"नाम" नागेश जय गुरुदेव (दीपक बापू)

सोमवार, 25 अप्रैल 2016

थोड़ी सी ज्ञान की बात भाग २

थोड़ी सी ज्ञान की बात भाग २



!!! मेरे विचार !!!

          मेरे विचार ये मेरे ही है किसी  और के नहीं और इसके साथ में किसी  सहमत होना उनकी प्रगति करेगी उनका भविष्य सुधारेगी!

          मेरा काम लोगो को सही वस्तु देना ही नहीं अपितु उनको सही परिवर्तन में लाना और उनको सही मार्ग देना भी है! बीते दिनांक २४/०४/२०१६ को एक सत्संग का आयोजन किया था जिसमे गुरु के पद की गरिमा गुरु का महत्व और गुरु का सही कर्तव्य इसके बारे में चर्चा होनी थी चर्चा अपने हिसाब से हुयी भी मगर बहुत खेद हुआ ये देख के कुछ लोग अपने गुरु के पद को सही सम्मान न देते हुए सिर्फ अपने परिवार का अपने बैंक बैलेंस का और अपने स्वयं के भविष्य को ही उज्वल करना चाहते है! मैंने देखा की जो उनके शरणागति lele उसके पास से पैसा निकालने की कला ही उन्हें सही तरीके से आती है कुछ ज़रुरी श्लोक उनके सार कुछ रोमांच भरी वाणी के सहारे वह लोग लोगो को धोखे में रखते है और अपना काम निकालते रहते है!

          मैंने गुरु के बारे में जो कुछ भी लिखना था या बोलना था वह मैंने पहले भी लिखा हुआ ही है परन्तु पूर्ण तो उसको मैं खुद नहीं बोल सकता हूँ! गुरु की mahima का बखान करना या उसको शब्दों में बयान कर देना इतना आसान है क्या! स्वामी विवेकानन्द जी के बारे में एक बात सुनी थी की जब वह इंग्लैंड के एक सेमिनार में गए थे तो एक (.) बिंदु के ऊपर उन्होंने बहुत ही लम्बा विचार व्यक्त कर दिया था! अब आप सोचिए की जिस देश में ऐसे विद्वान हुए है जिन्होंने ऐसी ऐसी बातें कर दी है उस देश में गुरु जैसे महान शख्सियत पे बोलना मतलब सूरज को दिया दिखने जैसी बात ही है! यदि मैं गलत बोल या लिख रहा हूँ तो कृपया मुझे बताईये!

           गुरु की महिमा या गुरु का सम्मान कभी काम नहीं हो सकता है गुरु की जरूरत कभी भी खत्म नहीं हो सकती है पर गुरु का काम है क्या! इस बात से भी हम अंजान नहीं है और जो अंजान है उनके लिए यहाँ लिंक दे रहा हूँ कृपया कर के एक बार देख लीजिएगा 


