है! और ये स्वाभाव ही इन्हे विकसित करता गया और अपने आप को हम आज इस रूप में इस जगह पे और दुनिया के इस लेवल पे देख रहे है पर क्या ये लेवल पा कर हमने सब कुछ पा लिया नहीं we still want more & more बार बार इसी अधूरी इच्छा को पूरा करने के लिए जन्मा लेते रहते है और ये जन्मा का लेना देना किसी दूसरे ८४ के फेरे से जुदा हुआ है ही नहीं आप ने जो भी अपनी लाइफ में कांटा है जितने भी योनियों को लिया है जिया है उन्होंने आपको सिर्फ और सिर्फ पुण्य दिया है और कुछ नहीं और उन्ही पूण्य के बल पे आप को ये मानव शरीर मिला जिसे की आप को आप की इच्छाएं पूरी करने के लिए दिया गया है!
इच्छाएं किसी चीज़ को पाने की नहीं करनी चाहिए! और अगर आध्यात्मिक ज्ञान गुरु मिले बिना', हम इस संसार के मोह माया में फंसे है! तो हम सभी जानते है.. की हमे इच्छा होती ही रहेगी' और ये बढ़ती रहेगी और हम कभी भी मुक्ति नहीं पाएंगे और पाए भी क्यों अगर आप लोगो को खुल के हक़ीक़त से रूबरू करा दिया जाये बिना गुरु के की आप को की अगर आप ने प्रभु भक्ति नहीं करने का स्टार्ट किया., आप ने अपनी इच्छाएं खत्म नहीं की तो दोबारा इसी मनुष्य योनि में आप को आना पड़ेगा तो आप क्या ये सब करोगे??? नहीं '"NO नेवर'" जी हाँ आप नहीं करोगे क्योंकि मोह - माया की इस दुनिया में आदमी सब कुछ चाहता है पर मरना तो बिलकुल नहीं और यहीं कारन है की उसे संत सिद्ध पुरुष भी डरा के ही रखते है क्योकि जब तक आप गुरु शरण में नहीं जाओगे असली आनंद को नहीं पहचानोगे! तब तक तो आप इस जानकारी के काबिल ही नहीं हो! क्योकि जब आप को उद्देश्य पता चल जायेगा लाइफ का तो आप खुद - बा - खुद इसे खत्म कर लेंगे और उस परम तत्त्व में लीं होने के लिए बाधित हो जायेंगे (अपने आप को खत्म करना;, अर्थात अपनी इच्छाओं को मारना)!
इश्वर अनेक मौके देता है हमें अपनी गलतियों को सुधरने का आप को क्या लगता है की आप को पता चल भी गया की हम अगर भक्ति नहीं करेंगे तो हमें दोबारा इसी योनि में जन्म लेना है, मनुष्य देह ही मिलने वाला है और हम जितने बी ही इच्छाएं बढ़ाएंगे हमें उतना ही लेट(देरी से) छूटकारा मिलेगा इस योनि से तो चलो यूँ ही करते है अपनी इच्छाओं को बढ़ाते है फिर भले ही वह सही हो या नहीं हो!
हैं ना! यही सोचा हैं न!! यही आप सोचेंगे इन-फैक्ट आप क्या! आप जैसे कई बुद्धिजीव यही सोचेंगे, मगर आप के जानकारी के लिए बता दू की आप गलत सोच रहे है भाई! बिलकुल भी गलत क्योकि. हम्म्म.
