"नाम" नागेश जय गुरुदेव (दीपक बापू)

मंगलवार, 29 मार्च 2016

सब तीरथ कर आई तुंबडीया Sab Tirath Kar Aayi Tumbadiya Artha Sahit

दास सतार ऐमनी वाणीमा सर्व श्रेष्ठ बोध आपी गया छे मनुष्य ने तुंबडीया ना नाम थी सबोंधी ने मनुष्य केसे के तु आखा जगत ना मंदिर ने आश्रमो फिदी आयो पण ऐमा तने सु मल्यु ? ने गंगा मा नाहियो ने गोमती मा तु नाहयो पण ऐनेथी सु ? अंतर आत्म् थी तो तु जागयो नहीं तो तुंबडा नाम ना कडवास धरावता ऐक धर्म ना काम मा लेवाता फळ जे माथी ऐकतारो पण बने छे ने साधु नु कंमडळ पण बने छे 

दास सतार साहेब नी वाणी माज जोइऐ ।

सब तीरथ कर आई तुंबडीया (2)
गंगा नाई गोमती नाई
अडसठ तीरथ धाई
नित नित उठ मंदिर मे आई
तो भी ना गई कडवाई
सतगुरु संत के नज़र चडी तब
अपने पास मंगाई
काट कुट कर साफ़ बनाई
अंदर राख मीलाई
राख मिलाकर पाक बनाई
तबतो गई कडवाई
अमरुत जल भर लाई तुंबडीया
संतन के मन भाई
ये बाता सब सत्य सुनाई
झूठ नहीँ रे मेरे भाई
"दास सतार" तुंबडीया फ़िर तो
करती फ़िरे ठकुराई ।

भजन अर्थ नी साथे
सब तीर्थ कर आइ तुंबडीया । सर्व जगया ऐ जातरा करीआया तोय जया हता ईया ज रीया मनुष्य । 

॥ गंगा नाई गोमती नाई 
अडसठ तीरथ धाई 
नित नित उठ मंदिर मैं आईं तो भी ना गई कडवाई ॥ 

गंगा मा नाया ने गोमती मा नाया नाया घणी नदियों ना नीरथी , शरीर तो धोया पण मनने न धोया । नितय रोज उठीने नित्य कर्म प्रमाणे मंदिरो तो घणा फरया ने जगत ना घणा मंदिर ने पगे लागिया , तोय मनना मेल न गया ने मनमा तो घर संसार नी चिंता ने घड़ी भर न विशरिया ।घड़ीभर मनने काबू मा न राखी शकया ।
॥ सतगुरु संत के नजर चडी तब अपने पास मंगाई 
काट कुट कर साफ बनाई 
अंदर राख मिलाई ॥
==> अडसठ धाम ने नदियों ना नीर नाही ने थाकया त्यारे संदगुरु ना सरणे गया त्यारे गुरु सत्य नु ज्ञान कराई ने मनने सुध करिया मनना मेल ना साफ करिआ ने जिव नी शिव साथे ऐकाकार कराया ।
॥ राख मिलाकर पाक बनाई , तब तो गई कडवाई , अमरुत जल भर लाई तुबडीया , संतन को मन भाई तुबडीया ॥
==> राख मिलाइ ने साफ करी मनना मेल ने भ्रम ने नष्ट करी ने गुरुजी ऐ संसार नी माया माथी मुकत करी कडवास ने धोई मिठास भरी । अमरुत जल --> सत्य अने ज्ञान थी त्यारे पात्र भराणु ज्ञान ना प्रकाश थया पसी साधु संत मा मान ने सनमान थी ओरखाणा ।

॥ ये बाता सब सत्य सुनाई 
झूठ नहीं मेरे भाई 
" दास सतार " तुबडीया फिर तो करती फिरे ठकुराई ॥

==> आ भजन ना लेखक " दास सतार " कहे छे के आ सनातन सत्य छे मारा भकतो आमा संका नु कियाय स्थान नथी मारा भाई दास सतार साहेब कहे छे पसी तो तुबडीया ( आपणे ) अलख पुरुष दुनियानु भलु करवा मा लागे छे ने हरी भजन मा चारे पहोर मसगुल रहे छे 
ईश्वर ने आत्मा नो तार ऐक थय जाय छे

🌹गुरुकृपा हि केवलम्🌹

संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत
चन्दन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत।

अर्थ :
 सज्जन को चाहे करोड़ों दुष्ट पुरुष मिलें फिर भी वह अपने भले स्वभाव को नहीं छोड़ता. चन्दन के पेड़ से सांप लिपटे रहते हैं, पर वह अपनी शीतलता नहीं छोड़ता.

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