"नाम" नागेश जय गुरुदेव (दीपक बापू)

सोमवार, 28 मार्च 2016

"यत्र तत्र सर्वत्र"

"यत्र तत्र सर्वत्र हर तत्वों में घट घट में हर लोक में मैं समाया हूँ ये सही भी मैं हूँ गलत भी मैं हूँ सुर भी मैं हूँ सुरता भी मैं हूँ मैं राग हूँ मैं बैराग हूँ मैं साधू मैं शैतान हूँ सब कुछ  में मैं हूँ उस शुन्य में भी मैं हूँ"

ये कथन सिर्फ मैं नहीं कह रहा हूँ स्वयं प्रभू श्री कृष्णा ने कहा है की वह हर जगह है हर व्यक्ति में है और ज्यादातर लोग इस बात को जानते है  स्वीकारते भी है और अपने अपने हिसाब से उसे  प्रयोग में लाते है अब मैं भी अपने हिसाब से अपनी सोच से लोगो से जानकारी हासिल कर कर के जिस नतीजे पे पंहुचा हूँ उसका एक निचोड़ यहाँ आप के समक्ष रखने का प्रयास कर रहा हूँ !

जैसे की मैंने पहले ही कहा की हर व्यक्ति अपने हिसाब से इस जानकारी को  उपयोग करता है और कई बातो में तर्क गलत तरीके से या सही तरीके से देता ही है !
          
                   संत महात्मा गुरु सभी घुमा फिरा के इसी बात के आगे पीछे घूमते है "कि वह तुम्हारे अंदर है वह तुम्हारा साथ कभी नहीं छोड़ता तुम उसमे से ही आये हो उसने तुम्हारी रचना की है तुम्हारी जीवन की बागडोर उसके ही हाथो में है"  अरे भाई ये बात तो हमे मालूम है सिर्फ कुछ उदहारण और  कहानियो के  तर्ज पे आप हमपे क्या थोप रहे है क्या आप  शिष्यों की गिनती बढ़ा रहे है क्या आप अपने कर्मो में पुण्य की गिनती बढ़ा रहे है की वह जब  लेखा जोखा लेके बैठे तो आप  अपने पास अपने शिष्यों का भी उदहारण दे के उसे बेवक़ूफ़ बनाने के लिए रखे, ‘की ये तो भटका था इसे आपकी जानकारी मैंने दी है और अब इसको मैंने ज्ञान दिया है की आप हर जगह हो और इसमें भी आप बस्ते हो करके यह गलत काम न करे वर्ना इसको कष्ट भोगना पड़ेगा’  और ऊपर वाला इसको आप की समझदारी मानते हुए इस बात से खुश हो जायेगा और आप को जीवन मरण/ ८४ लाख योनि के जंजाल से मुक्ति दे देगा

क्या मेरा  ये सोचना गलत है अगर गलत है तो मुझे बताईये और अगर सही लगता है तो इसे आगे पढ़िए

हर किसी में यदि हरी है  तो वह मिलेगा ही मुझे पक्का नाम तो नहीं पता पर शायद मीरा बाई के ये वचन थे  "मेरी भक्ति की कोई सीमा न हो तुझे पाने की चाहत इतनी रहे की मजबूर कर दू तुझे आने के लिए आना तो तुझे पड़ेगा ही मिलना तो हमारा पक्का है बस देखना यही है की मैं तुझसे मिलने आऊ या तू मुझ से मिलने आएगा"
इन शब्दों के अर्थ को अगर हम जाने तो यही है की हमे उसे भूलना नहीं है हर पल हर वक़्त याद रखना है और अपने आप को उसके लिए पूरी तरह से समर्पित कर देना है फिर भले ही उसके इन्तेजार में उसे पाने की चाह में पूरी ज़िन्दगी निकल जाये तो भी परवाह नहीं


"दिया है तूने तुझे ही लौटाना है माटी की काया को तो माटी में  ही मिल जाना है"(न.)


उसको ढूँढना मुश्किल है नामुमकिन नहीं है और ये विश्वास सब से पहले हमे अपने मन में बनाना है और मुश्किल तो आना ही है क्योकि हम जिसे ढूंढ रहे है उसे जान ले की वह कोई आम आदमी या कोई आम जगह वस्तु या कोई ग्रह नहीं अपितु स्वयं ब्रह्माण्ड का रचयिता सर्वोप्परी सर्वैश्वर दीनदयाल परमात्मा है तो कुछ तो बात होगी उसमे!