इसे ऐसे समझते है की, समझो आज आप ने किसी धनी परिवार में जन्म लिया है और भोग-विलास सुख में ही खो के रह गए उस मार्ग में नहीं बढे तो दूसरी बार जब आपको पुनः जीवन मिलेगा तो थोड़ा डाउन मिलेगा की आप को कुछ मेहनत करनी पड़े थोड़ा स्ट्रगल करना पड़ेगा, समझो की इस बार भी आप ने ठीक वैसी ही ग़लतियाँ दोहराई तो आप को जब दोबारा भेज जायेगा तो आप का लेवल थोड़ा और गिर दिया जायेगा और इस तरह से आप को नीचे-नीचे गिरते-गिरते आप इतने गिर जाओगे की आप अपने आप से नफरत करने लगोगे! और इस समय आप खुद-बा-खुद उसकी शरण लोगे, मगर आप इतनी बुरी तरह पाप के भागीदार बन चुके हो, इच्छाओं को बढ़ा चुके हो की अब उन इच्छाओं की समाप्ति करने में और अपने पाप पुण्य के घड़े को खत्म कर के ० (जीरो) करने में आप को काफी दिक्कत होने लगेगी और ये चक्कर बहुत भरी पड़ेगा यकीन मानिये!!!
आज शायद आप मेरी बात को सीरियस ना ले या समझ नहीं पाये! या हो सकता है की समझ के भी न समझे! मगर यकीन कीजिए ज़मीन पे आके जिसने खेल रचाया वह राम भगवान तो बाद में बन पहले एक इंसान बन उसने कर्मो को इस तरह से किया की वह भगवान हो गया फिर वह कृष्णा हो, जलाराम हो, बाप सीता राम हो, जीसस हो या कबीर या बुद्धा महावीर कोई भी कोई भी हो पर वह पहले एक इंसान था ठीक उसी तरह से ध्यान दीजिए की आप भी एक इंसान है और अगर आप ८४ को मात देने के लिए अपने आप को दृढ कर लेते है तो आप भगवान हो सकते है और मैं आज अपनी निगाह में आप लोगो को उस देवता के रूप में देख रहा हूँ….
इसे ऐसे समझते है की, समझो आज आप ने किसी धनी परिवार में जन्म लिया है और भोग-विलास सुख में ही खो के रह गए उस मार्ग में नहीं बढे तो दूसरी बार जब आपको पुनः जीवन मिलेगा तो थोड़ा डाउन मिलेगा की आप को कुछ मेहनत करनी पड़े थोड़ा स्ट्रगल करना पड़ेगा, समझो की इस बार भी आप ने ठीक वैसी ही ग़लतियाँ दोहराई तो आप को जब दोबारा भेज जायेगा तो आप का लेवल थोड़ा और गिर दिया जायेगा और इस तरह से आप को नीचे-नीचे गिरते-गिरते आप इतने गिर जाओगे की आप अपने आप से नफरत करने लगोगे! और इस समय आप खुद-बा-खुद उसकी शरण लोगे, मगर आप इतनी बुरी तरह पाप के भागीदार बन चुके हो, इच्छाओं को बढ़ा चुके हो की अब उन इच्छाओं की समाप्ति करने में और अपने पाप पुण्य के घड़े को खत्म कर के ० (जीरो) करने में आप को काफी दिक्कत होने लगेगी और ये चक्कर बहुत भरी पड़ेगा यकीन मानिये!!!
आज शायद आप मेरी बात को सीरियस ना ले या समझ नहीं पाये! या हो सकता है की समझ के भी न समझे! मगर यकीन कीजिए ज़मीन पे आके जिसने खेल रचाया वह राम भगवान तो बाद में बन पहले एक इंसान बन उसने कर्मो को इस तरह से किया की वह भगवान हो गया फिर वह कृष्णा हो, जलाराम हो, बाप सीता राम हो, जीसस हो या कबीर या बुद्धा महावीर कोई भी कोई भी हो पर वह पहले एक इंसान था ठीक उसी तरह से ध्यान दीजिए की आप भी एक इंसान है और अगर आप ८४ को मात देने के लिए अपने आप को दृढ कर लेते है तो आप भगवान हो सकते है और मैं आज अपनी निगाह में आप लोगो को उस देवता के रूप में देख रहा हूँ….
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