संग न करो राजा का क्या पता कब रूलादे संग करो तो संतो का क्या पता कब हरि से मिलादे
जब तक विकार है, विश्राम संभव ही नहीं। अविकार की भूमिका विश्राम का स्वरूप या कहें कि विश्राम की पहचान है। प्रेम ही इस भवसागर से पार उतारने वाला एकमात्र उपाय है। प्रेमी बैरागी होता है, जिससे आप प्रेम करते हैं, उस पर न्यौछावर हो जाते हैं। त्याग और वैराग्य सिखाना नहीं पड़ता। प्रेम की उपलब्धि ही वैराग्य है। जिन लोगों ने प्रेम किया है, उन्हें वैराग्य लाना नहीं पड़ा।
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