          इन सभी विषय पे पहले ही तक़रीबन मैं लिख चूका हूँ इससे अधिक लिख पाना भी स्वीकार करने योग्य है मैं यह नहीं कह सकता हूँ की जितना मैंने लिख दिया या बोल दिया वह पूरा है परन्तु मैं यह बोल सकता हूँ की जो कुछ मैंने यहाँ लिखा है वह भी है! उसको कोई गलत नहीं ठहरा सकता है! वैसे ये बोलने की बात है आज कल का समाज बहुत ही भ्रष्ट हो चूका है लोग अपनी कुर्सी बचाने के लिए अपने आप को कहा से कहा ले जाते है ये बोलने की बात है नहीं! मैं सिर्फ इतना जनता हूँ की गुरु का बालक होना गुरु पद पे बैठना कोई छोटी मोटी बात नहीं है इनकी गरिमा होती है इन पद का सम्मान है और इन्हे दूषित करने का हक़ इस दुनिया में किसी को नहीं है!  सिर्फ मुँह से बोल देना की मुझे गुरु के खिलाफ सुनना पसंद नहीं है गुरुद्रोह  पसंद नहीं है काफी नहीं होता है गुरु के प्रति तुम्हारा प्रेम तुम्हारा सम्मान दिखना ही चाहिए वर्ना आप की बातो को लोग यही समझेंगे की आपने सिर्फ और सिर्फ अच्छी बातो का अनुसरण नहीं चिंतन नहीं सिर्फ रट्टा मारा है एक तोते की तरह और सिर्फ चंद रुपयों के लिए गुरु की महिमा का अपमान किया है! गुरु होना गुरु के पद पे होना इसका मतलब जानते है आप जो गुरु बन के बैठ गए है सिर्फ और सिर्फ आप पैसा कामना जानते है! लोगो को भरोसे में लेके उनके भरोसे के साथ खेलना जानते है! और कुछ नहीं!
         गुरु पद पे आने के बाद आप ने सब कुछ पा लिया ये सोचना गलत है! क्योंकि गुरु पद कोई आराम करने की जगह नहीं है अपितु आप एक मिशन से जुड़ गए है ऐसा समझना चाहिए!!   गुरु की गरिमा बनाए रखने के लिए आप अपने पास आये व्यक्ति के जीवन में परिवर्तन ला-कर के उसे मोक्ष का सही अर्थ समझाना और उसे परम शांति की अनुभूति जो वह स्वयं कर सके और दूसरों को भी करा सके ऐसा बनना होता है! परन्तु जो गुरु सही अर्थ में इन बातो के बारे में जानते है वह भी ऐसा नहीं करते है! क्योंकि वह भय में रहते है की ये हमारी जगह न लेले!  अरे भाई किस बात का भ्रम है आप को किस बात का भय है यदि वह भी आप की तरह लोगो को सही राह दिखायेगा तो आप को भय होना ही नहीं चाहिए यदि आप सही मायने में जानकार और और गुरु है!  और यदि आप सिर्फ कमाने के लिए ही बैठे है तो यह भय आप को अवश्य सताएगा ही की कही इसने भी मेरे जैसा कमाना चालू कर दिया तो! कही इसके भी शिष्य होने न लगे कही ये मेरे से ज्यादा आगे न बढ़ जाए ये सब दर अाज कल के गुरु को बहुत सताने लगा है क्योंकि सही मायने में वह गुरु है ही नहीं!

          गुरु का काम भीड़ जमा करना नहीं है! और आखिर भीड़ जमा करनी भी क्यों है तो लोगो के पास बड़ा अजीब सा जवाब होता है! की वस्तु पत्र को देख के देने के लिए होती है! वर्ना वह गलत इस्तेमाल करेगा! अच्छा और इस वस्तु के बारे में यही लोग ऐसा भी बोलते है की जिसको वस्तु मिल गयी वह चुप हो जाता है उसमे परिवर्तन आ जाता है वह परम तत्व को पा लेता है उसको सभी मैं भगवान की या कहे की ईश्वर की अनुभूति होती है मेरे भाई जब तुम्हारी बात सही है तो तुम्हे पात्र कुपात्र की बात का भय क्यों सताता है   और यदि सताता है तो  क्या तुम्हे तुम्हारी ही बातो में विश्वास नहीं है!

