"नाम" नागेश जय गुरुदेव (दीपक बापू)

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

“ध्यान क्या है!

जिन्होंने पहले नहीं देखा है पढ़ा है या बेसिक जानकारी भी नहीं है वह निचे दी हुयी मेरी लिंक को एक बार अवश्य पढ़े प्रैक्टिकली कर के देखे और बिना अनुभूति किये तो आप से मेरा परम अनुरोध है की आगे पढ़े ही नही अन्यथा मेरी बाते आप को शायद हज़म हो ही नहीं!

http://santnagesh.blogspot.in/2016/03/dhyaan.html

              उपरोक्त लिंक के उपर हमने पहले ही ध्यान को किस तरह से लगाना है इस विषय में चर्चा की हुयी है! उसके बेसिक अनुभव को भी साझा किया हुआ है! इसीलिए यहाँ अब उसके आगे लिखने की शुरुआत मैं कर रहा हूँ!  यहाँ हम ध्यान को पूरी तरह से विस्तृत तरीके से जानेंगे!
     
           ध्यान बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है इसीलिए इसको जितना सहज और सही रूप से लिखा जाये उतना अच्छा ताकि लोगो को समझने में आसानी हो! और सही रूप में वह ध्यान लगा सके! सब से पहले तो मन को खली कीजिये ध्यान लगाने की अवस्था में आप का मन शून्य होना चाहिए! बहुत से लोग ध्यान लगाते समय पहले से ही ईश्वर की एक तस्वीर उसकी मूर्ति उसकी आकर रूप की कल्पना कर लेते है! और यही वह कारन है की वह लोग सही रूप में ईश्वर का साक्षात्कार कर ही नहीं पाते! ध्यान! ध्यान लगाते वक़्त मन में कुछ भी नहीं चलना चाहिए! मन में आने वाली सभी बातों को शून्य कर दे किसी भी वस्तु के बारे में सोचना बंद कर दे! एक भी बात आप के मन में नहीं रहने दीजिए शुरुआती तौर पे आप एक दिये की बत्ती को ही अपने दिमाग में लेके चले! ये इसीलिए ताकि आप के मन में से बाकी बातें अदृश्य हो जाये! और आप सिर्फ इसी में एकाग्रचित्त हो सके! धीरे धीरे आप की चेतना अवस्था जागृत हो जाएगी! चेतना अवस्था जागृत होने  तक में बहूत सी कठिनाईया आएँगी! ये इतना आसान नहीं है! आँखें बंद कर के शांति से बैठना और ध्यान का लगना दोनों में बहुत अंतर है! बहुत से लोग ध्यान के नाम पर कल्पना की अनुभूति करते है! और उसको ही ध्यान समझते है! जब की ऐसा होता है नहीं! ध्यान की मुद्रा में ध्यान किसी वस्तु में या किसी आकार में देना नहीं है! ध्यान शुन्य पे रखना है! हर जगह से ध्यान का हटाना और एकाग्रचित्त होने की अवस्था ही हक़ीक़त में ध्यान है! ध्यान का मानव जीवन में बहुत ही महत्व है! इसके कारन आदमी की पॉजिटिव सोच बढ़ती है! उसके भीतर औरा का (ऊर्जा) का निर्माण होता है! ध्यान से व्यक्ति में अचंभित करने वाली शक्ति का प्रसार होता है! अजीब तरीके की तेज उसके मुखमण्डल पे दिखने लगती है! उसका चेहरा शांत नज़र आने लगता है! ये सब होने के लिए ज़रूरी है! की ध्यान लगे! सिर्फ बातो में नहीं! हक़ीक़त में भी!

          ध्यान लगाते वक़्त जब आप शुन्य होना शुरू होते हो! तो सब से पहले तो शरीर हल्का पड़ने लगता है! सांस की गति धीमी लगने लगती है! और ये आभास आप का स्वयं का होता है! ये आप की अवस्था अंदर ही होती है! सांस धीमी गति से चलने के कारन आप को आप की स्वसन क्रिया में अजीब सा तेज महसूस होगा! ध्यान लगाते समय अपनी दोनों आँखों को अपने माथे की तरफ जहां बिंदी या तिलक लगाते है! उस और ले जा कर के ध्यान लगाना चाहिए इसमें दर्द होता है! परन्तु सही ढंग से यदि ध्यान लगाया जाए तो ही उसका असर होगा वर्ना सब बातें यूँ ही धरी की धरी रह जाएगी!

