गुरु गोरखनाथ जी की ज्ञान गोदड़ी ।
गुरु गोरखनाथ जी की ज्ञान गोदड़ी ।
ॐ गुरु जी सत नमो आदेश । गुरु जी को आदेश । नव नाथ चौरासी सिद्धों को आदेश ।
नाथ कहें दोनो कर जोड़ी , यह संशय मेटों प्रभू मोरी ।
काया गोदडी का बिस्तारा तासे हों जीवन निस्तारा ।
आदि पुरुष इच्छा उपजाई , इच्छा सखत निरंजन मांहि ।
इच्छा ब्रह्मा , विष्णु , महेशा , इच्छा शारद गौरी गनेशा ।
इच्छा से उपजा संसारा , पाँच तत्त्व गुण तीन पसारा ।
अलष पुरुष जब किया बिचारा , लक्ष चौरासी धागा डाला ।
पाँच तत्त्व की गुदड़ी बीनी , तीन गुणों से थाडी कीनी ।
तामे जीव , ब्रह्म है माया , सत गुरु ऐसा खेल बनाया ।
सीवन पाँच पच्चिसो लागे , काम , क्रोध , मद , मोह त्यागे ।
अब काया गोदड़ी का बिसतारा , देखो सन्तों अगम्य अपारा ।
चंद्र , सूर्य दो चंदोआ लागे , गुरु प्रताप से सोबत जागे ।
शब्द शुई सुरिति का डोरा , ज्ञान का टोपा निरंजन ओढ़ा ।
इस गोदड़ी की करि होशियारी दाग ना लागे देख बिचारी ।
सुमति के साबुन सत गुरु धोई , कुमति के मैल को दारे खोई ।
जिन गोदड़ी का किया बिचारा , उन को भेंट सिरजन हारा ।
धीरज धूनी ध्यान धर आसन , जतकि कोफिन सत्य सिंहासन ।
उक्ति कमंडल कर गहे लीना , प्रेम फावड़े सत गुरु चीना ।
सेली शील विवेक की माला , दया की टोपी तन धर्म साला ।
मेहर मतंगा मत वैशाखी , मृगछाला मन ही की राखी ।
निष्ठा धोती पवन जनेऊ , अजपा जपें सो जाने भेउ ।
रहे निरंतर सत गुरु दाया साधो की संगत से कुछ पाया ।
लय की लकुति हृदय की झोली क्षमा खड़ाऊ पहिरि बहोरी ।
मुक्ति मेखला सुकृत सुमरनि , प्रेम प्याला पीले मौनी ।
दास कूबरी कलह निबारी , ममता कुत्ती को ललकारी ।
यतन जंजीर बाँध जो राखे अगम्य अगोचर खिड़की लाखे ! ।
बीतराग वैराग्य निधाना तत्त्व तिलक दिनो निरबाना ।
गूर ग़म चकमक मन सम तुला ब्रह्म अग्नि प्रगट भई मूला ।
संशय शोक सकल भ्रम जारे , पाँच पच्चिसो प्रगटे मारे ।
दिल के दर्पण दुविधा धोई सो योगेश्वर पक्का होई ।
सुन्न महल की फेरी देई अमृत रस की भिक्षा लेई ।
सुख दुःख मेला जग का भावे त्रिवेणी के घात नहाबे ।
तन मन खोज भया जब ज्ञाना तब लख पद पावे निर्बाना ।
अष्ट कमल दल चक्र सूझे योगी आप आप में बूझे ।
ईडा पिंगला के घर जाई सुशम्न नीर रहा ठठराई ।
ॐ सोहं तत्त्व बिचारा बाँक नाल में किया सम्भारा ।
मनसा मार्ग गगन चढ़ जाई , मानसरोवर बैठ नहाई ।
छुट गई कलमश मिले अलेखा इन नैनो से अलख को देखा ।
अहंकार अभिमान बिदारा घट में चौका किया उजियारा ।
श्रिद्धा चँवर प्रीति की धुपा निष्ठा नाम गुरु का रूपा ।
अनहद नाद नाम की पूजा ब्रह्म वैराग्य देव नहीँ दूजा ।
चित का चंदन तुलसीफूला हित का सम्पुट करले मुला ।
गुदड़ी पहनी आप अलेखा जिसने चलाया प्रगट भेषा
Saint Nagesh Sharma સંત નાગેશ संत नागेश
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