          पात्र कैसा भी हो यदि वह तुम्हारे पास आया है तो उसको वस्तु मिलनी ही चाहिए अगर उसका वर्तन सही नहीं है तो उसको सही करो जैसा की मैंने पहले ही कहा था की गुरु को अपने चेले के प्रति एक मिशन समझ के ही कार्य को करना चाहिए और समय से जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी पूरा करना चाहिए परन्तु ऐसा कोई नहीं करता है सभी कमाने खाने के हिसाब से ही चलते रहते है और हर हफ्ते या महीने में बुला के उसको प्रवचन दे के उसे उसमे कमी है ऐसा बोल के दिए हुए मंत्रो को ही स्मरण करने के लिए कहते रहते है! जब की दिल पे हाथ रख के देखे तो वह भी जानते है और आप भी जानते है की ये सब गलत है! किसी पाठशाला में यदि आप का बच्चा पढ़ नहीं पा रहा है बार बार अनुत्तीर्ण ही हो रहा है तो या तो स्कूल वाले या तो आप स्वयं उस जगह को बदल देते है देखने वाली बात यह होती है की १०० की कक्षा में ८० तो अनुत्तीर्ण हो रहे है इसमें विद्यार्थी की नहीं अध्यापक की गलती है ये सीधी सीधी समझने वाली ही बात है! आप इस मामले में तो इस कदम को उठा लेते है! पर आध्यात्मिक ज्ञान करने वाले गुरु के खिलाफ आप की आवाज़ दब जाती है और सही जानते हुए  भी आप की आवाज़ नहीं निकलती है क्योंकि ऐसे लोग होते ही बड़े चालू है वह बहुत से बातों में आप को दबा के ही रखते है! गुरु का अर्थ बंधन नहीं होता है गुरु का अर्थ मुक्ति होता है और यही होना चाहिए जो गुरु आप को बंधन में ही रखे आप को सिर्फ और सिर्फ नीचे ही रहने का सिखाये वह गुरु सही मायने में गुरु कैसे हो सकता है! गुरु तो सभी इक्षाओं से परे होता है! वह अपने पास आने वाले को सम दृष्टि से ही देखता है उसके सही गलत में फर्क को देख के सब से पहले गलत को सही करता है और सभी को उनके सही रास्ते पे लाता है!

          अभी कुछ टाइम पहले हुए सत्संग में एक सज्जन पुरुष ने थोड़ा आपा खो दिया और एक व्यक्ति से कहा की आप की बोलने की लायकी नहीं है आप को वाणी की खबर नहीं पड़ती है! अब मैं ये सोच रहा हूँ की व्यक्ति तो आपके पास कुछ सिखने ही आया था तो उसकी लायकात या नालायकात का पता आप ने क्या हिसाब से लगाया! आखिर ऐसी कौन सी वाणी थी जो आप ने समझ ली और वह नहीं समझ पा रहा है! आप अगर समझते है वाणी को, तत्व को, आत्मज्ञान आप में भरा हुआ है तो क्या हिसाब से आप ने त्रुटि निकाली! वाणी समझने में ऐसी कौन सी महारथ हासिल करनी है ज़रा मुझे भी तो समझे! जो आप के आगे पीछे घूम रहा है समझने के लिए तो  वह तो यही सोच के चल रहा है की उसको आप से सिखने मिलेगा इसका मतलब की वह सच को मान रहा है की उसे इस वाणी का मर्म नहीं समझा है और वह समझना चाहता है! मेरे भाई जिसने पहले ही आप को बता दिया है सब के सामने स्वीकार किया है की मैं इस मामले में अज्ञानी हूँ मुझे सिखाओ ऐसे व्यक्ति को भरी सभा में टोक कर अपमानित करने का हक़ आप को किसने दिया और किसी ने दिया हो या न दिया हो पर आपने इस वाणी का प्रयोग कर के क्या साबित करना चाहा की आप समझदार हो! ऐसे लोगो से मेरा यही पूछना है जो दूसरों को अज्ञानी समझते है क्या वह मुझे समझाएंगे की आध्यात्मिक मार्ग पे चलने वाला व्यक्ति अज्ञानी और आप सर्व-ज्ञाता कैसे!
 
           खैर ये बाते ये जज्बात कुछ ऐसे है की जिन्हे बयां नहीं किया जा सकता है! "सब अपनी अपनी  मस्ती में मस्त है सत्तार" मगर तुम्हारी मस्ती तुम्हारे तक  ही रखो न भाई! दूसरों को क्यों गुमराह कर रहे हो!!!