       ध्यान के समय जब आप सभी विचारों का त्याग कर देते है! तब आप के मस्तिष्क पटल की और देखते देखते  भीतर ही आप को ओम की ध्वनि का आभास होना शुरू होगा! फिर अलग अलग तरह के नाद यंत्रो का आभास शुरू होगा इन सभी ध्वनियों को सुनिए आप को बहुत ही सुखद अनुभव होगा! ये ध्वनि धीरे धीरे इतनी तीव्र हो जाएगी और अलग अलग से आभास कराएगी और इन सभी को चीरते हुए आप ओम की ध्वनि में लीन हो जायेंगे! सिर्फ और सिर्फ सन्नाटा सा महसूस होगा! इस क्षण यदि आप को कोई मूर्ति! या आपकी कल्पना का आभास होना शुरू हो तो तुरंत उसे मिथ्या समझ के चले क्योंकि जिस अनुभूति की हम बात कर रहे है! वह ये नहीं है! इसको पहले ही इसीलिए बता दे रहा हूँ क्योंकि लोग अक्सर इस जगह आ कर खो जाते है! यदि आप भी इस भंवर में फसे तो तुरंत हाथ में कोई वजनदार वस्तु लेके इस पर प्रहार कर दे और इसे हटा दे! या तो तुरंत उसे ० समझने लगे जैसे वह कुछ है ही नहीं! क्योंकि बहुत से लोगो को ध्यान में यही तकलीफ़ आती है! जब वह ध्यान लगाते है! तब उन्हें इन्ही सब कल्पनाओं की अनुभूति होनी शुरू हो जाती है! और वह इसके बाहर निकल ही नहीं है! ऐसे लोगो से मेरा विशेष अनुरोध है की अपने आप को सीमित न करे! और आगे बढ़ते रहिये!

         ध्यान की प्रक्रिया में जब आप चरम सिमा पर पहुंचते है तब आप को काफी सारे भजन के सार यूँ ही समझ जाते है! क्योंकि जिन पंक्तियों को संत महात्मा लिख के चले गए है उन पलो को आप ध्यान की मुद्रा में जी लेते है! ध्यान की अवस्था पे आज हम चर्चा करेंगे!

ध्यान की अवस्था

ध्यान में जो अवस्थाएं आती है उनकी बहुत सी जगह, बहुत से व्यक्तियों के द्वारा हमने देखि है! कोई २ कोई ३ कोई ४ अवस्था बताता है! परन्तु यहाँ मैं मेरे विचार से ही लिख रहा हूँ तो ये सिर्फ और सिर्फ मेरे ही शब्दों में है! क्योंकि पढ़ी लिखी बात को घुमा फिरा के लिख देना मुझे सही नहीं लगता है! अपनी  खुद की की हुयी अनुभूति से जो अनुभव प्राप्त हुआ है सिर्फ उसे ही यहाँ साँझा किया जा रहा है! ताकि लोग जितना सरलता से समझ पाये उतना अच्छा!

१) ध्यान जब लगन शुरू करते है तब सब से पहले जो फीलिंग आती है वह है सांसो में और आँखों में गर्मी की बड़ी अच्छी लगती है! गर्मी से तो वैसे हर किसी को परहेज है परन्तु जब ध्यान लगाते है तब ये गर्मी का एहसास अलग ही होता है इसमें आप की साँसे धीमी गति से चलते हुए आप के पुरे शारीर में विचरण का एहसास दिलाती है! आँखों पे वजन का एहसास होता रहता है! मस्तक(माथे) पे भी वजन आता रहता है! आँखों के निचे भारी भारी लगता रहता है! और इसी सिचुएशन में आप को अपने अंदर की आवाज़ धीमी धीमी गति से आनी शुरू हो जाती है!
२) दूसरी अवस्था में पहुंचते समय आप को जो आवाज़ धीमी धीमी गति में आ रही थी वह थोड़ा थोड़ा कर के बढ़ने लगती है जो तेज चल रही हवा की तरह ही लगती रहती है! ये हवा को ही भजन में मुरली की उपाधि दी हुयी है! ये हवा की या यूँ कहे की मुरली की आवाज़ और कुछ नहीं आप की स्वसन प्रक्रिया की आवाज़ ही है जो आप के ध्यान के कारन आप को सही से सुनाई दे रही है! इसका कारन आप को बता दो की क्यों ये ऐसा होता है! तो आप ने बांसुरी को देखा ही होगा उसमे खोखली सी नल्ली जिसमे बने छिद्रो के कारन हवा का उसमे प्रसार होते ही ध्वनि निकलने लगती है ठीक उसी प्रकार आप के अंदर जब आप के स्वसन क्रिया में हवा का प्रसार होता है! तो भी आवाज़ होती है परन्तु उसे ऐसे ही महसूस या सुना नहीं जा सकता है परन्तु ध्यान की क्रिया में हम उसको सुन सकते है!इस अवस्था में आप की स्वसन क्रिया काफी धीमी गति में चलती है परन्तु अच्छी मात्र में हवा का संचार आप के अंदर होता रहता है!

