"नाम" नागेश जय गुरुदेव (दीपक बापू)

सोमवार, 4 अप्रैल 2016

गुरु गोरखनाथ जी की ज्ञान गोदड़ी ।

गुरु गोरखनाथ जी की ज्ञान गोदड़ी ।

गुरु गोरखनाथ जी की ज्ञान गोदड़ी ।
ॐ गुरु जी सत नमो आदेश । गुरु जी को आदेश । नव नाथ चौरासी सिद्धों को आदेश ।
नाथ कहें दोनो कर जोड़ी , यह संशय मेटों प्रभू मोरी । काया गोदडी का बिस्तारा तासे हों जीवन निस्तारा । आदि पुरुष इच्छा उपजाई , इच्छा सखत निरंजन मांहि । इच्छा ब्रह्मा , विष्णु , महेशा , इच्छा शारद गौरी गनेशा । इच्छा से उपजा संसारा , पाँच तत्त्व गुण तीन पसारा । अलष पुरुष जब किया बिचारा , लक्ष चौरासी धागा डाला । पाँच तत्त्व की गुदड़ी बीनी , तीन गुणों से थाडी कीनी । तामे जीव , ब्रह्म है माया , सत गुरु ऐसा खेल बनाया । सीवन पाँच पच्चिसो लागे , काम , क्रोध , मद , मोह त्यागे । अब काया गोदड़ी का बिसतारा , देखो सन्तों अगम्य अपारा । चंद्र , सूर्य दो चंदोआ लागे , गुरु प्रताप से सोबत जागे । शब्द शुई सुरिति का डोरा , ज्ञान का टोपा निरंजन ओढ़ा । इस गोदड़ी की करि होशियारी दाग ना लागे देख बिचारी । सुमति के साबुन सत गुरु धोई , कुमति के मैल को दारे खोई । जिन गोदड़ी का किया बिचारा , उन को भेंट सिरजन हारा । धीरज धूनी ध्यान धर आसन , जतकि कोफिन सत्य सिंहासन । उक्ति कमंडल कर गहे लीना , प्रेम फावड़े सत गुरु चीना । सेली शील विवेक की माला , दया की टोपी तन धर्म साला । मेहर मतंगा मत वैशाखी , मृगछाला मन ही की राखी । निष्ठा धोती पवन जनेऊ , अजपा जपें सो जाने भेउ । रहे निरंतर सत गुरु दाया साधो की संगत से कुछ पाया । लय की लकुति हृदय की झोली क्षमा खड़ाऊ पहिरि बहोरी । मुक्ति मेखला सुकृत सुमरनि , प्रेम प्याला पीले मौनी । दास कूबरी कलह निबारी , ममता कुत्ती को ललकारी । यतन जंजीर बाँध जो राखे अगम्य अगोचर खिड़की लाखे ! । बीतराग वैराग्य निधाना तत्त्व तिलक दिनो निरबाना । गूर ग़म चकमक मन सम तुला ब्रह्म अग्नि प्रगट भई मूला । संशय शोक सकल भ्रम जारे , पाँच पच्चिसो प्रगटे मारे । दिल के दर्पण दुविधा धोई सो योगेश्वर पक्का होई । सुन्न महल की फेरी देई अमृत रस की भिक्षा लेई । सुख दुःख मेला जग का भावे त्रिवेणी के घात नहाबे । तन मन खोज भया जब ज्ञाना तब लख पद पावे निर्बाना । अष्ट कमल दल चक्र सूझे योगी आप आप में बूझे । ईडा पिंगला के घर जाई सुशम्न नीर रहा ठठराई । ॐ सोहं तत्त्व बिचारा बाँक नाल में किया सम्भारा । मनसा मार्ग गगन चढ़ जाई , मानसरोवर बैठ नहाई । छुट गई कलमश मिले अलेखा इन नैनो से अलख को देखा । अहंकार अभिमान बिदारा घट में चौका किया उजियारा । श्रिद्धा चँवर प्रीति की धुपा निष्ठा नाम गुरु का रूपा । अनहद नाद नाम की पूजा ब्रह्म वैराग्य देव नहीँ दूजा ।
चित का चंदन तुलसीफूला हित का सम्पुट करले मुला ।
गुदड़ी पहनी आप अलेखा जिसने चलाया प्रगट भेषा

Saint Nagesh Sharma  સંત નાગેશ    संत नागेश 

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