          लोगो को अपने आप को बदलना चाहिए सच सुनाने और सुनने के काबिल बनना चाहिए! लोगो को लगता है की ये व्यक्ति समझदार है ज्ञानी है तो चुप ही रहेगा कुछ बोलेगा नहीं! क्योंकि ज्ञानियों की निशानी है की वह बेवकूफ़ो के बिच में चुप ही रहते है! और इसी बात का फायदा उठा के बहुत से लोग दुनिया को बेवक़ूफ़ बनाते रहते है!   थोड़ा दिमाग पे जोर डालो! कितनी वाणी में भी बोला गया है! कई सारे आदर्श व्यक्ति के वचन में भी सुनने को मिला है! की "जुर्म करना तो गुनाह है परन्तु जुर्म सहना भी गुनाह ही है! और जुर्म होते हुए देख के चुप रहना तो और भी बड़ा जुर्म है!"  यदि तुम काबिल हो तो जुर्म को रोको काबिल नहीं हो तो काबिल बनो और दोनों में से कुछ भी नहीं हो  पा रहा है! तो किसी काबिल की खोज करो! किसी महान व्यक्ति ने कहा था! जीवन गति का नाम है! "दौड़ो या तो फिर चलो, या रैंगो, या घसीटो अपने  आप को परन्तु रुको नहीं!"रुकना ज़िन्दगी नहीं! चलना ज़िन्दगी है!" तो क्या हिसाब से आप ने सोचा की जिसको ज्ञान है! जिसको समझ है वह आप की बकवास सुनते जायेगा कुछ नहीं बोलेगा!

           ये सब आप की गलत फहमी भर है बस हक़ीक़त से आप का सामना हुआ  नहीं है इसीलिए आप की दूकान धड़ल्ले से चल रही है! और कुछ अंधभक्तो के कारन आप की छवि को हवा भी मिल रही है! मैं ये नहीं कहता हूँ की सभी गुरुजन ख़राब है या अज्ञानी है! या मुझे ज्यादा ज्ञान है! नहीं नहीं बिलकुल नहीं मगर हर एक का लेवल है! सभी गुरुजन की एक विशेषता है!सभी अपने हिसाब से बहुत कुछ जानते है! परन्तु आप को मोक्ष दिलाना ये उनके ही हाथ में है! यह जरुरी नहीं! जो व्यक्ति खुद ५ २५ के चक्कर में पड़ा है! वह आप को मुक्ति कैसे दिलाएगा! और मुक्ति आप को चाहिए किस बात में! ध्यान रखिये यहाँ जो मैं लिखने जा रहा हूँ अब वह बहुत से लोगो को बुरी भी लगेगी परन्तु है सच!

         किस प्रकार की मुक्ति को आप चाहते है! मुक्ति है क्या! क्या कभी किसी से पूछा है! या मन में जो धारणा बिठाई है! की ८४ का फेरा छूट जाना! स्वर्ग या फलाना धाम का मिल जाना ही मुक्ति है! आखिर मुक्ति है क्या! और दिलाने वाला है कौन ये वेषभूषा बन गयी है! श्रृंगार कर लिया है! गेरुआ पहन लिया, फोटो के आगे पीछे चमत्कारिक  ढंग वाली आकृति तैयार कर ली तो बाबा बन गए! और इनको सर्टिफिकेट भी मिल गया की ये लोग मोक्ष दिलाते है! मुक्ति का सही मतलब क्या होता है! ये जानना बहुत जरुरी है!