३) स्वसन की अवस्था में अपने आप को बनाए रखते हुए ध्यान स्वयं आप को ऊपर की तरफ ले जाता है जिसमे कुंडली जागृत जैसी वस्तुएं महसूस होती है! परन्तु ये तो आगे की बात है इन्हे हम बाद में समझेंगे फ़िलहाल ध्यान की ये अवस्था कुछ इस प्रकार होती है की इसमें आप अपने देह(शारीर) को तक़रीबन भूल ही जाते है! आप को अपनी उपस्थिति उसी जगह लगती है जहां आप ध्यान धरती हुए दृश्य देख रहे हो! इस सिचुएशन में आप को अपने शारीर का भान नहीं रहता है! तनिक सा भी नहीं! इस अवस्था में माथा गरम होता है! बाकि शारीर में थोड़ा ठंडापन आ गया होता है! ये तक़रीबन समाधी के जैसा ही लगता है! परन्तु ये समाधी नहीं है! इसीलिए गलत इशारों से बच्चे!
              इस सिचुएशन में आने पे आप को ध्यान के समय अजीब अजीब से चित्र दीखते है! अँधेरा प्रकाश सभी की ऐसी मिलीजुली प्रतिक्रिया होती है! की खेल देखते ही बनता है! सात सुरों साथ रंगो का ऐसा मेल शायद ही कभी खुली आँखों से देखा हो जो यहाँ देखने को मिलती है!

४) ध्यान जब इसके भी ऊपर पहुंचता है तो समाधी की दशा में पहुंच जाता है! इस अवस्था में देह तक़रीबन पूरी तरह से ठंडा पद चूका होता है! बहरी व्यक्ति के देखने पे अचेतन अवस्था ही जान पड़ती है! ये अवस्था में आप की साँसे तक़रीबन ना की तरह ही होती है! अपितु बाहरी व्यक्ति के लिए तो आपकी स्वसन क्रिया बंद ही हो गयी होती है! इस अवस्था में ध्यान लगाया हुआ व्यक्ति पहाड़ झरने आदि जगहों को देखता है! जिसमे वह खुद को कही बैठा हुआ महसूस करता है! उसे इस जगह का जहां वह हक़ीक़त में बैठा हुआ है उसका तनिक भी विचार रहता है ही नहीं! इस अवस्था में और भी आगे जाया जाता है! यहाँ तक पहुंचना भी कोई आसान या खेल नहीं है! यहाँ तक पहुंचने का दावा बहुत से लोग करते है! परन्तु उनसे सही सही पूछा जाए तो वह भी बता नहीं पाते है! मैं इसके आगे अब लिखूंगा नहीं यहाँ तक की जो अवस्थाएं मैंने बताई है वह पूर्ण है ऐसा नहीं कह सकता हूँ क्योंकि इन अनुभव को शब्दों में बयां कर देना इतना आसान नहीं है! और मैंने वैसे भी आप के साथ सिर्फ एक छोटा सा अनुभव ही शेयर किया है!

                   इसके बारे में यदि किसी के कोई सवाल रहेंगे तो मेरे ईमेल के पते पे या तो टिप्पणी में आप कर सकते है! जिन्हे भी इन सभी का अनुभव करना होगा या करना चाहते होंगे वह भी हमसे संपर्क कर सकते है!

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