“कर्मणयेवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।”

अर्थात कर्म करने का अधिकार आप के पास है और वह आप को करना है उसके कर्म का फल कब कैसे देना है या मिलना है इसकी  व्यर्थ आपको विचारने की जरुरत नहीं है
आप अपने कर्म को करते चलो और आनेवाले परिणाम के लिए अपने को दोषी निर्दोषी कुछ भी मत समझो ये सब लेखा उसके हाथो में छोड़ दो वह अपना काम भली भांति जनता है कम शब्दों में कहा जाये तो " कर्म करते चलो फल की चिंता छोड़ दो "  प्रभु में ध्यान लगाने का मतलब ये नहीं होता है की आप अपने कर्तव्यों से मुख मोड़कर उसके नाम का गुणगान गाते रहे इससे वह रीझेगा नहीं खिजेगा जब आप जन्म लेते है तब आप अपने आस पास के रिश्तो में बांध जाते है जो गिनती में तक़रीबन ७० रिश्ते है या यु कहे की ७० अलग अलग तरह के कर्जे है जिनकी भरपाई आप को करनी ही है वर्ना जिसे आप ढूंढने की सोच रहे है उसे ढूंढना तो दूर उसके मिलने का रास्ता तक आप को नहीं दिखेगा

अब आप का अगला सवाल होगा की जब ७०(APPROX.) तरह के अलग अलग कर्जे है तो हम कैसे पता करे की ये खत्म हुए या नहीं तो इसके लिए  मेरे खुद का किया हुआ एक साधारण सा प्रयोग बताता हूँ जिसे मुझे एक महातम ने बताया था अपने कानो को दो हाथो से भली तरह से बंद करो और मस्तिष्क में होने वाली कम्पन्न पर ध्यान केंद्रित करो देखो क्या आवाज़ है कौन सी आवाज़ है यकीन मानिये   ये आवाज़ आप को आये न आये पर जिसका कर्ज  बाकि है वह जरूर दिखेगा या उसका आभास होगा बस तो देर किस बात की है उसे निपटारा पाओ और जब तक आप का ध्यान सही न लगे उस अनहद नाद की आवाज़ न सुनाई दे ध्यान लगते रहो यकीन करो मेरा क्योकि तुम्हारा विश्वास ही तुम्हारे मन को यथार्थ के दर्शन करा सकता है

हर कार्य को करने के पहले अपने मन को सुनिश्चित कर ले अपने आप को उस चीज़ के लिए पूरी तरह  से तैयार कर ले क्यों की यदि आप का मन उस के लिए तैयार नहीं है तो आप कुछ नहीं कर पाएंगे

दिमाग अलग अलग तरह के सवाल को खड़ा करता रहता है की अगर भगवान के मिलने के पहले अगर हमको सब तरह से मुक्त होना है जैसे की कर्ज मुक्त पाप मुक्त तो आखिर कब कैसे होगा ये सब हमे काम धंधा करना ही पड़ेगा अगर घर वालो को खिलाना है पालन-पोषण करना है उनका तो यानी हम अगर काम धंधा करेंगे तो हमे झूठ बोलना ही पड़ेगा और अगर हम झूठ बोलेंगे तो कर्म बढ़ेंगे फिर आखिर कब हम  उसके दर्शन कर पाएंगे ???
इस सवाल का जवाब है जी हाँ इसका जवाब ये है हमें अपने बच्चो का भला करने में कितना टाइम जायेगा ४० साल ५० साल ६० साल जो भी लगे उसके बाद जो बचेगा उस टाइम को प्रभु चरण में लगाइये !!
अब आप का सवाल होगा की तब तक में अगर हमें कुछ होगया तो क्या फिर हमें उसी ८४ के जाल में फसना पड़ेगा तो इसका जवाब है नहीं आप को ये याद रखना है की ऊपर वाला दयालु है वह फिर से आप को इसी योनि में डालेगा और इस बार आप के पास समय भी सिमित होगा और आप जल्द से जल्द उसे पा लेंगे और अपने

कर्मो से मुक्त होंगे तो इस बात को क्लियर कर ले की उसके मार्ग पर एक चलना शुरू कर दिया तो सब कुछ आसान होता जायेगा बस अपना विश्वास बनाये रखे !!

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