    सब से पहले तो एकदम सीधा सीधा हिसाब है की आप अपना सब कुछ सामने वाले के हाथ में दे कर के अपनी सभी जिम्मेदारिओं को भूल कर भगवान के स्मरण में ध्यान लगा के या समाधी लगा के इस संसार को त्याग देना या संसार से विमुख हो के गेरुआ धारण कर लेना हर वक़्त हरी को भजते रहना! (ऐसा दिखाना!) ये मुक्ति नहीं है! मुक्ति की क्या गारंटी है! जीते जी आप सभी के दिल में अपनी एक % की जगह बना नहीं पा रहे है! और मृत्यु के पश्चात आप को मुक्ति चाहिए!!! वाह क्या बात है! ये तो वही बात हुयी की ज़िदगी भर आड़े टेढ़े काम करो! फिर गंगा में जा कर नहा लो फिर तो मशीन दोबारा नयी हो गयी ऐसा लगता है!  मगर दिल पे हाथ रखिये क्या ये सही बात है! नहीं है! इस भू लोक को मृत्यु लोक, कर्म लोक, आदि कहा गया है! जो यहाँ करना है वह यही भरना है! ऐसा मेरा सोचना है इन-फैक्ट भरता भी है! बहुत सारे केसेस में हम इन बातो को देख सकते है! प्रायश्चित के नाम पर भगवान को भजना मिलने वाली सजा को कम नहीं करता है! बल्कि ये  कुछ ऐसा ही है की आप ने मिर्ची के ऊपर गुड की ढेली  खा ली हो ! गूड खाने से मिर्ची की तीखेपन में गिरावट नहीं आती है परन्तु उसके तीखेपन के  साथ लड़ने की हमारी क्षमता बढ़ जाती है! इसीलिए जिन कर्मो को किया है! उससे छुटकारा नहीं है! इतना तो ध्यान में रखिये! गीता में लिखा है! "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन"
मतलब कर्म करते चलो और फल की चिंता मत करो उसे उसके ऊपर छोड़ दो! सभी कर्मो का फल वह अपने हिसाब से देता है! और उसके घर में अकाउंट की चिंता आप को करनी भी नहीं है! आप तो बस ट्रांजेक्शन (कर्म) करते जाओ! यदि  आप के कर्म सही रहेंगे, आप के कर्म धर्म विकास, सम्मान, देश, के प्रति सुपुर्द होंगे तो आप को वह खुद अपने हाथ में ले-लेगा गुजराती में एक साखि है!

    "साया तू बड़ा धनि! तुझ से बड़ा न कोई! तू जेना सर हाथ रख दे! उससे बड़ा न कोई!"
     
        जैसा की मैंने ऊपर ही लिखा था की आप के कर्मो को देखते हुए वह आप को फल देता है! और कर्म के अनुसार वह आप को हाथो हाथ लेलेगा यही वस्तु इस साखी में भी दिखती है! की वह जिस के सर पे हाथ रख देता है उसके ऊपर कोई दीखता ही नहीं! अपने आप उसके सरे दुःख दर्द मीट जाते है! सभी यातनाओं से वह परे
हो जाता है!

         अंतिम चरण में लिख रहा हूँ की यदि आप को गुरु की तनिक सी भी समझ मेरे इस लेख से पड़ी होगी तो ये मेरा सौभाग्य होगा! यदि कुछ समझने में तकलीफ हो मुझे अवश्य संपर्क करे! क्योंकि आप का लिया हुआ एक भी गलत फैसला आप को आजीवन रुलाएगा! आप हँसी के पात्र बन के रह जाओगे! गले की फांस बन के रह जाएगी! और आप स्ट्रेस के कारन अपने साथ साथ अपने परिवार का भी नुकसान कर बैठोगे!


मैंने शुरुआत में ही लिखा है की ये मेरे विचार है! और ये किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं है! यदि ये विचार आप के जीवन में ख़ुशी ला सकते है! तो अच्छी बात है! वर्ना इन्हे मानना या नहीं मानना पूरी तरह से आप पे निर्भर करता है! मुझे सिर्फ सच पसंद आता है! कम से कम इन बातो में मुझे झूठ बर्दाश्त नहीं है!


जय गुरुदेव
नागेश शर्मा



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